Breaking News

नितीश ने किया जनादेश का अपमान

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

बिहार में भाजपा और जेडीयू गठबंधन को पांच वर्ष सरकार चलाने का जनादेश मिला था. नितीश कुमार ने निजी महत्वाकांक्षा में इस जनादेश का अपमान किया है. इस समय अनेक क्षेत्रीय नेता अगले लोकसभा चुनाव के हसीन सपने देख रहे हैं. इसमें उन्हें देवगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल युग की वापसी नजर आ रही है.सपने को सच मानते हुए सभी क्षत्रप एक दूसरे को पछाड़ने में लगे है. कांग्रेस राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहती है. ममता बनर्जी और शरद पवार भी अभी से कमान अपने नियन्त्रण में रखने की कवायद कर रहे है.

यह सन्योग है कि कांग्रेस राष्ट्रवादी कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस इस समय घोटालों के आरोप का सामना कर रहे है. शायद इसी बात से नितीश कुमार को एक बार पलटी मारने की प्रेरणा मिली. यह सही है कि भाजपा के साथ सरकार चलाते हुए उनकी छवि सुशासन बाबू के रूप में स्थापित हुई है. उनके ऊपर घोटालों और परिवार वाद के आरोप नहीं हैं. इसलिए उनकी भी महत्वाकांक्षा जागृत हुई है.विपक्षी गठबन्धन में वह अपने लिए बड़ी भूमिका देख रहे हैं. इसके लिए राजग से अलग होना आवश्यक था. एक बार फिर वह उस पाले में पहुँच गए जहां कुछ महिने भी उनका टिकना सम्भव नहीं हुआ था. नितीश कुमार ने पहली बार पलटी नहीं मारी है. पहले भी वह राजद के साथ चुनाव लड़ कर मुख्यमन्त्री बने थे. तब लालू यादव के दोनों पुत्र उनके मंत्रिमण्डल में थे. नितीश कुमार उनके साथ काम करने का अनुभव भूले नहीं होंगे. कुछ महिने में उनकी हिम्मत जबाब देने लगी थी.

ईमानदारी से सरकार चलाने की संभावना समाप्त हो रही थी. नीतीश को अपनी गलती का अनुभव हुआ. वह पुनः राजग में लौट आए थे. तब उन्होंने कहा था कि वह मिट्टी में मिल जाएंगे, लेकिन राजद से कभी समझौता नहीं करेंगे. इसके बाद नीतीश कुमार का राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव के साथ निजी आरोप प्रत्यारोप का दौर भी चलता रहा.एक बार नीतीश ने अपने लिए वही स्थिति स्वीकार की है,जिसे उन्होने अपने जीवन की बड़ी भूल बताया था. वह मुख्यमंत्री पद पर फ़िलहाल बने रहेंगे. राजद के साथ उनके पास बहुमत भी होगा.
उनके पास बहुमत तो होगा लेकिन विश्वसनीयता नहीं होगी. वह जानते हैं कि अब उन पर राजद का भारी दबाब होगा. पहले इसी दबाब से वह कराह उठे थे. इस बार तो जेडीयू का संख्याबल भी कम है. नीतीश कुमार इस समय उद्धव ठाकरे की राह पर हैं. मुख्यमन्त्री बनने की चाहत में उन्होने भी जनादेश का अपमान किया था.

विधानसभा चुनाव में बिहार में लालू यादव की विरासत को जनादेश नहीं मिला था। कई वर्ष पहले ही राजद बिहार की राजनीति में हाशिये पर चला गया था। लोकसभा से लेकर विधानसभा तक उसका सँख्या बल बहुत कमजोर हो गया था। लेकिन पिछले आम चुनाव के पहले जेडीयू प्रमुख व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एनडीए से अलग हो गए। उन्होंने राजद व कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। नीतीश कुमार के पास भाजपा के साथ मिलकर हासिल की गई उपलब्धियां थी। इसी गठबंधन सरकार के कारण उन्हें सुशासन बाबू की प्रतिष्ठा मिली थी। राजद और कांग्रेस के सहयोग से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री तो बन गए थे लेकिन कांग्रेस और लालू यादव के दबाव में वह कमजोर हो गए थे। नीतीश कुमार ज्यादा समय तक यह दबाव बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं थे। लालू यादव पर घोटालों के जैसे गहरे दाग थे, वह उनके उत्तराधिकारियों तक पहुंच गये थे। लालू ने अपने पुत्र तेजस्वी को उपमुख्यमंत्री व दूसरे पुत्र तेजप्रताप को कैबिनेट मंत्री बनवाया था। इन पर मॉल निर्माण में गड़बड़ी के आरोप लगे थे। उनके निर्माणाधीन मॉल में नियमों के पालन न होने के प्रमाण थे। इसे बिहार का सबसे बड़ा मॉल बताया जा रहा था. यह मसला कुछ शांत हुआ तो तेजस्वी के खिलाफ अवैध संपत्ति के मामले खुलने लगे.

इनके साथ सरकार चलाने से नीतीश की छवि धूमिल हो रही थी। तेजस्वी, मीसा और उनके पति की बेनामी संपत्ति का खुलासा हो रहा था। अन्य परिजनों के पास भी बेनामी संपत्ति की चर्चा शुरू हुई है। तब सोनिया गांधी व राहुल गांधी बिहार की नीतीश सरकार को चलाना चाहते थे, जैसी संप्रग सरकार को चला रहे थे। इसके बाद नितीश को अपनी छवि की चिंता हुई .उन्हें अनुभव हुआ कि कांग्रेस और राजद के साथ उनका गठबंधन अस्वाभाविक था। इससे केवल नीतीश का ही नहीं बिहार का भी नुकसान हुआ। बिहार को जंगलराज से बाहर निकालने का श्रेय राजग सरकार को है। नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार ने राज्य में विकास का माहौल बनाया। विकास की यह यात्रा तेजी से आगे बढ़ रही है। बिहार में कोसी महासेतु परियोजना कांग्रेस सरकार के समय से लंबित थी, इसको पूरा कराया गया। मुद्रा योजना के तहत रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए गए.

इस योजना के तहत बिहार को करीब एक लाख करोड़ रुपये दिए गए हैं। गांव किसान, गरीब, पिछड़ों, दलितों आदिवासियों के लिए कई योजनाएं चल रही हैं। छोटे किसानों, पशुपालकों मत्स्यपालक के लिए किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा लाई जा रही है। इसके लिए सरकार बीस हजार करोड़ रुपये खर्च कर रही है। इसका लाभ बिहार के किसानों को भी होगा। कृषि कानून में सुधार से किसानों को लाभ मिलेगा। उन्हें खेत के पास भंडारण की सुविधा मिलेगी। बिहार में मेडिकल इंजीनियरिंग कॉलेज और एम्स खोले जा रहे हैं। बिहार को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से जोड़ा जा रहा है.

बिहार प्रधानमंत्री ऊर्जा योजना से लाभान्वित हुआ. जलालगढ़ अररिया होते हुए गैस पाइपलाइप बिछाने का काम चल रहा है। फारबिसगंज जोगबनी या फारबिसगंज सीतामढ़ी हाईवे का निर्माण महत्वपूर्ण है। पूर्णिया में एयरपोर्ट के विस्तारीकरण की प्रक्रिया भी चल रही है। गलगलिया अररिया रेललाइन का काम भी चल रहा है। बिहार में गैस ग्रिड का विस्तार हो रहा है। जबकि राजद के पंद्रह वर्षीय शासन में बिहार जंगलराज के रूप में चर्चित हुआ था. बिहार परिवारवाद जातिवाद और घोटालों में जकड़ गया था.राजग की सरकार ने बिहार को इस नकारात्मक छवि से बाहर निकाला था.

नितीश कुमार राजग सरकार के मुखिया थे.बिडम्बना यह कि वही नितीश कुमार बिहार को एक बार फिर जंगलराज की तरफ ले जाने वाली पार्टी की शरण में हैं. बताया गया कि कुछ दिन पहले नीतीश कुमार पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के दरबार में पेश हुए थे. उन्होने राजग से अलग होने की उनको जानकारी दी थी.इसी के साथ यह निवेदन भी किया था कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उनको ही आसीन रखा जाए. आरोपों से घिरी राजद के लिए सत्ता मे भागीदारी भी फिलहाल कम नहीं है. नितीश ने दबाब से परेशान होकर राजद को छोड़ा था. एक बार फिर वह उसी खेमे में पहुँच गए है.कांग्रेस और राजद के साथ वह कितने सम्मान के साथ सरकार चलाएंगे, यह देखना दिलचस्प होगा.

(उपरोक्त लेखक के निजी विचार हैं….!!)

About Amit Anand Kushwaha

Check Also

शाहजहांपुर के मिर्जापुर में उमड़ी किसानों की भीड़, पुलिस ने कराया वितरण

शाहजहांपुर के मिर्जापुर स्थित साधन सहकारी समिति में गुरुवार को सुबह से ही खाद का ...