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पिज्जा

हाईवे पर बने विशाल फूड जोन में केवला को नौकरी मिल गई थी। बस, कोने में खड़े रहना था और टेबल खाली होते ही उस पर पड़ी डिसें और नैपकिन सहित सारे कचरे को उठाकर डस्टबीन में डाल कर टेबल साफ करना था। पहले ही दिन महंगी गाड़ियों से आने वाले सुसंस्कृत लोगों को खाना खराब करते देख केवला को बहुत गुस्सा आया था, पर वहां वह कुछ कह नहीं सकता था।

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घर में मर गए बेटे के नन्हे से बच्चे को सूखी रोटी और लहसुन की चटनी खिलाते समय वह यही सिखाता था कि भोजन भगवान है, इसलिए इसे चूर भर भी थाली में नहीं छोड़ना चाहिए। पर उस हिसाब से देखा जाए तो यहां तो सभी थोड़ा-थोड़ा भगवान को छोड़कर चले जाते हैं। टेबल साफ करते समय केवला माफी मांगते हुए कहता कि भगवान इन्हें माफ करना।

पिज्जा-Pizza

वहां खाने की चीजों के भाव अंग्रेजी में लिखे थे, इसलिए उसे पता नहीं चला कि कौन चीज कितने की है। पर जिस दिन उसे पता चला कि एक छोटी सी रोटी, जिस पर कुछ लगा होता है, लोग उसे पिज्जा कहते हैं, उसका भाव उसके एक सप्ताह के वेतन के बराबर है, उस दिन उसे सारी रात नींद नहीं आई थी।

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रोज-रोज आने वालों तमाम लोग उस पिज्जा को खाते थे। खास कर छोटे बच्चे तो जिद कर के उसे मंगाते। जब भी केवला छोटे बच्चों को पिज्जा (Pizza) खाते देखता, उसे अपने पौत्र दीनू की याद आ जाती। बूढ़े केवला के दिल में एक युवा इच्छा जाग उठी कि एक दिन वह अपने दीनू को पिज्जा जरूर खिलाएगा।

साढ़े सात सौ में कितने दिन का राशन आ जाएग, यह सोच कर केवला पीछे हट जाता। पर एक दिन उसे लगा कि यहां रोजाना बच्चे खुशी खुशी पिज्जा खाते हैं तो उसके दीनू ने कौन सा गुनाह किया है?

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केवला खुद्दार था, इसलिए वह पिज्जा मांग नहीं सकता था। आखिर उसने पूरे एक महीने दो घंटे अधिक काम कर के पिज्जा खरीद ही लिया। शाम को छुट्टी होने पर वह पिज्जा ले कर घर पहुंचा। डिब्बे में देना अच्छा नहीं लगा, इसलिए उसने टूटी-फूटी थाली में निकाल कर दीनू के आगे पिज्जा रख दिया।

दीनू उसे प्यार से देखने लगा। केवला को लग रहा था कि पिज्जा मुंह में रखते ही दीनू उछल पड़ेगा। दीनू ने ऐसी रोटी पहली बार देखी थी। एक टुकड़ा तोड़कर मुंह में रख कर जोर से बोला, “दादा यह तो एकदम फीका है, थोड़ी लहसुन की चटनी दो न।”

     वीरेंद्र बहादुर सिंह

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