राज्यपाल के रूप में गत वर्ष उनतीस जुलाई को राम नाईक ने अपना कार्यकाल पूर्ण किया था। उत्तर प्रदेश में व्यतीत किये गए पांच वर्ष आज भी उनको भाव विभोर करते है। यहां की स्मृतियों को उन्होंने आज भी संजो कर रखा है। यह बात उत्तर प्रदेश के लिए लिखे गए उनके खुले पत्र से उजागर हुई। इसे पत्र में उल्लिखित एक प्रसंग से समझा जा सकता है। लखनऊ में एक पत्रकार ने उनसे पूंछा था कि क्या आपको मुम्बई की याद नहीं आती है। यह पूंछने का शायद कारण यह रहा होगा कि राज्यपाल रहते हुए राम नाईक पूरी तरह उत्तर प्रदेश के होकर रह गए थे। राज्यपाल के रूप में उपलब्ध अवकाशों का भी वह कभी पूरा उपयोग नहीं करते थे।
राम नाईक ने इस प्रश्न के उत्तर में भावपूर्ण उत्तर दिया था। कहा था कि याद तो आती है,उस तरह जैसे कोई महिला अपने मायके को याद करती है। गृहणी अपने घर के हित कल्याण के लिए समर्पित रहती है। फिर भी मायके को याद तो करती ही है। राम नाईक भी जब तक राज्यपाल रहे उत्तर प्रदेश के लिए समर्पित रहे। वह अक्सर कहते थे कि इसे उत्तम ही नहीं सर्वोत्तम प्रदेश बनाना है। उत्तर प्रदेश के पांच वर्षों में उनके पास बेशुमार यादें है। लेकिन सबका उल्लेख खुले पत्र में संभव नहीं हो सकता। जन्मभूमि पर श्री राम लाल विराजमान मंदिर के प्रति उनकी सदैव आस्था रही है। पांच अगस्त के भूमि।पूजन को लेकर वह उत्साहित है। यह समारोह कोरोना दिशा निर्देशों के अनुरूप होना है। वह मुम्बई से आ नहीं सकते। लेकिन पत्र से लगा कि यह दिन उनके लिए पर्व की तरह होगा। वह लिखते है कि पांच अगस्त को वह मुम्बई में रह कर दीपोत्सव मनाएंगे।
राज्यपाल के रूप में वह अयोध्या जी के दीपोत्सव में सम्मलित भी हो चुके है। इसी प्रकार इलाहाबाद को उसका पुराना नाम मिलना भी उन्हें आनन्दित करता है। राज्यपाल के रूप में उन्होंने इसको पुराना नाम प्रयागराज करने का सुझाव दिया था। यह मान्य हुआ। वह कहते थे कि इस बार कुम्भ इलाहबाद में नहीं होगा। कुछ पल के लिए लोग भ्रमित होते थे। अगली लाइन में वह कहते थे कि इस बार कुम्भ प्रयागराज में होगा। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ प्रयागराज कुम्भ में सहभागी बने थे। इसी प्रकार फैजाबाद को उसका पुराना नाम अयोध्या मिला। बम्बई नाम दुनिया की जुबान पर था। राम नाईक ने मुम्बा देवी के नाम पर स्थापित इस महानगर का नाम मुम्बई करने का प्रस्ताव किया था। अब यही नाम प्रचलित है। आज भी उन्हें उत्तर प्रदेश की चिंता रहती है।
वह पत्र के माध्यम से कोरोना दिशा निर्देशों पर अमल का आग्रह करते है। इस बात पर संतोष व्यक्त करते है कि सबसे बड़ा प्रदेश होने के बाद भी कोरोना प्रभावित शीर्ष पांच प्रदेशों में इसका नाम नहीं है। इसके लिए वह उत्तर प्रदेश सरकार की प्रशंसा करते है। खुला पत्र संक्षेप में है। कुछ आंकड़े वस्तुतः उनकी कार्यशैली को रेखांकित करने वाले है। यह राज्यपाल पद के लिए भविष्य में भी प्रेरणा देते रहेंगे। राजभवन में उन्होंने तीस हजार लोगों से मुलाकात की थी, दो हजार कार्यक्रमों में उनकी सहभागिता हुई,उन्होंने दो लाख इक्कीस हजार पत्र लिखे। यह सब उनकी चरैवेति चरैवेति जीवन शैली से संभव हुआ। पत्र का समापन भी वह अपनी चर्चित पुस्तक के इसी शीर्षक से करते है।