संस्कृत वांग्मय में विद्यमान अनेक तथ्यों की जानकारी सर्व समाज के लिए सुलभ होनी चाहिए। क्योंकि इसकी प्रासंगिकता शास्वत है। संस्कृत तथा विज्ञान के मध्य सामंजस्य हेतु अनेक योजनाओं है,जिनके माध्यम से संस्कृत वांग्मय में विद्यमान वैज्ञानिक तत्वों को वैज्ञानिकों के सहयोग से समाज के सामने प्रमाणित करना आवश्यक है। संस्कृत को सरल विधि से जन जन तक पहुंचाने तथा उसे ज्ञान विज्ञान का कोष होने की जानकारी समाज को देने की आवश्यकता है।
संस्कृत एक भाषा के रूप में अपितु समग्र ज्ञान का भंडार को खोलने के लिए यह एक साधन है। भारत को आत्म निर्भर एवं प्रतिष्ठित करने के लिए संस्कृत की भूमिका महत्वपूर्ण है। यह विचार मानव संसाधन मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में व्यक्त किये। इसका आयोजन संस्कृत तथा प्राकृत भाषा विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय ने किया था। इसमें संस्कृतवाङ्मये वैज्ञानिकतत्त्वानि” संस्कृतवाङ्मय में वैज्ञानिक तत्त्व विषय पर विचार विमर्श किया गया। इसमें मुख्य अतिथि के रूप में डॉ रमेश पोखरियाल निशंक सम्मिलित हुए।
अध्यक्षता लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो आलोक कुमार राय ने की। इसमें थाईलैंड स्थित शिल्पकार्न यूनिवर्सिटी, बैंकॉक के संस्कृत विभाग के विजिटिंग प्रोफेसर डॉक्टर नरसिंह चरणा पंडा, कामेश्वरसिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर सर्वनारायण झा,रांची विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर चंद्रकांत शुक्ला, प्रोफ़ेसर गंगाधर पंडा, कुलपति, कोल्हान यूनिवर्सिटी, झारखंड एवं शिल्पकार्न यूनिवर्सिटी के संस्कृत अध्ययन केंद्र के निर्देशक प्रो सोम्बत मांगमीसूखश्री विद्वान वक्ता के रूप में सम्मिलित हुए।
इस ऑनलाइन संगोष्ठी के आयोजक पद्मश्री प्रोफेसर बृजेश कुमार शुक्ला ने मानव संसाधन मंत्री,कुलपति,विद्वान वक्ताओं एवं अन्य प्रतिभागियों का स्वागत किया। साथ ही संगोष्ठी का रूपरेखा एवं विशेषता का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि संस्कृत वाङ्मय में अनेक वैज्ञानिक रहस्य निहित हैं वेदों में वच आदि औषध के रूप में कोरोना जैसी अन्य संक्रामक बीमारियों के उपाय वर्णित है। लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार राय ने संस्कृत भाषा के विज्ञान ग्रंथों का उल्लेख किया। कहा कि संस्कृत वाङ्मय में गणित,भौतिक शास्त्र, रसायन विज्ञान,जंतु विज्ञान,वनस्पति विज्ञान एवं आयुर्विज्ञान के अनेक ग्रन्थ है। जिनकी आज भी उपयोगिता है। लखनऊ विश्वविद्यालय के गणित एवं खगोल शास्त्र विभाग में गणित से संबंधित अनेक संस्कृत ग्रन्थों की पांडुलिपियां विद्यमान है। शोध के द्वारा इन सब का प्रकाशित होना चाहिए। प्रोफेसर नरसिंह चरण पंडा जी ने अनेक उदाहरणों के माध्यम से बहुत ही द्रव्यों की वैज्ञानिक विवेचना करके संस्कृत ववांग्मय में सृष्टि विज्ञान से स्वास्थ्य विज्ञान तक की पुष्टि करके संस्कृत में विद्यमान ज्ञान विज्ञान को आज के समय में व्यवहारिक तथा प्रासंगिक बताया।
प्रोफेसर सर्वनारायण झा जी ने दशमलव से लेकर शून्य,एक से अर्बुदादि पर्यंत संख्याओं को अप्रत्यक्ष रूप से वेदों में परोक्ष बताकर यह सिद्ध किया की गणित तथा विज्ञान के अनेक सिद्धांत प्राचीन शास्त्रों से विशेषज्ञों तक सीमित न होकर जनसामान्य तक पहुंचना चाहिए।
प्रोफेसर चंद्रकांत शुक्ला जी ने विमान शास्त्र को दृष्टि में रखकर अनेक ऐतिहासिक प्रमाण प्रस्तुत किए जिनसे भारतवर्ष में विमान विज्ञान की प्राचीन परंपरा प्रकाश में आई। अनेक प्रकार की विमानों, विमान के अभयंबू तथा विमान चालकों के लक्षणों को बता कर इन्होंने विमान शास्त्र पर आधुनिक अनुसंधान की आवश्यकता बताई। भरद्वाज के वैज्ञानिक प्रकरण में अनेक प्रकार की ऊर्जा तथा अनेक प्रकार के विमानों में खनिज तथा वानस्पतिक इंधन तथा अदृश्य हो जाने वाले विमानों का उल्लेख शोध का विषय है। इस ऑनलाइन संगोष्ठी के संचालक डॉ. प्रयाग नारायण मिश्र एवं संयोजक डॉ. अशोक कुमार शतपथी रहे।