• लखनऊ के भूपेंद्र अस्थाना और संजय राज सहित अन्य 22 कलाकारों को शिविर में मिला सम्मान
लखनऊ। यात्रा चाहे कोई भी हो निरंतरता और अनवरत जारी रखते हुए गंतव्य की चाह तो होती ही है, बाधा भी हो तो निर्बाध गति आगे बढ़ना दृढ़ संकल्प को दर्शाता है और यही संकल्प शक्ति लिए हिना भट्ट आर्ट वेंचर्स के माध्यम से संचालित क्यूरेटर हिना भट्ट की अक्षय कला यात्रा-2 मध्यम कला शिविर का काशी श्रृंखला का आयोजन पूर्णता व सफलता का इतिहास रचा। पांच दिवसीय इस कला यात्रा में शामिल छ राज्यों के प्रतिनिधि कलाकार लोक संस्कृति व समकालीन कला को समृद्ध किया।
विश्व का सबसे प्राचीन सांस्कृतिक राजधानी नगरी काशी में पिछले दिनों पांच दिवसीय अखिल भारतीय चित्रकला शिविर अक्षय कलायात्रा-2-मध्यम श्रृंखला में देशांतर के 24 वरिष्ठ एवं युवा कलाकारों ने भाग लिया, 48 कैनवास चित्रों की प्रदर्शनी 21 जुलाई को लगाई गई। इस माध्यम से साक्षात्कार उनके कला सृजन दृश्यमान कैनवास चित्रों के माध्यम से पहली बार दर्शन हुआ। इस शिविर के आयोजक हिना भट्ट आर्ट वेंचर्स,पुणे महाराष्ट्र के क्यूरेटर व कलाकार हिना भट्ट व संयोजक चित्रकार अनिल शर्मा के प्रयास से सम्पन्न हुआ। कला और कलाकारों का संरक्षण के प्रयास हमेशा से ऐतिहासिक रहा है अर्थात भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो कला और कलाकारों का संरक्षण का अर्थ ही है हमारी संस्कृति की रक्षा करना।
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ज्ञातव्य हो की इस चित्रकला शिविर में लखनऊ के दो युवा कलाकार भूपेंद्र कुमार अस्थाना और संजय राज को भी आमंत्रित किया गया। भूपेंद्र कुमार अस्थाना के चित्र मौलिकता और सृजनात्मकता का आभाष कराती है। चित्रों में काले स्याह रेखाओं की प्रधानता बिम्ब को उभारने में और रेखाओं की विविधता रूपाकृति के साथ ऐसे समायोजित होती दिखाई पड़ती है, जिससे उसकी मौलिकता के साथ साथ कलाकार की सृजनात्मक दृष्टिकोण को उजागर करती है। रूपाकृति भी ऐसी की पृष्ठभूमि कोरे मन को दर्शाता है, जिस पर पैदा होने वाले भाव उभरते हुए प्रतीत होते हैं। इस शिविर में भूपेंद्र और संजय ने 2-2 कलाकृति कैनवास पर सृजित किए।
कलाकार व क्यूरेटर हिना भट्ट कोरोना काल जैसी वैश्विक विभिषिका में भी कला और कलाकारों को जोड़ने व सृजनशील रखने का जो पहल किया और इस एक बीज के अंकुरण को विस्तार देकर वटवृक्ष के रूप में बड़ा कर रही है। यह प्रयास देश के खासतौर पर युवा कलाकारों को बहुत प्रोत्साहित कर रहा है और भविष्य में भी प्रोत्साहित करेगा इसमें कोई दोराय नहीं है कि अपने सकारात्मक उद्देश्य और संस्कृति का संरक्षण का संकल्प लिए कला और कलाकारों के हित मे साथ खड़ी दिखाई देती है इस शिविर में समकालीन कलाकारों के साथ लोक व जनजातीय कलाकारों को शामिल करके देश के पारम्परिक कलाओं के विकास में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिए है। इसी प्रकार से कला का संवर्धन और विकास संभव है।
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सभी प्रकार की कलाओं के तीर्थ स्थल रही काशी में गंगा तट पर इस आयोजन का होना और गुरु पूर्णिमा को सम्पन्न होना एक नये भविष्य को तैयार करना है। इस आयोजन पर आमंत्रित अतिथियों में शामिल पद्मश्री डा राजेश्वर आचार्य, प्रख्यात न्यूरोलॉजिस्ट डा विजयनाथ मिश्रा एवं संजिदा लेखक व कवि डा श्रीप्रकाश शुक्ला देश के 24 कलाकारों व आयोजक हीना भट्ट और संयोजक अनिल शर्मा को इसकी पूर्ण सफलता साधुवाद दिया। पद्म श्री डा राजेश आचार्य ने बड़े ही रोचक अंदाज में कला और कलाकार की सृजनात्मक उर्जा के महत्व की व्याख्या करते हुए कहा की तकनीक और विज्ञान कितना भी विकास कर लें कलाकार की मौलिक रचनात्मक क्षमता की बराबरी नहीं कर सकता, कलाकार की भांति संवेदनशील नहीं हो सकता।
डा विजय नाथ मिश्रा ने इस आयोजन को आज के परिदृश्य में कला और कलाकार के साथ संवाद करने और एक मंच पर लाने के हीना भट्ट के प्रयास को सराहा। आज बड़े -बड़े कला संस्थान जो दृष्टि और दूरदर्शिता के अभाव में नहीं कर पा रहे हैं वह कार्य यहां सफलता पूर्वक किया है, पुनः काशी की धरती ऐसे आयोजनों के लिए तैयार रहेगी। वहीं श्रीप्रकाश शुक्ला ने कलाकृतियों का अवलोकन कर कहते हैं कलाकार प्रकृति से जो कुछ लेता है, उसे अपने चित्रों में रचता है, उसमें जो मौलिकता होती है वहीं हमारे अंतःकरण के आयतन का विस्तार करती है।
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उन्होंने इस कला शिविर में शामिल कलाकारों में शामिल भोपाल से वरिष्ठ कलाकार युसूफ, झारखंड से वरिष्ठ कलाकार हरेण ठाकुर, वाराणसी में प्रो मृदुला सिन्हा, डा सुनील विश्वकर्मा, लखनऊ से भूपेंद्र अस्थाना, संजय राज, जबलपुर से सुप्रिया अंबर, अलीगढ़ से राजीव शिकदर, समस्तीपुर बिहार से मो सुलेमान, खैरागढ से अम्रीश मिश्रा, भोपाल से पद्मश्री भूरी बाई, उदय गोस्वामी, इंदौर से डा बिम्मी मनोज, नोएडा की पूनम चंद्रिका त्यागी, उत्तराखंड से रविपासी, गाजियाबाद से अनूप कुमार, जयपुर से सुरेश जांगिड़, पटना से अनिता कुमारी, संयोजक व चित्रकार अनिल शर्मा सहित कला शिविर की क्यूरेटर व कलाकार हिना भट्ट के प्रदर्शित चित्रा कृतियों में साधक रंगों, संरचनात्मक रेखाओं के माध्यम से संवादी कला के रूप दर्शकों को प्रेरित करती है, सराहनीय है और दुरगामी परिणाम देने वाले हैं।
पद्मश्री भूरी बाई के जन जातीय लोक कला के कला दीर्घा में अवलोकन से भावनात्मक उद्गार प्रकट किए। सभी कलाकारों की उत्कृष्ट कलाकृति की सराहना और प्रशंसा दर्शकों ने भी खूब की । लगभग पचास कैनवास चित्रों की प्रदर्शनी रामछाटपार शिल्प न्यास की कला दीर्घा को समृद्ध करती नजर आयी और दर्शकों की उपस्थिति इस अक्षय कला यात्रा को सफलता को दर्शाता है।