मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कल्याण सिंह को राम भक्त और प्रखर राष्ट्रभक्त बताया। वस्तुतः इन दो शब्दों में उनके व्यक्तित्व व कृतित्व को समझा जा सकता है। जन्मभूमि पर श्री राम मंदिर का निर्माण उनके लिए आस्था का विषय था। इसके लिए वह सैकड़ों बार सत्ता न्योछावर करने को तैयार थे। वह सत्ता को सुशासन की स्थापना का साधन मानते थे। पहले मंत्री और बाद में मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने इस मान्यता को चरितार्थ किया। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि उत्तर प्रदेश की राजनीति जाति,क्षेत्र,मत और मजहब के नाम पर माफिया और अपराधियों द्वारा जकड़ ली गई थी।
ऐसी राजनीति आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हुई थी। कभी सेकुलरिज्म के नाम पर,भारत की सनातन आस्था के नाम पर,सत्ताधारी दलों ने अपना एकमात्र एजेंडा बना लिया था। कल्याण सिंह को जब अवसर मिला तो शासन की धमक और इकबाल का परिचय दिया। उन्होंने सनातन आस्था को मजबूती के साथ प्रस्तुत किया। उनको यह कहने में जरा भी हिचक नहीं हुई कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम के लिए वह सत्ता को एक बार नहीं बार बार ठोकर मार सकते हैं। 6 दिसम्बर को विवादित ढाँचा गिरने के बाद वर्ष 2016- 2017 के कार्यकाल के दौरान समाज के प्रति एक तबके के लिए जो योजना लागू कीं उन्हें आज भी याद किया जाता है।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय से प्रेरणा प्राप्त कर उन्होंने कार्यक्रम बनाएं, योजनाएं बनाईं और भयमुक्त दंगा मुक्त परिकल्पना को साकार किया। उनके द्वारा किए गए कार्य शासन प्रशासन के लिए सदैव अविस्मरणीय रहेंगे। वर्तमान समय में भी उनके द्वारा किए गए कार्यों और प्रयासों से हम सभी को सीख प्राप्त हो रही है। उन्होंने पूरी पारदर्शिता,शुचिता एवं पवित्रता के साथ प्रदेश को आगे बढ़ाया। कल्याण सिंह को विकास पुरुष के रूप में, शासकीय दृढ़ता के रूप में सदैव ही याद किया जाएगा।
कल्याण सिंह 1967 में जनसंघ के टिकट पर अतरौली सीट से पहली बार विधायक बने थे। 1980 तक लगातार इसी सीट से जीतते रहे। भारतीय जनता पार्टी का गठन 1980 में हुआ। उस समय कल्याण सिंह पार्टी के प्रदेश महामंत्री बनाये गये। वह श्री राम मंदिर निर्माण आंदोलन के उत्तर प्रदेश में नायक बन कर उभरे थे। उनके नेतृत्व में भाजपा ने पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी।
मुख्यमंत्री बनने के बाद कल्याण सिंह अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों के साथ अयोध्या गए थे। यहां सभी सदस्यों ने श्री राम मंदिर निर्माण की शपथ ली थी। करीब सोलह महीने बाद यह शपथ पूरी हुई। विवादित ढांचा गिरते ही कल्याण सिंह ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था।
उन्होंने कहा था कि बाबरी विध्वंस भगवान की इच्छा थी। मुझे इसका कोई अफसोस नहीं है। कोई दुख नहीं है। कोई पछतावा नहीं है। ये सरकार राममंदिर के नाम पर बनी थी। उसका उद्देश्य पूरा हुआ। राम मंदिर के लिए एक क्या सैकड़ों सत्ता को ठोकर मार सकता हूं। केंद्र सरकार कभी भी मुझे गिरफ्तार करवा सकती है। क्योंकि मैं ही हूं। जिसने अपनी पार्टी के बड़े उद्देश्य को पूरा किया है।
6 दिसम्बर, 1992 को लगभग एक बजे जब केंद्र सरकार के गृह मंत्री चव्हाण का कल्याण के पास फ़ोन आया। उन्होंने कहा कि मेरे पास यह सूचना है कि कार सेवक गुम्बद पर चढ़ गए हैं। आपके पास क्या सूचना है। कल्याण सिंह ने कहा कि मेरे पास एक कदम आगे की सूचना है कि उन्होंने गुम्बद को तोड़ना भी शुरू कर दिया है। लेकिन ये बात लिखकर ले लो चव्हाण साहब, मैं कारसेवकों पर गोली नहीं चलाऊंगा।
गोली चलाने के अलावा जो भी काम हालात को नियंत्रण में लाने के लिए किया जा सकता है वो हम कर रहे हैं। उनके निकट सहयोगी रहे कलराज मिश्र ने उन्हें याद किया। कहा कि कई बार कल्याण सिंह अक्सर कहा करते थे कि कलराज रहेगा,तभी तो कल्याण होगा। मेरे लिए उनका यह कहा आज भी किसी सौगात से कम नहीं है। उन्होंने सदा शुचिता और पारदर्शिता की राजनीति की।
वर्ष 1991 में के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। तब यह प्रश्न उठा था कि उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए। कलराज उत्तर प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष थे।
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री के लिए अचानक अटल बिहारी वाजपेयी का नाम भी उठा था। कलराज ने कहा कि मैं अटलजी के अंदर भविष्य के प्रधानमंत्री की छवि देखता हूं। उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह को ही मुख्यमंत्री बनाया जाए। बाद में ऐसा ही हुआ भी। कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और अटल बिहारी बाद में देश के प्रधानमंत्री बने। कल्याण सिंह मिलनसार,ईमानदार और नियम कानून के प्रति दृढ़ व्यक्ति थे।