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नारी शक्ति वंदन अधिनियम को राष्ट्रपति ने दी मंजूरी, 33 प्रतिशत महिला आरक्षण बना कानून

महिला आरक्षण बिल (नारी शक्ति वंदन अधिनियम) को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार (29 सितंबर) मंजूरी दे दी. यह विधेयक 20 सितंबर को लोकसभा और 21 सितंबर को राज्यसभा में पारित हुआ था.

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किसी भी विधेयक के संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद उसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाता है ताकि वो कानून बन सके.

नारी शक्ति वंदन अधिनियम को राष्ट्रपति ने दी मंजूरी

इस कानून के लागू होने पर लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा. बिल के संसद से पास होने पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा था कि यह लैंगिक न्याय के लिए हमारे समय की सबसे परिवर्तनकारी क्रांति होगी.

संसद के विशेष सत्र में पारित हुआ था महिला आरक्षण बिल

सरकार ने हाल में 18 से 22 सितंबर तक के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया था. इस दौरान दो ऐतिहासिक काम हुए. एक पुराने संसद भवन से कामकाज संसद की नई इमारत में शिफ्ट किया गया और दूसरा दोनों सदनों से महिला आरक्षण बिल पास हुआ.

सरकार ने नारी शक्ति वंदन अधिनियम विधेयक के नाम से महिला आरक्षण बिल को 19 सितंबर को लोकसभा में पेश किया था. सदन में दो दिन इस पर चर्चा चली. ज्यादातर दलों ने इस बिल का समर्थन किया. 20 सितंबर को लोकसभा में इस बिल के पक्ष में 454 मत पड़े और और दो वोट विरोध में पड़े.

विरोध में एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने वोट डाला और उनकी पार्टी के ही एक और सांसद ने विरोध में वोट दिया था. आखिर लोकसभा में दो तिहाई बहुमत से विधेयक पारित हुआ. इसके बाद बिल को अगले ही दिन यानी 21 सितंबर को राज्यसभा में पेश किया गया, जहां इसके पक्ष में 214 वोट डाले गए और विरोध में एक भी मत नहीं पड़ा.

कब तक लागू होगा महिला आरक्षण का कानून?

कई विपक्षी दलों ने बिल का समर्थन तो किया है लेकिन इसे लागू करने के लिए निर्धारित किए गए प्रावधानों को लेकर सरकार की आलोचना की है. दरअसल, बिल के प्रावधान कहते हैं कि है कि इसे जनगणना और परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने के बाद लागू किया जाएगा. लोकसभा चुनाव 2024 के बाद जनगणना होगी और उसके बाद परिसीमन होगा.

जानकारों की मानें तो यह 2029 के लोकसभा चुनाव के आसपास अमल में आ सकेगा, जबकि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस समेत कई पार्टियों ने इसे जल्द से जल्द लागू करने की मांग की है, साथ ही यह भी कहा है कि इसमें ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) और मुस्लिम महिलाओं को भी शामिल करना चाहिए

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