कोरोना संकट अभूतपूर्व है। इसका सामना पहली बार किया जा रहा है। इसका प्रभाव जीवन के प्रत्येक पहलू पर है। संसद का सत्र भी इससे अलग नहीं है। संविधान के अनुसार संसद के दो सत्रों के बीच छह माह से अधिक का समय नहीं होना चाहिए। इसलिए सत्र अपरिहार्य था। कोरोना के कारण विशेष दिशा निर्देशों के अनुरूप मानसून सत्र आहूत किया गया। परिस्थियों के अनुरूप इसे संक्षिप्त करना भी आवश्यक था। इसलिए प्रश्नकाल को शामिल नहीं किया गया।कुछ लोग इसी पर प्रश्नों की बौछार कर रहे है। ऐसा लग रहा है जैसे यह व्यवस्था स्थाई है।
प्रश्नों के नाम पर हंगामा भी खूब देखा गया है। वैसे भी सरकार से प्रश्न पूंछने वाले संसद सत्र के मोहताज नहीं होते, उनके सवालों का स्तर चाहे जो हो,लेकिन वह सत्र की प्रतीक्षा में रुके नहीं रहते। पिछले सत्र के बाद देश में दो सर्वाधिक ज्वलन्त मुद्दे रहे है। पहला कोरोना और दूसरा चीन के साथ तनाव। इन दोनों मसलों पर विपक्ष सरकार के हमले लगातार जारी रहे। सरकार से प्रश्न पूंछने का एक भी अवसर विपक्ष ने हाँथ से जाने नहीं दिया। विपक्ष को प्रजातन्त्र की यह ताकत देखनी चाहिये। इसका उपयोग वह लगातार कर भी रहा है। ऐसे में विपक्ष को स्वयं उदारता दिखानी चाहिए थी। उसे कोरोना काल में नई व्यवस्था के सत्र का स्वागत करना चाहिए।
संसद के मानसून सत्र के पहले दिन लोकसभा ने कामकाज की नई व्यवस्था को मंजूरी दी। प्रश्नकाल न कराने के फैसले पर विपक्ष आपत्ति अनुचित थी। उसे परिस्थितियों के अनुरूप जिम्मेदारी दिखानी चाहिए थी। लेकिन उसने राजनीति को ज्यादा महत्व दिया। इसे लोकतंत्र का गला घोंटने वाला कदम करार दिया। असाधारण परिस्थितियों में हो रहे इस सत्र में संसद के इतिहास में ऐसा पहली बार सांसद चैंबर और दर्शक दीर्घाओं में भी बैठें। यह प्रयास एवं सुरक्षा इंतजाम सांसदों के बीच शारीरिक दूरी बनाये रखने के उद्देश्य से किया गया है। मोबाइल ऐप के माध्यम से सदस्य उपस्थिति दर्ज करा सकते हैं,ऑनलाइन प्रश्न पूछे जा सकते हैं और उनके उत्तर पाए जा सकते हैं। लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि महामारी से बचने के उद्देश्य से इस बार सदन के संचालन में कुछ बदलाव किए गए हैं। यह तय हुआ है कि सदन की कार्यवाही केवल चार घंटे चलेगी और सदस्य सीट पर बैठकर ही आपनी बात रखेंगे।
लोकसभा कक्ष, राज्यसभा कक्ष, लोकसभा दर्शक दीर्घा और राज्यसभा दर्शक दीर्घा में विभिन्न दलों को सीटें आवंटित कर दी गई हैं और यह उन पर पर निर्भर करता है कि वह अपने किस सदस्य को कहां बैठाते हैं। इस नई व्यवस्था के लिए नियम तीन सौ चौरासी को शिथिल करने का प्रस्ताव है। जिससे राज्यसभा के सदस्यों को लोकसभा के चेंबर में बैठने की अनुमति मिल सकेगी। ज्यादातर पार्टियों के लोग प्रश्नकाल को हटाने पर सहमत हुए हैं। घंटे का एक जीरो ऑवर है। इसमें कोई भी प्रश्न पूछ सकता है। लिखित प्रश्न के माध्यम से जो भी जानकारी चाहिए उसकी जानकारी मंत्री देंगे। शून्य काल के दौरान भी प्रश्न पूछ जा सकते हैं।इस समय सीमा और कोरोना पर संसद से विचार की अपेक्षा है।
दोनो ही ऐसे विषय है जिस पर राजनीति नही होनी चाहिए। प्रधानमंत्र नरेंद्र मोदी ने ठीक कहा कि संसद सीमाओं की रक्षा करने वाले सैनिकों के साथ एकजुटता दिखाएगी। मातृभूमि की रक्षा में लगे इन सैनिकों के लिए सदन भी एक स्वर से संदेश देगा कि सेना के जवानों के पीछे देश खड़ा है। उन्होंने कहा कि वायरस का टीका मिलने तक कोई ‘ढिलाई नहीं बरती जा सकती है। मॉनसून सत्र के पहले दिन ही आयुष मंत्रालय के दो विधेयक सर्वसम्मति से पारित कर दिए गए। लोकसभा में नेशनल कमीशन फॉर होम्योपैथी बिल और नेशनल कमीशन फॉर इंडियन सिस्टम ऑफ मेडिसिन बिल को पास कर दिया गया। दोनों विधेयक राज्य सभा में पहले ही पास किये जा चुके हैं। नेशनल कमीशन फॉर होम्योपैथी बिल का मकसद होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति को मजबूती प्रदान करने के साथ इस क्षेत्र में सुधार करना भी है।
इंडियन सिस्टम ऑफ मेडिसिन बिल के पास होने से भारतीय चिकित्सा पद्धति को बल मिलेगा और वांछित सुधार किए जा सकेंगे। केन्द्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्री डॉ हर्ष वर्धन ने लोकसभा में कोरोना की स्थिति पर बयान दिया। कहा कि लॉकडाउन के चार महीनों के दौरान देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत किया जा सका। देश के अस्पतालों में आईसोलेशन बेड छतीस गुना,आईसीयू बेड चौबीस गुना से अधिक बढ़ोतरी की जा चुकी है। अबतक चालीस लाख लोगों को निगरानी में रखा जा चुका है।कोरोना पॉजिटिव लोगों के संपर्क में आए लोगों की पहचान कर उन्हें बाकी लोगों से आईसोलेट किया गया है। देश में कोरोना की जांच के लिए अबतक सत्रह सौ से अधिक लैब स्थापित किए जा चुके हैं।
