नरेंद्र मोदी का संबोधन अक्सर प्रधानमंत्री की औपचारिकता से ऊपर होता है। किसी नेता को यह स्थिति संवैधानिक पद मात्र से नहीं मिलती है। मनमोहन सिंह का दस वर्षीय कार्यकाल लोग भूले नहीं है। उनकी स्थिति व महत्व केवल पद के कारण था। वह अभिभावक रूप में विचार व्यक्त करने की स्थिति में कभी नहीं रहे। नरेंद्र मोदी जब थाली,ताली बजाने या दीप प्रज्वलित करने की अपील करते है, तब लोग ध्यान देते है, अमल करते है, देश में अद्भुत दृश्य दिखाई देता है।
राष्ट्रीय एकता की मनोवैज्ञानिक अभिव्यक्ति होती है। तब सन्देश मिलता है कि कोरोना का मुकाबला एकजुटता से हो सकता है। एक बार फिर मोदी ने राष्ट्र को संबोधित किया। अभिभावक की तरह,जो लापरवाही देख कर विचलित होता है,उनकी चिंता करता है। इसका कारण भी है। मोदी ने कहा कि वीडियो में दिखने वाली भीड़ ठीक नहीं है। कोरोना की अभी कोई दवाई नहीं है,इसलिए ढिलाई नहीं होनी चाहिए। दो गज की दूरी,समय समय पर साबुन से हाथ धुलना और मास्क का ध्यान रखिए। उन्होंने कहा एक कठिन समय से निकलकर हम आगे बढ़ रहे हैं, थोड़ी सी लापरवाही हमारी गति को रोक सकती है।
हमारी खुशियों को धूमिल कर सकती है। जीवन की ज़िम्मेदारियों को निभाना और सतर्कता ये दोनो साथ साथ चलेंगे तभी जीवन में ख़ुशियाँ बनी रहेंगी। प्रधानमंत्री ने सेवा Doctors, Nurses, Health workers के सेवा धर्म की सराहना की। दुनिया के साधन संपन्न देशों की तुलना में भारत अपने ज्यादा से ज्यादा नागरिकों का जीवन बचाने में सफल हो रहा है।