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शिव और सावन

       आशुतोष

सनातन धर्म में सावन का महीना भगवान शिव का महीना माना गया है । कालान्तर में देवताओ और असुर का समुद्र मंथन का अभियान इसी महीने में समाप्त हुआ था। चौदह रत्न की प्राप्ति भी हुई जिसे देवताओ और असुरो को बांटा गया जबकि विष को भगवान भोलेनाथ पीकर नीलकंठ बने।

भगवान शिव जब विषपान किये तो उनका शरीर भी नीला हो गया उस जलन को कम करने के लिए उन्हें गंगाजल से अभिषेक कराया गया। तभी से सावन में गंगाजल से अभिषेक करने की परम्परा बनी हुई है। भगवान शिव की पूजा भी प्रकृति प्रधान है इनके पूजा में उपयोग की गयी सामग्री भी वेहद सरल और सस्ती है जो आपके इर्द गिर्द मिल जाती है।वेलपत्र,तुलसी, धथूर, भांग, दूध, गंगाजल आदि।

यह वह महीना है जब बारिस की बूँदे पडने के बाद हरियाली से प्रकृति हरे रंग में नहाकर खिल जाती है यह पृथ्वी पर सौंदर्य के लिहाज से खूबसूरत महीना होता है । नदी तालाब नाले भरे होते है। पानी की निर्मलता और पर्याप्त साधन अपने शबाव पर होते है । जीव जन्तु पौधे सभी उस ताप से निकलकर इस सुष्क मौसम में अपनी अपनी दुनियाँ में मग्न रहते है और वर्षा का आनंद लेते है। पृथ्वी और बादल मिलकर सृष्टि और हरियाली के साथ खूब अठखेलियां खेलती है।

यह महीना सब के लिए कुछ न कुछ खास लाती है। कृषक के लिए सपनो के साथ फसल बोना, तो युगल जोडियो के लिए अनुकूल मौसम, बच्चो का पानी की छप छप और कागज की नाव, झूले स्त्रियो के लिए पर्व त्योहार और तो और यह महीना वैसे लोगो का भी जो नीरस है उनके लिए नये रस और जोश का महीना माना गया है। मौसम का आनंद तभी मिल सकता है जब शांति समृद्धि और एकता कायम रहेगी।और सभी लोग प्रकृति से प्रेम करेंगे । हमारी शक्ति इनमें ही निहित है और इसकी अक्षुण्णता हमारे लिए जरूरी है।

कहने तात्पर्य यह है कि प्रकृति से प्रेम कर हम इस सावन सा बने और सबके लिए कुछ न कुछ उपहार स्वरूप देते रहें निःस्वार्थ प्रकृति की तरह सोच रखकर प्रकृति प्रेम में बंध जाएं वही तो सावन है। शिव सत्य है, सुन्दर है, सावन रंगीन है, हरियाली है अर्थात प्रकृति प्रेम से ही मानव सुन्दर और सत्य का मार्ग प्रशस्त कर सकेगा जैसे हमारे प्रकृति के साधक भगवान भोलेनाथ है मनुष्य को भी वैसा ही विचार लाकर प्रकृति से प्रेम करना होगा।

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