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सावन संग कजरी

सावन शब्द सुनते ही मन मस्तिष्क में काले घने बादल, रिमझिम फुहारे एवं हरियाली वातावरण मन को अनायास ही सिंचित कर देता है। एक ओर सुहागन स्त्रियों का अपने चकोर से दूर जाने का विरह मन में वेदना का ज्वार उत्पन्न करता तो वहीं दूसरी ओर अपने मायके जाने की खुशी मन में उल्लास का संचार करती रहती। बस इन्हीं खट्टी मीठी भावनाओं का पिटारा है ये हरियाली फुहार भरा सावन।

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उत्तर प्रदेश तथा बिहार में कजरी का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। सावन के आते ही काले कजरारे सघन मेघ, आकाश में चमकती बिजुरी और रिमझिम बरसते हुए पानी के बीच कजरी गीत लोगो के मन को अलौकिक कर देता है। कजरी वर्षा ऋतु में गाया जाने वाला गीत है। जिस प्रकार बसंत के आते फागुन के गीत, चैत्र के आते ही चैती गीत मानव हृदय में विभिन्न रंगों का संचार कर देते है उसी प्रकार सावन में कजरी का एक अलग ही उल्लास देखने को मिलता है।

कजरी गायिकी का आरम्भ कब और कैसे हुआ ये कहना तो अत्यंत कठिन है किंतु ऐसा माना जाता है कि सर्वप्रथम यह गीत एक शायर द्वारा रची गयी थी।कजरी का नामकरण श्रावण मास में घिरे हुये मेघ जो काजल की तरह प्रतीत होते है उसी से हुआ जिसे “कज्जरी” एवं “कजरी” कहा गया। वैसे तो कजरी पूरे उत्तर प्रदेश तथा आस-पास के क्षेत्र में गायी जाती है परन्तु बनारस एवं मिर्जापुर में इसका अत्यधिक प्रचलन है।इन क्षेत्रों में कजरी के अखाड़े भी देखने को मिलते है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में तीज के दिन स्त्रियां व्रत रखती है तथा पूरे दिन कजरी गाती है उन गीतों में झूला झूलने,सावन भादों, खेत खलिहान, रिमझिम बूदों इत्यादि का वर्णन होता है।

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कजरी गायन के कुछ प्रकारों की बात करे तो विभिन्न प्रकार की गायन शैलियां कजरी के गीतों में देखने को मिलती हैं, यथा- उपशास्त्रीय कजरी, लोक कजरी,शायरी कजरी, सावनी कज्जरी इत्यादि प्रकार आज भी सुनने को मिलते है। कजरी गीतों में अलग-अलग समय के अपने अनूठे भाव है जिनके माध्यम से अपनी बात कही जाती है। इसमे एक तरफ वियोग की भावना है तो कही प्रेम की,कही मनुहार है तो कही तंज।इसके साथ ही प्रायः सास- ननद, प्रेम- ईर्ष्या, हास्- परिहास और प्रकृति की अभिव्यक्ति होती है। इन गीतों के माध्यम से लोकजन प्रकृति से सामंजस्य स्थापित करते है, तथा अपने उल्लास और मनोभावों को प्रकट करते है। एक कजरी गीत में नायिका अपने पति से सावन में मेहंदी लाने और छोटी ननद से पिसवाने की मांग करते हुए अपने भाव को प्रकट करती हुई कहती है-

पिया मेंहदी लिया द मोती झील से
जाइके साइकिल से ना।
पिया मेंहदी लियावा, छोटी ननदी से पिसावा,
हमरे हाथे में लगादा काटा कील से,
जाइके साइकिल से ना।

     डॉ अर्चना तिवारी

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