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इतिहास के मुस्लिम विरोधी नैरेटिव के खिलाफ़ राजनीतिक दलों को बोलना होगा- शाहनवाज़ आलम

नयी दिल्ली। मुस्लिम समुदाय (Muslim community) पर बढ़ते सांप्रदायिक हमलों (Communal Attacks) पर सेकुलर राजनीतिक दलों (Secular Political Parties) और नागरिक समाज (Civil Society) को और मुखर होकर बोलना पड़ेगा। न्यायपालिका और कार्यपालिका (Judiciary and Executive) की तरफ से मुसलमानों के हितों के खिलाफ़ की जा रही कार्यवाईयों पर चुप्पी के कारण हालत और बिगड़ रहे हैं। ये बातें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव (AICC Secretary) शाहनवाज़ आलम (Shahnawaz Alam) ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 186 वीं कड़ी में कहीं।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि भाजपा ने मध्यकाल के इतिहास को सांप्रदायिक नज़रिए से प्रचारित कर के मुसलमानों के खिलाफ़ एक नफ़रत भरा हिंसक माहौल बनाने में सफलता हासिल कर ली है। भाजपा विरोधी सेकुलर दलों को इस माहौल के खिलाफ़ स्पष्ट रणनीति बनानी होगी। कोई भी राजनीतिक दल यह कहकर चुप नहीं रह सकता कि ये अतीत के मुद्दे हैं। इसलिए वो उसपर चुप रहेगा। राजनीतिक दलों के लिए यह अवसर है कि वो अपने कार्यकर्ताओं को इतिहास की सही जानकारी दें और समाज में उसके प्रचार-प्रसार का अभियान चलाएं। इसके अभाव में यह लडाई नहीं जीती जा सकती।

एआईसीसी सचिव ने कहा कि वक़्फ़ संशोधन बिल, पूजा स्थल अधिनियम 1991 और यूनिफॉर्म सिविल कोड जैसे मुद्दों का मोदी सरकार न्यायपालिका के एक हिस्से के सहयोग से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने के लिए इस्तेमाल कर रही है। लेकिन अफसोस की बात है कि इन मुद्दों पर उस तरह का राजनैतिक विरोध नहीं दिख रहा है जैसा दिखना चाहिए। यह एक तरह से अपने घोषित मूल्यों से पलायन है, जिससे लोकतंत्र कमज़ोर हो रहा है।

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कांग्रेस नेता ने कहा कि जुमे के दिन पड़े होली को सांप्रदायिक उन्माद फैलाने का अवसर बनाने के लिए कई भाजपा नेताओं ने सांप्रदायिक बयानबाजी की लेकिन किसी के खिलाफ़ भी न्यायपालिका ने स्वतः संज्ञान नहीं लिया। जिससे साबित होता है कि न्यायपालिका के एक हिस्से का भी सहयोग सांप्रदायिक नेताओं को मिला हुआ है। अगर ऐसे बयानों पर न्यायपालिका ने अपनी संवैधानिक ज़िम्मेदारी निभाई होती तो ऐसे सभी नेता आज जेल में होते। शाहनवाज़ आलम ने कहा कि संवैधानिक संस्थाओं खासकर न्यायपालिका को जवाबदेह बनाने के लिए सभी सेकुलर दलों और लोगों की एकजुटता समय की मांग है।

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