लखनऊ। यूपी में 22 करोड़ जनता की अधिकांश जरूरतें कृषि आधारित हैं। इसके लिए कृषि की लागत को कम करके अधिक से अधिक उत्पादकता को प्राकृतिक तरीके से बढ़ाने की जरूरत है। यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि शून्य लागत प्राकृतिक खेती से किसानों को काफी फायदे हो सकते हैं। आधुनिक खेती का प्रचलन पंजाब से हुआ। वहां पर रसायन और उर्वरक के कारण जहरीले उत्पादन की शुरूआत हुई और वह धीरे धीरे देश के हर हिस्से में फैल गया है। किसान उस पर निर्भर हैं। इससे निजात भी मिल सकता है। गाय को प्रकृति प्रदत्त गुणों के कारण ही हमने उसकी वंदना की है। पूरा भारतीय समाज उसे मां के रूप में मानता है। छुट्टा पशुओं से निजात कैसे मिलेगी। उत्पादन की लागत बढ़ गई है। विदेशों के सामूहिक खेती ने भारतीय किसानों की कमर तोड़ दी है। किसानों की लागत को कम करना, उत्पादकता बढ़ाना एक चुनौती है। कृषि देश का रोजगार प्रदान करने वाला सबसे बड़ा क्षेत्र है। बुंदेलखंड में अन्ना प्रथा एक बड़ी समस्या है। सरकार आवारा पशुओं के संरक्षण की व्यवस्था कर रही है। गो अभ्यारण्य बनाए जा रहे हैं। देशी नस्ल को सुधारने के लिए विशेष तैयारी की गई है। ड्रिप इरिगेशन से 90 फीसदी पानी की बचत की जा सकती है। ग्लोबल वार्मिंग और ग्लोबल कूलिंग की समस्या से कृषि को बचाने की चुनौती है। इस अवसर पर कार्यक्रम के संयोजक एस आर कॉलेज के चेयरमैन पवन चौहान ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को श्रीमदभगवतगीता भेंट किया।
हम किसानों को स्थानीय जरूरत के मुताबिक गोवंश आधारित कृषि योजनाएं लागू कर सकें ऐसी व्यवस्था की जा रही है। सब्सिडी योजनाओं को पारदर्शी बनाया गया है। प्रगतिशील किसानों के साथ बैठकर चर्चा कर इस दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश में प्रकृति और परमात्मा की विशेष कृपा है। कृषि को गोवंश के साथ जोड़कर योजना बनाई जायें। मुख्य वक्ता प्राकृतिक कृषि प्रणेता पद्मश्री सुभाष पालेकर, विशिष्ट अतिथि कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही, राज्यमंत्री स्वाति सिंह, महापौर संयुक्ता भाटिया ने कार्यक्रम को संबोधित किया।
सूर्यप्रताप सिंह ने बताया कि भौतिकता की आंधी ने धरती को बीमार कर दिया है। पीलीभीत में इतना अधिक यूरिया का इस्तेमाल हुआ कि सबसे अधिक कैंसर रोगी वहां पाए गए। रसायन और उर्वरकों के स्थान पर प्राकृतिक खेती ही विकल्प है। भूमि का महत्व बीज से अधिक है। हर किसान के हाथ में मृदा परीक्षण कार्ड जाना चाहिए, उनकी जमीन का परीक्षण होना चाहिए। गोआधारित खेती से इन समस्याओं का समाधान संभव है। फसल तंत्र के स्थान पर खेती तंत्र विकसित होना चाहिए। कृषि तंत्र का आज तक कोई मॉडल ही विकसित नहीं किया गया। दलहन और तिलहन विदेशों से मंगाना पड़ रहा है। फसल चक्र अपनाकर 90 फीसदी यूरिया को कम किया जा सकता है। जीवामृत, बीजामृत और घनामृत के माध्यम से उर्वरक की जरूरत को पूरा किया जा सकता है। कृषि लागत यदि शून्य हो स्वतः कृषि आय दोगुनी हो जाएगी। आज हमारा बीज हर वर्ष बीज खरीदने की परंपरा बन गई है। क्रॉस ब्रीड ने हमारी लागत बढ़ा दी है। खाद्य पदार्थों से पोषक तत्वों की मात्रा घट रही है। हमारा शरीर आज बीमार बन चुका है। सबसे अधिक प्राकृतिक संसाधन, मौसम, पर्यावरण और उपजाऊ जमीन हमारे पास है। इस वर्ष प्रदेश में 20 हजार किसानों को सोलर पंप देंगे। इससे सिंचाई की गारंटी मिलेगी, बिजली खपत कम होगी, आमदनी बढ़ेगी। वैश्विक जरूरतों की मांग को ध्यान में रखते हुए हमें अपना उत्पादन करना होगा। मांग आधारित उत्पादन को ध्यान में रखकर हमें कृषि करने की जरूरत है। प्राकृतिक खेती पर आधारित पांच एकड़ में एक मॉडल विकसित किया जाएगा। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मंत्री स्वाति सिंह ने बताया कि गांधी ने कहा था कि हमारी मिट्टी में इतनी क्षमता है कि वो हमारी खाद्य जरूरतों को पूरा कर सकती है, बस हमारे लालच को पूरा करने की क्षमता उसमें नहीं है। मंडी परिषद ने कृषि छात्रों को दी जाने वाली छात्रवृत्ति बढ़ाई गई। नील गायों की समस्या 9 महीने की नहीं है। शून्य लागत कृषि से हम पानी की समस्या से निजात प्राप्त करेंगे। हमारे आलू के उत्पादन में पानी की मात्रा अधिक है इसलिए उसको प्रोसेसिंग यूनिट में नहीं इस्तेमाल कर सकते हैं।
इस दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय अधिकारी मधुभाई कुलकर्णी, डॉ दिनेश सिंह, अशोकजी बेरी, लोकभारती के राष्ट्रीय संगठन मंत्री बृजेंद्र सिंह, कार्यक्रम समन्वयक गोपाल उपाध्याय, प्रचार प्रसार प्रमुख शेखर त्रिपाठी, मीडिया प्रभारी डॉ नवीन सक्सेना के साथ अन्य लोग मौजूद रहे।
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