आयुर्वेद में दवा की अपेक्षा ज्यादा थैरेपी देकर गंभीर बीमारियों का उपचार करते हैं. छोटी बीमारियों के लिए किचन बहुत बड़ी फार्मेसी है. इसका ठीक ढंग से इस्तेमाल के लिए जानकारी का होना महत्वपूर्ण है.
शरीर की तीन प्रकृति वात, पित्त और कफ होती है. इसका संतुलन होना बहुत महत्वपूर्ण है. शरीर में तीनों तत्वों का संतुलन बिगड़ने से आदमी बीमार होता है. प्रकृति अनुसार ही भोजन करें, इससे पोषक तत्वों का बैलेंस बनता है. इसलिए समय से सुपाच्य, पोषकतत्वों से भरपूर आहार लेना चाहिए.
आयुर्वेद को अपनाएंगे तो स्वास्थ्य वर्धक हो जाएंगे
आयुर्वेद स्वस्थ आदमी के स्वास्थ्य को व मजबूत करता है. किसी मरीज का उपचार उसकी प्रकृति के अनुसार किया जाता है. उपचार के दौरान आहार, पोषण आयुर्वेद के अनुसार तय करते हैं. यह जानना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि कब, क्या, कहां, कैसे, कितना खाना है. यह कैलोरी, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट के कांसेप्ट से ज्यादा जरूरी है. स्वास्थ रहने के लिए आहार, निद्रा व ब्रह्मचर्य मुख्य स्तंभ है. ऋतु के अनुसार खानपान और जीवनशैली के बारे में जानना महत्वपूर्ण है. नियमित योग कर अपने स्वास्थ्य को व अच्छा बना सकते हैं. ठीक ढंग से नींद नहीं लेने की वजह से दिक्कतें ज्यादा बढ़ती है.
आयुर्वेद में रोगी की प्रकृति अनुसार उपचार करते
1,000 ईसा पूर्व में आयुर्वेद चिकित्सा को 8 खंडों में विभाजित है. काय चिकित्सा (मेडिसिन), बाल चिकित्सा, मानसरोग (न्यूरोलॉजी), शल्य चिकित्सा (सर्जरी) व शालक्य चिकित्सा (ईएनटी-दांत), अगद तंत्र (टॉक्सिकोलॉजी),रसायन और वृष्य चिकित्सा भी शामिल है. इन चिकित्सा पद्धतियों के बारे में भिन्न-भिन्न ग्रंथों में वर्णन है.
प्रकृति के अनुसार लेंगे आहार तो बनेंगे सेहतमंद
वात प्रकृति के हैं तो मधुर, लवण व अम्ल रस वाले आहार लें. पित्त प्रकृति के हैं तो मधुर, तिक्त और कषाय रस वाले आहार लें. कफ प्रकृति के लोग कटु, तिक्त, कषाय रस वाले आहार ले सकते हैं. अन्य प्रकृति के लोग आयुर्वेद विशेषज्ञ की सलाह से ही आहार लें. भोजन में 6 रस मधुर, लवण, अम्ल, कटु, तिक्त और कषाय होते हैं.
मन की स्वास्थ्य के लिए योग और प्राणायम करें
सुबह 10 मिनट नियमित प्राणायाम व 30 मिनट योगासन करें. अनुलोम-विलोम, भ्रामरी, भस्त्रिका में से कोई भी कर सकते हैं. सूर्य नमस्कार दो सेट दो बार करें, यह सामान्य अभ्यास है. डॉक्टर की सलाह और प्रशिक्षक की निगरानी में ये आसन करें.