भारत का स्वतन्त्रता संग्राम बहुत व्यापक रहा है। इसका क्रम प्रथम स्वातंत्र्य संग्राम 1857 से लेकर स्वतन्त्रता प्राप्ति तक विस्तृत है। इसमें देश के महान सेनानियों की गौरव गाथा समाहित है। अनेक ऐसे भी प्रसंग है,जिन पर पर्याप्त विचार विमर्श नहीं हुआ। आज भी इनपर व्यापक शोध की आवश्यकता है।
जिससे आमजन को अपने सेनानियों के संबन्ध में जानकारी उपलब्ध हो सके। चौरीचौरा घटना को तो सभी लोग जानते है। राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में इसका उल्लेख है। किंतु इससे संबंधित महान स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों के प्रसंग अनछुए ही रह गए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चौरी चौरा घटना के शताब्दी समारोह का आयोजन किया। यह समारोह वर्ष भर चलेगा। इससे अनेक तथ्य उजागर होंगे। चौरी चौरा पर शोध कार्यों को प्रोत्साहन भी दिया जाएगा।
शुभारंभ का सन्देश
चौरी चौरा शताब्दी समारोह के शुभारंभ पर पर अनेक अनछुए तथ्य प्रकाश में आये। इस घटना के संदर्भ में मदन मोहन मालवीय और बाबा राघव दास का भी नाम है। इसकी जानकारी कम ही लोगों को रहती है। मदन मोहन मालवीय अहिंसा पर विश्वास रखते थे। महात्मा गांधी के निकट सहयोगी थे। गांधी जी उनके प्रशंसक थे। चौरी चौरा आगजनी के बाद असहयोग आंदोलन समाप्त किया गया था। यहीं तक जानकारी सीमित रखी गई। सच्चाई इसके आगे भी है। महात्मा गांधी के निकट सहयोगी मदन मोहन मालवीय इस घटना से जुड़े लोगों का बचाव करते है,उनकी पैरवी में पूरी ताकत लगा देते है। वह जानते थे कि ये सभी राष्ट्र के सच्चे सपूत है,अंग्रेजों को भगाने के लिए कुछ कर सकते है। इसके साथ ही यहां का सन्देश राष्ट्रीय आंदोलन को मजबूत बनाने वाला है।
किसानों का योगदान
स्वतन्त्रता में किसानों का भी बहुत योगदान था। उन्होने राष्ट्रीय भाव ने ही भारतीय संस्कृति सभ्यता को विदेशी आक्रांताओं से सुरक्षित रखा। भारत के गांवों तक राष्ट्रीय आंदोलन का विस्तार था। अंग्रेजों के आने से ठीक पहले तक भारत के लाखों गांव शिक्षा व अर्थव्यवस्था की की द्रष्टि से स्वावलम्बी थे। यह सच्चाई अंग्रेजों द्वारा गठित एक कमेटी की रिपोर्ट से उजागर हुई थी। इसके बाद ही अंग्रेजों ने अपनी शिक्षा नीति और अर्थतंत्र भारत में लागू करने का प्रयास किया था। किसानों ने अंग्रेजों के विरुद्ध मोर्चा लिया था। इसका स्वरूप व्यापक व शांतिपूर्ण था। चौरी चौरा में अवश्य हिंसा हुई।
ब्रिटिश सत्ता पर प्रहार
चौरी चौरा में जो हुआ वह ब्रिटिश दासता के प्रतीक पर ही प्रहार था। इसकी परिस्थितियों का निर्माण भी अंग्रेजों की दमनकारी नीति से हुआ था। चौरी चौरा घटना के बाद असंख्य ग्रमीणों को ब्रिटिश सत्ता द्वारा प्रताड़ित किया गया। आस पास के अनेक गांवों में उनका दमन चक्र चला। लेकिन किसान विचलित नहीं हुए थे। उन्होंने अत्याचार झेले लेकिन ब्रिटिश सत्ता के सामने घुटने टेकने से इनकार कर दिया। इतिहास में इस घटना को सम्पूर्ण रूप में प्रस्तुत ही नहीं किया गया। असहयोग आंदोलन के संदर्भ में इसका संक्षिप्त उल्लेख किया जाता है। लेकिन उसके बाद अंग्रेजों के दमन चक्र से भारतीयों में आक्रोश बढा था। इससे प्रकारान्तर में स्वतन्त्रता संग्राम को ही बल मिला है। यहां का सन्देश राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचा था।
व्यापक परिप्रेक्ष्य
चौरी चौरा घटना को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखने की आवश्यकता थी। लेकिन इसकी अवहेलना की गई। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस ओर ध्यान दिया। यह पहला अवसर नहीं है जिसमें उन्होंने ऐसा प्रेरणा दायक समारोह आयोजित किया है। इसके पहले योगी आदित्यनाथ ने बाल गंगाधर तिलक के महान उद्घोष की शताब्दी समारोह पर समारोह आयोजित कराया था। बाल गंगाधर तिलक ने लखनऊ में ही कहा था कि स्वतन्त्रा हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसको लेकर रहेंगे। इसके बाद योगी आदित्यनाथ ने महात्मा गांधी की एक सौ पचासवीं जन्मजयंती पर समारोहों का आयोजन कराया गया था।
इसके अंतर्गत उत्तर प्रदेश विधानमंडल का अड़तीस घण्टे तक विशेष अधिवेशन आयोजित किया गया था। इसमें संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित सतत विकास के लक्ष्यों पर विचार विमर्श आयोजित किया गया था। इस विचार विमर्श से स्पष्ट हुआ कि संयुक्त राष्ट्र संघ का यह प्रस्ताव गांधी चिंतन के ही अनुरूप था। इसी प्रकार चौरी चौरा घटना के शताब्दी समारोह के आयोजन का निर्णय लिया गया।
योगी आदित्यनाथ ने स्वयं इसकी रचना को देखा,सफल व प्रभावी आयोजन के लिए अधिकारियों को निर्देशित किया। उन्होंने स्वयं चौरी चौरा पहुंच कर तैयारियों का निरीक्षण किया था। इस शताब्दी समारोह पर विशेष टिकट जारी करने के लिए केंद्र से आग्रह किया गया था। योगी आदित्यनाथ ने शताब्दी समारोह में विद्यार्थियों व किसानों की सहभागिता सुनिश्चित करने के निर्देश दिए थे। शताब्दी समारोह में भी किसानों की चर्चा हुई। इसी समय दिल्ली सीमा पर किसानों के नाम पर आंदोलन किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि चौरी चौरा के संग्राम में किसानों की भरपूर भूमिका थी।