नई दिल्ली। देश के Paper industry कागज उद्योग पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में वुड पल्प (लकड़ी की लुगदी) की कमी का असर देश के बाजार पर दिखाई देने लगा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में आने वाली पूरी लुगदी चीन उठा रहा है। इससे देश में इसका आयात जरूरत के मुताबिक नहीं हो पा रहा है। कच्चा माल न मिलने के कारण कागज की कीमतों में गत दो महीने में पचास फीसदी तक की वृद्धि हो गई है।
Paper industry में लगे
कागज निर्माण Paper industry में लगे कुटीर उद्योगों पर भी असर पड़ रहा है। इससे जुड़े तमाम लोगों की रोजी-रोटी पर खतरा उत्पन्न हो गया है। देश में वुड पल्प का बड़ी मात्रा में आयात किया जाता है। चीन में कुछ समय पहले तक रद्दी को रीसाइकिल करपल्प तैयार किया जाता था लेकिन वहां इस पर प्रतिबंध लगने के बाद चीन अंतरराष्ट्रीय बाजार से बड़ी मात्रा में वुड पल्प खरीद रहा है, जिसका सीधा असर भारतीय कागज उद्योग पर भी पड़ते दिख रहा है।
उत्तर प्रदेश का बरेली कागज की बड़ी मंडी है। यहां हर महीने करीब पांच सौ टन कागज की खपत होती है। यह सारा कागज ब्रोकरों के जरिए मिलों से जिले के व्यापारियों के पास पहुंचता है। जिले में करीब दो सौ बड़े व्यापारी समेत पांच सौ से अधिक छोटे व्यापारी स्टेशनरी कारोबार में लगे हैं। इसके साथ ही यहां हजारों लोगों के रोजगार का साधन कुटीर उद्योग के रूप में कागज का काम है। बंडल या रोल के रूप में सादा कागज आने के बाद यहां कारखानों में बाइंडिंग, रूलिंग, कवर, पैकिंग आदि का काम होता है।
पिछले 20 साल की बात करें तो कागज के दामों में अमूमन एक या दो रुपए प्रति किलो तक की तेजी आती थी। इस बार दो महीने में करीब 30 से 40 रुपए प्रति किलो के दाम बढ़ गए हैं। कागज का एक रिम जो डेढ़ सौ रुपए का आता था, आज उसकी कीमत करीब 220 रुपए हो गई है। इस तरह करीब 50 फीसदी तक दामों में बढ़ोतरी हुई है।