समाज सेवा और साहित्य का क्षेत्र अलग है। लेकिन ऐसे लोगों की कमी भी नहीं जिन्होंने दोनों में सुंदर समन्वय किया। समाज को पूरा समय दिया। इसके साथ ही साहित्य का सृजन भी किया। लखनऊ का लोकभवन ऐसे ही एक समारोह का साक्षी बना। यहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कर्मयोद्धा राम नाईक पुस्तक और हृदय नारायण दीक्षित के समग्र साहित्य का विमोचन किया। हृदय नारायण दीक्षित रचनावली में उनकी बत्तीस पुस्तकों का संकलन है। इसके दस खण्ड व सात हजार पृष्ठ हैं। कर्मयोद्धा राम नाईक के पहले खण्ड में अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के भाषण का संकलन है। अटल बिहार वाजपेयी ने यह भाषण उस समय हुआ था जब राम नाईक कैंसर से स्वस्थ्य हुए थे।
लाल कृष्ण आडवाणी ने राम नाईक के पछत्रहनवें वर्ष पूरे होने पर आयोजित समारोह में भाषण दिया था। दूसरे खण्ड में चरैवेति चरैवेति के लोकार्पण अवसरों पर महानुभावों के भाषण संकलित है। तीसरे खण्ड में मुस्लिम विद्वानों के लेख है। इन्होंने राम नाईक के संबन्ध में अपने विचार व्यक्त किये है। राम नाईक अपने को संघ का स्वयं सेवक कहते थे। जनसंघ व भाजपा में छह दशक तक सक्रिय रहे। ऐसे में उनके राजपाल बनने पर कुछ लोगों को उनके आचरण को लेकर आशंका थी। किंतु राम नाईक ने राज्यपाल के रूप में पूरी तरह संवैधानिक व्यवस्था पर अमल किया। उनके कार्यों से सभी आशंकाए निर्मूल साबित हुई। इस संपादित पुस्तक की प्रस्तावना विधान सभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने लिखी है।
राम नाईक अपने को एक्सिडेंटल राइटर मानते है। हृदय नारायण दीक्षित अपने को समाज सेवा का कार्यकर्ता कहते है। लेकिन साहित्य के क्षेत्र में दोनों ने अपने अपने तरीके से योगदान दिया है। राम नाईक की चरैवेति चरैवेति पुस्तक बहुत चर्चित हुई। यह साहित्य की धरोहर बन गई। हृदय नारायण दीक्षित करीब तीन दर्जन पुस्तकें लिख चुके है। इन सभी का अकादमिक दृष्टि से बहुत महत्व है। उनकी भाषा शैली अद्भुत है। उल्लेखनीय यह कि राम नाईक और हृदय नारायण समाज सेवा में अत्यधिक सक्रिय रहे है। आमजन के बीच बने रहना इन दोनों को अच्छा लगता है। राम नाईक तीन बार विधायक,पांच बार लोकसभा सदस्य,केंद्र में राज्यमंत्री कैबिनेट मंत्री रहे। इसके बाद वह उत्तर प्रदेश के राज्यपाल भी बने थे। हृदय नारायण दीक्षित पांच बार विधायक,एक बार विधान परिषद सदस्य,प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे। इस समय वह उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष है। यह सब इनकी सक्रियता के प्रमाण है।
इस यात्रा के बाद साहित्य के लिए समय निकालना आसान नहीं रहा होगा। फिर भी इन्होंने यह कार्य अत्यंत सहज रूप में किया। योगी आदित्यनाथ ने इस कार्यक्रम के लिए विशेष रूप से समय निकाला। उत्तर प्रदेश में चुनावी सरगर्मी शुरू हो गई। योगी आदित्यनाथ प्रतिदिन किसी न किसी जनपद की यात्रा पर जाते है। वह लगातार विकास कार्यों का लोकार्पण शिलान्यास कर रहे है। इसके अलावा पार्टी के कार्यक्रमों में भी उनकी सहभागिता रहती है। योगी आदित्यनाथ सरकार संस्कृति व साहित्य के प्रति भी संवेदनशील है। मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम के माध्यम से इस तथ्य को उजागर किया। हृदय नारायण दीक्षित का कहना है कि पुस्तक भविष्य का मार्गदर्शन होती हैं। राष्ट्रीय चेतना एवं सामाजिक कुरीतियां दूर करने में सहायक होती हैं। भारत का मूल चेतन प्रकृति,विचार, न्याय,सत्य एवं मर्यादित यह सब कुछ प्राचीन काव्य वांग्मय रही है। सभ्यतायें साहित्य से समृद्ध सशक्त होती है। यदि साहित्य हटा दे तो, हमारी सभ्यताएं व प्रकृति नहीं बचती है। भारतीय दर्शन,वैदिक साहित्य,सामान्य पुस्तकें हमें अपने पूर्वजों का इतिहास याद कराते हैं। ज्ञान को बढ़ाने के लिए सभी को पुस्तकों से प्रेम करना चाहिए।
हृदय नारायण दीक्षित विचारक के रूप में प्रतिष्ठित हैं। प्रायः इस स्तर के विद्वान जमीनी राजनीति में उतरने से बचते हैं। अध्ययन, लेखन और सक्रिय राजनीति के बीच समन्वय बनाना आसान नहीं होता। दोनों की प्रकृति अलग है। दोनों के लिए अलग अलग भरपूर समय की अवश्यकता होती है। यह माना जाता है कि एक पर समय लगाओ तो दूसरे की उपेक्षा होती है। हृदय नारायण दीक्षित का लेखन सामान्य नहीं होता। आलोचना की पद्धति को उन्होंने अपनाया है। इसमें गहन अध्ययन व भौतिक चिन्तन की आवश्यकता होती है। तभी संबंधित विषय की आलोचानात्मक समीक्षा हो सकती है। शायद यही कारण था कि उनके छोटे व अति साधारण घर में बैठने के लिए कम और किताबों की अलमारियों के लिए जगह ज्यादा थी। उन्होंने दोनो क्षेत्रों में मिसाल कायम की। उनकी राजनीति और उनके लेखन से खासतौर पर नई पीढ़ी को प्रेरणा लेनी चाहिए। एक व्यक्तित्व में प्रायः दो विपरीत ध्रुव इस तरह समाहित नहीं होते। उन्होंने राजनेता और उच्चकोटि के लेखन की यह छवि उन्होंने स्वयं अपनी साधना से बनाई है। बहुत गरीबी देखी।
बचपन में अपने पिता को परिवार के जीवन यापन हेतु भटकते देखा। बालक हृदय नारायण उनका हांथ बटाते थे। भविष्य अनिश्चित था। उस स्थिति में बहुत अच्छे भविष्य की कल्पना करना भी संभव नहीं होता। किताब खरीदने तक के पैसे जुटाना मुश्किल था। संघर्षों से पीछे नहीं हटे। अर्थशास्त्र में एम.ए. किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए तो राष्ट्रवादव व निःस्वार्थ समाजसेवा की प्रेरणा मिली। आर्थिक स्थिति कमजोर थी। जनसहयोग मिला। पुरवा विधानसभा क्षेत्र से चनाव लड़ गए। विजयी हुए। राजनीति में आगे बढ़ते रहे। इसके साथ ही उन्होंने साहित्य साधना पर भी अमल किया। इसमें भी उल्लेखनीय कार्य किया। राम नाईक अपने को मूलतः लेखक नहीं मानते। ऐसे अनेक लेखक है जिन्हें केवल एक पुस्तक के कारण अपार ख्याति मिली। इस सूची में राम नाईक का नाम भी शामिल हुआ। उनकी पुस्तक चरैवेति चरैवेति को उल्लेखनीय चर्चा मिल रही है। साहित्य का क्षेत्र बहुत व्यापक होता है। इस पुस्तक ने साहित्य की संस्मरण विधा में गौरवशाली स्थान बनाया है।
स्वतंत्रता के बाद राजनीति से जुड़े लोगों की किसी पुस्तक के इतने कम समय में ग्यारह भाषाओं और ब्रेल लिपि की तीन भाषाओं के संस्करण प्रकाशित नहीं हुए। इतना ही नहीं इसके विभिन्न संस्करणों के लोकार्पण समारोहों और उनमें राष्ट्रपति से लेकर विशिष्ट व साहित्य प्रेमी जनों की भागीदारी का भी कीर्तिमान बना। मराठी के दैनिक साकाल ने उनसे संस्मरण लिखने का आग्रह किया था। इसमें उनके जो संस्मरण प्रकाशित हुए। चरैवेति चरैवेति उन्हीं का संकलन है। राम नाईक अपने को भले ही एक्सिडेंटल राइटर मानते हों, लेकिन पुस्तक की विषयवस्तु,भाषा शैली आदि सभी बहुत स्तरीय और रोचक है। मराठी भाषी संस्मरण संग्रह चरैवेति चरैवेति का विमोचन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस द्वारा पच्चीस अप्रैल दो हजार सोलह को मुंबई में किया गया था।
हिन्दी,अंग्रेजी,उर्दू तथा गुजराती संस्करणों का लोकार्पण नौ नवम्बर दो हजार सोलह को राष्ट्रपति भवन नई दिल्ली में,ग्यारह नवम्बर दो हजार सोलह को लखनऊ के राजभवन में तथा गुजराती भाषा संस्करण का तेरह नवम्बर दो हजार सोलह को मुंबई में हुआ। छब्बीस मार्च दो हजार अठारह को संस्कृत नगरी काशी में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा संस्कृत संस्करण का लोकार्पण हुआ। पुस्तक के सिंधी संस्करण का लोकार्पण इक्कीस फरवरी दो हजार उन्नीस को लखनऊ एवं बाइस फरवरी दो हजार उन्नीस को अरबी एवं फारसी भाषा में नई दिल्ली में हुआ। पुस्तक के जर्मन संस्करण का लोकार्पण तीस जून दो हजार उन्नीस को पुणे विश्वविद्यालय और असमिया भाषा संस्करण का छह जुलाई को गौहाटी में लोकार्पण हुआ। पुस्तक चरैवेति चरैवेति के लोकार्पण समारोह में दो राष्ट्रपति, तीन मुख्यमंत्री एवं सात राज्यपालों के साथ मंच साझा करने का अवसर मिला है। राम नाईक ने चरैवेति चरैवेति के श्लोक का मर्म बताते है।
जीवन में निरंतर चलने वाले को ही सफलता प्राप्त होती है। संसद में पहली बार ‘जन गण-मन’ एवं ‘वंदे मातरम् का गायन उनके प्रयास से प्रारम्भ हुआ। बाम्बे को उसका मूल नाम मुंबई कराया। जिसके बाद अनेक स्थानों के नाम परिवर्तित हुये। कारगिल युद्ध में चार सौ उनतालीस शहीद सैनिकों के परिजनों को सरकारी खर्चे पर पेट्रोल पम्प एवं गैस एजेन्सी का आवंटन कराया। सांसद निधि की शुरूआत करायी। अनेक अभिनव कार्य किये। राज्यपाल के दायित्वों को नया आयाम दिया। कर्मयोद्धा पुस्तक चरैवेति चरैवेति की अगली कड़ी है। इसमें उनका जीवन दर्शन समाहित है। साहित्य जगत में भी इसको प्रतिष्ठा मिली है।
कर्मयोद्धा में राम नाईक के राजभवन संबन्धी संस्मरण है। उन्होंने राज्यपाल बनने के बाद कहा था कि वह राजभवन के द्वार आमजन के लिए खोलेंगे। यह कथन अप्रत्याशित था। यह धारणा नई थी। इस पर उन्होंने अमल करके दिखाया। राम नाईक की सक्रियता ने राज्यपाल पद की प्रचलित अवधारणा अवधारणा को बदल दिया था। अपने दायित्वों का उन्होंने संवैधानिक मर्यादा में रहते हुए बखूबी अंजाम दिया। कार्यशैली के मध्यम से प्रमाणित किया कि राज्यपाल का पद आराम के लिए नहीं है। वह प्रत्येक वर्ष बाइस जुलाई को राजभवन में राम नाईक शीर्षक से अपना कार्यवृत्त जारी करते रहे। इसकी शुरुआत भी उन्होंने मुम्बई से की थी। वह प्रत्येक दायित्वों के दृष्टिगत ऐसा करते रहे है।