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पति की लंबी आयु के लिए सुहागिनों ने रखा निर्जल व्रत

• शाम को की आराध्य शिव की पूजा

• श्रंगार चढ़ा शिव को प्रसन्न कर मांगा वर

रायबरेली। सोमवार को अपने पति की लंबी उम्र के लिए सुहागिनों ने निर्जल व्रत रखा। देशभर में हरतालिका तीज कजरी तीज या जिसे तीजा भी कहा जाता है मनाया गया। यह व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर रखा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। इस व्रत में सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रखते हुए शिव-पार्वती की पूजा करती हैं।

हरतालिका तीज व्रत में ऐसे होता है पारण

हरतालिका तीज व्रत का पारण करने के लिए भगवान को चढ़ाया गया भोग ही अच्छा माना जाता है। इसलिए पूजा में चढ़ाए गए भोग से ही अपना व्रत खोला जाता है। इसके बाद आप भोजन ग्रहण कर सकते हैं।

पति की लंबी आयु के लिए सुहागिनों ने रखा निर्जल व्रत

हरतालिका तीज व्रत के अगले दिन सूर्योदय से पूर्व जागें और स्नान के बाद शिव गौरी की पूजा करें। इसके बाद प्रसाद में चढ़ाए मिष्ठान और जल से व्रत का पारण किया जाता है।व्रत का पारण कभी भी नमकयुक्त या तले हुए भोजन से नहीं किया जाता है।

हरतालिका तीज पर नही होते यह काम

हरतालिका तीज के दिन व्रती महिलाओं का सोना वर्जित होता है। हरतालिका तीज व्रत में गलती से भी जल ग्रहण न करें।
हरतालिका तीज के दिन महिलाएं अपने पति के साथ किसी तरह के वाद-विवाद से बचें। इस दिन मन में किसी भी तरह की गलत भावना न लाएं। व्रत के दौरान क्रोध करने से भी बचें।

हरतालिका तीज हुई खरीदारी

हरतालिका तीज पर खरीदारी करना बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन सोने के आभूषण खरीदना और सुहाग से जुड़ी चीजें खरीदना काफी शुभ माना जाता है। इसके साथ ही इस दिन मोबाइल फोन, प्रॉपर्टी, घर की बुकिंग, किराए पर मकान लेना और गैजेट आदि लेना भी अच्छा माना गया है। इसे लेकर बाजार में रौनक बनी रही।

हरतालिका तीज व्रत से महिलाओं को मिलता है ये फल

हरतालिका तीज पर स्त्रियां व्रत रखकर भगवान गणेश एवं शिव-पार्वती का पूजन करती हैं, जिससे उनका दांपत्य जीवन सुखद रहता है एवं परिवार में खुशियां बनी रहती हैं। इस व्रत को निर्जल रहकर किया जाता है।

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रात में महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती के गीतों पर नृत्य भी करती हैं। अगर अविवाहित कन्याएं हरतालिका तीज का उपवास करती हैं तो उन्हें अच्छा जीवनसाथी मिलता है। वहीं सुहागिन महिलाओं के पति की आयु दीर्घ होती है। इस अवसर पर महिलाएं पूरा श्रृंगार करके नए वस्त्र और आभूषण पहनकर लोकगीत गीत गीती हैं। इस पारंपरिक पर्व से जीवन नए उमंग-उल्लास और प्रेम के रंग में रंग जाता है।

यह है हरतालिका तीज की कथा

शिवमहापुराण के अनुसार कई जन्मों से माता पार्वती भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाना चाहती थीं। इसलिए बाल अवस्था में ही माता पार्वती ने हिमालय पर्वत के गंगा तट पर अधोमुखी होकर तपस्या की थी। इस दौरान उन्होंने अन्न और जल का सेवन भी नही किया था। वह केवल सूखे पत्ते खाकर तप करती थीं। पार्वती जी को इस अवस्था में देख उनके माता पिता बहुत दुखी रहते थे। एक दिन उनके पिता के पास भगवान विष्णु की तरफ से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव आया।

पति की लंबी आयु के लिए सुहागिनों ने रखा निर्जल व्रत

यह जानकर माता पार्वती काफी दुखी हो गईं। उनके पिता चाहते की पार्वती जी का विवाह भगवान विष्णु के साथ हो जाए। इस पर माता पार्वती की सहेली ने उन्हें वन में जाने की सलाह दी, जिसके बाद पार्वती जी एक गुफा में जाकर शिव जी की तपस्या में लीन हो गईं। माता पार्वती ने भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन रेत से शिवलिंग बनाकर उनकी स्तुति की। पार्वती जी की इतनी कठोर तपस्या देख भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और पत्नी रूप में स्वीकार कर लिया।

बड़े कठिन हैं हरतालिका तीज व्रत के नियम

हरतालिका तीज का व्रत कठिन उपवासों में से एक है, जिसमें पूरा दिन निर्जला व्रत रखा जाता है। इस व्रत के अगले दिन ही जल ग्रहण किया जाता है। जो महिलाएं इस व्रत को करती हैं उन्हे हर एक वर्ष इसे जरूर करना चाहिए। इस व्रत को बीच में नहीं छोड़ा जा सकता है। हरतालिका तीज की रात को सोना वर्जित है, इसीलिए व्रती महिलाओं को रात के समय जागरण करना चाहिए। हरतालिका तीज व्रत को कुंवारी कन्या और सुहागिन महिलाएं दोनों ही रख सकती हैं।

इस तरह सुहागिनों ने की हरतालिका की पूजा

हरतालिका तीज में प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने का विधान है। इसके लिए सबसे पहले सुबह महिलाएं संकल्प लेकर महिलाओं ने हरतालिका तीज का व्रत आरंभ किया। इसके बाद स्नान के बाद नए शुभ रंगों के परिधान पहन कर अपने हाथ पर मेंहदी रचा और संपूर्ण श्रृंगार कर शुद्ध मिट्टी से शिव-पार्वती और श्री गणेश की प्रतीकात्मक प्रतिमाएं बनाकर उनकी पूजन किया। इसमें रोली, चावल, पुष्प, बेलपत्र, नारियल, दूर्वा, मिठाई आदि से भगवान का भक्ति भाव से पूजन किया गया।

रिपोर्ट-दुर्गेश मिश्रा

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