लखनऊ। राम वनगमन मार्ग को मिलेगी रामायण कालीन वृक्षों की छांव। बेला और चमेली से महकेगा पूरा रास्ता। जगह जगह लगने वाले कदम,रसाल,अशोक,पारिजात,और जामुन आदि के वन त्रेतायुग के परिवेश को पूरी तरह जीवंत करेंगे। हर जगह स्थानीय जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी में पौधरोपण की शुरुआत वैदिक रीति से होगी।
मालूम हो कि वनवास होने पर भगवान श्रीराम जिस रास्ते से गुजरे थे, उसे पौराणिक ग्रन्थों में रामवनगमन मार्ग के नाम से जाना जाता है। महर्षि बाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में अयोध्या और इस मार्ग पर 88 वृक्ष प्रजातियों का वर्णन मिलता है। मुख्यमंत्री की मंशा राम वनगमन मार्ग और उसके अगल-बगल पड़ने वाले ग्राम सभाओं में इसी प्रजाति के वृक्ष और वन लगाने की है। इसमें वृक्षों के अलावा झाड़ियां, लता और घास भी शामिल हैं।
- बेला और चमेली से महकेगा अयोध्या से चित्रकूट तक का पूरा रास्ता
- जगह जगह लगाए जाएंगे त्रेता कालीन वन
वन जाते समय भगवान श्रीराम ने तमसा नदी के किनारे पहली रात गुजारी थी। इस जगह को रामचौरा (गौराघाट) के नाम से भी जाना जाता है। इसी तरह बिसुही नदी के किनारे गविरजा माता के मंदिर पर भी पौधरोपण होना है। बिसुही नदी को पार करने के पूर्व इस मंदिर में भी भगवान श्री राम ने पूजा अर्चना की थी। राम वनगमन मार्ग पर पडने वाले धार्मिक स्थलों पर मिश्रित प्रजातियों के पौधों का पौधरोपण होना है।
पौधरोपण का यह क्रम अयोध्या से लेकर कौशाम्बी और चित्रकूट चलेगा। इस दौरान ग्राम समाज में उपलब्ध भूमि में वहां के कृषि जलवायु के अनुकूल अलग-अलग प्रजातियों (वृक्ष समूहों) के वन तैयार किये जाएंगे जैसे कदम्ब वन, रसाल वन, अशोक वन, पारिजात वन, जामुन के वन आदि। समस्त कार्यवाहियों के फोटोग्राफ रोपण कार्य के पूर्व रोपण कार्य के मध्य व रोपण समाप्ति पर संकलित किये जायेगे। जरूरत के अनुसार पौधों की सुरक्षा के लिए ब्रिक्स गार्ड लगाए जाएंगे।
प्रमुख प्रजातियां जिनका रोपण होना है
लता : अतिमुक्तक, मालती (चमेली)
झाड़ी : तिलक, मल्लिका (बेला),करीक (करौंदा),अकोला, शमी,पाटल, बिजौरा,कलक, सिंदुवार, कुटज,बंधु जीव।
घास : कुश,सरकंडा,बेत (बज्जूल),बांस, खस।
वृक्ष : साल,आम,अशोक,पारिजात, बरगद,चंदन, रक्त चंदन,अगर,नारियल,देवदार, चम्पा,नागकेसर, पुनांग, महुआ,कटहल,असन, लोध,कदंब, अर्जुन,छितवन, बकुल,तमाल, नीम,शीशम, बेल,खैर, पलाश,ताड़, पीपल,बहेड़ा, जामुन, अनार,कचनार,चीड़,अमलतास,रंजक,खजूर और सेमल आदि।
प्रमुख जगहें जहां होना है पौधरोपण
गौराघाट ( राम चौरा), हनुमान मंदिर परिसर, जलालपुर रामपुर भगन तारून मार्ग पर 5 हेक्टेयर में, ग्रामसभा अंजना और तमसा बांध 5 हेक्टेयर में, ग्राम सभा मऊ 8 हेक्टेयर में, गविरजा माता मंदिर परिसर। इसके अलावा भगवान श्रीराम प्रयागराज और चित्रकूट के जिन जगहों से होकर गए थे। जिन जगहों पर उन्होंने विश्राम किया था या कुछ दिन रुके थे उन सभी जगहों पर रामायण कालीन पौधों का रोपण किया जाएगा।
यहां भी किया जाएगा पौधरोपण
अयोध्या के बाद गोमती नदी पार करके लक्ष्मण और सीता समेत श्रृंगवेरपुर पहूचे। वहां निषादराज की मदद से वह गंगा पार कर कुरई पहुचे। यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार कराने को कहा था । श्रृंगवेरपुर को वर्तमान में सिंगरौर कहा जाता है। रामायण में इस नगर का उल्लेख आता है। यह नगर गंगा घाटी के तट पर स्थित था महाभारत में इसे तीर्थस्थल कहा गया है।
कुरई में एक छोटा सा मंदिर है। स्थानीय लोकश्रुति के अनुसार उसी स्थान पर है, जहां गंगा को पार करने के पश्चात राम, लक्ष्मण और सीता जी ने कुछ देर विश्राम किया था। श्री राम ने अयोध्या से वन गमन हेतु प्रस्थान करने के बाद प्रारंभिक समय यहीं व्यतीत किया। इस अवधि में उन्होंने भारद्वाज आश्रम में भारद्वाज ऋषि के सत्संग सहित विभिन्न ऋषियों के समय व्यतीत किया था। इसी वजह से चित्रकूट में 35 हेक्टेयर में आम, अशोक, कल्पवृक्ष, बरगद, चंदन, महुआ, कटहल, कदंब, अर्जुन, छितवन, मदार, जामुन, अनार, कचनार, बेल, खैर, लाश, बहेड़ा, पीपल, तमाल, आंवला, नीम, शीशम, बांस, चिरौंजी, तेंदू, बेर, कनेर, सेमल, सिरस तथा अमलतास आदि का पौधरोपण होना है। इस बाबत तैयारियां पूरी कर ली गईं हैं।
वनगमन से ही राजा की जगह सबके हो गए राम
मालूम हो कि श्रीराम वन गमन विश्व की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। श्री राम का वनगमन ही राम राज्य की आधारशिला है। प्रभु श्रीराम ने पिता द्वारा दिये गये वनवास को सहज भाव और खुशी से स्वीकार कर ऋषि मुनियों, वनवासियों एवं उपेक्षित जन समुदाय से घनिष्ठता स्थापित करते हुए इस चुनौती को अवसर में बदलकर राम राज्य की स्थापना की। 14 साल के वनवास के दौरान भगवान श्रीराम की निषादराज केवट एवं वानर राज सुग्रीव से मित्रता, शबरी के जूठे बेर खाने जैसी घटनाओं से उनके और लोगों में प्रेम का एक अटूट रिश्ता बना। यही रिश्ता राम राज्य की स्थापना का आधार बना। वनगमन से ही प्रभु श्रीराम एक राजा से सबके अपने हो गये। यही कारण है विश्व के अधिकतर देशों में राम कथा एवं रामलीला आज भी विद्यमान है। वन गमन के दौरान उस दौरान वन क्षेत्रों में रहने वाले प्रमुख ऋषियों (महर्षि वाल्मीकि, भारद्वाज, अत्रि, अगस्त्य, शरभंग एंव सुतीक्ष्ण आदि) से भी श्रीराम ने मुलाकात की। इन ऋषियों के आश्रम उस समय के शिक्षा एवं संस्कार के केन्द्र थे। श्रीराम ने सबसे पूरी श्रद्धा और लगन से शिक्षा एवं संस्कार प्राप्त किया। समय समय पर उनसे मार्गदर्शन भी लेते रहे।
ताकि भावी पीढ़ी अपने, धर्म, परंपरा और इतिहास को जाने
ऐसा होने पर भावी पीढ़ियों को अपने गौरवशाली अतीत से जोड़ने की दृष्टि से राम वनगमन मार्ग का संवर्धन अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इससे वन व प्राचीन स्थलों का पौराणिक स्वरूप एवं महत्ता पुनः स्थापित करने में मदद मिलेगी। पूरा वनगमन मार्ग धार्मिक और सांस्कृतिक पर्यटन का केंद्र बनेगा। क्षेत्र के सौंदर्य में वृद्धि होगी।
बढ़ेगी हरियाली, सुधरेगा पर्यावरण स्थानीय स्तर पर बढ़ने वाली हरियाली से पर्यारण भी सुधरेगा। पक्षियों और वन्यजीवों को भोजन एवं आवास उपलब्ध होने के साथ लुप्तप्राय हो रही वनस्पतियों की कुछ प्रजातियों का संरक्षण और संवर्धन भी होगा।