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सरकार के रवैया से एक के बाद एक प्रमुखों का इस्तीफा देना सामान्य घटना नहीं: लोकदल

लखनऊ। लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुनील सिंह है सरकार द्वारा बनाए कोरोना महामारी के चेयरमैन डॉक्टर शाहिद जमील के इस्तीफे दिए जाने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार में एक के बाद एक प्रमुखों का इस्तीफा दिया जाना सामान्य घटना प्रदर्शित नहीं करता है। उन्होंने कहा है कि देश में
अंतरराष्ट्रीय स्तर की मूर्खताओं से नहीं निपटा नही जा सकता है। देश के शीर्ष वायरोलॉजिस्ट डॉ. शाहिद जमील ने कोरोना वायरस पर बने सलाहकार ग्रुप के चेयरमैन पद से इस्तीफा दिया जाना विकट महामारी के दौरान टॉप वायरोलॉजिस्ट का अपने पद से इस्तीफा देना सामान्य घटना नहीं है।

70 साल में पहली बार है जब अहम पदों पर तमाम बैठे लोग निराश होकर अपना पद छोड़ रहे हैं. अरविंद पनगढ़िया से लेकर डॉ शाहिद जमील तक काफी लंबी लिस्ट है। किसी क्षेत्र का माहिर आदमी उसकी चुनौतियों से तो निपट सकता है लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर की मूर्खताओं से नहीं निपट सकता, इसलिए वह इस सरकार से दूरी बना रहा है। डॉ. जमील ने कुछ दिन पहले ही कोरोना महामारी से निपटने के सरकारी तौर तरीके पर सवाल उठाए थे।

Sunil Singh

उन्होंने अपने इस्तीफे के कोई वजह बताने से इनकार कर दिया है.सिंह ने बताया कि विशेषज्ञों के इस ग्रुप ने मार्च के शुरू में ही चेताया था कि कोरोना का एक नया वैरिएंट देश में तेजी से फैल रहा है, लेकिन सरकार ने ध्यान नहीं दिया। कोई उपाय तो दूर की बात है. सरकार की प्राथमिकता थी चुनाव। भारत में वैज्ञानिकों को ‘साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण के लिए जिद्दी प्रतिक्रिया’ का सामना करना पड़ रहा है। उनको वैज्ञानिकों की बात सुननी चाहिए और पॉलिसी बनाने में जिद्दी रवैया छोड़ना चाहिए। भारत में हर विशेषज्ञ का यही हाल होता है।

सिर्फ गोबर और गोमूत्र एक्सपर्ट ही हैं जो अपनी जगह पर बने हैं। बाकी सबको जाना है.सरकार के जिद्द से उर्जित पटेल ने भी दूरी बना ली थी? वे भी आरबीआई बोर्ड की अहम मीटिंग के पहले ही पद छोड़कर भाग गए थे। उर्जित पटेल के बाद आरबीआई के डिप्टी गवर्नर पद से विरल आचार्य ने भी इस्तीफा दिया। अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला ने प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद से इस्तीफा दे दिया है। सुरजीत भल्ला नोटबंदी और अन्य आर्थिक फैसलों के समर्थक रहे। नोटबंदी के समर्थक तो उर्जित भी थे। इन दोनों का इस पद से इस्तीफा देना ऐतिहासिक घटना थी।

अरविंद सुब्रह्मण्यम ने भी मुख्य आर्थिक सलाहकार पद से इस्तीफा दे दिया था। अरविंद पनगढ़िया ने नीति अयोग के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था.विरल आचार्य का इस्तीफा जून 2019 में हुआ था, उस समय तक मोदी सरकार में अहम पदों पर रहे आठ लोग इस्तीफा दे चुके। राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के भी दो सदस्यों ने सरकार के फर्जीवाड़े से तंग आकर इस्तीफा दे दिया सरकार की ओर से नियुक्त इतनी संख्या में विशेषज्ञ अपना पद छोड़ें, यह इससे पहले कभी नहीं हुआ।

ऐसा इसलिए हो रहा है कि यह एक अक्षम और अयोग्य सरकार है जो जिद्दी और अपनी प्रवृत्ति से मूर्ख भी है। लोकदल सरकार के रवैये से हैरान हैं। यह गोबरप्रिय सरकार देश का गुड़गोबर कर रही है।

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