खुश हूँ मैं
जिससे मिला ही नहीं उसकी जुदाई से खुश हूँ मैं।
गैरों से की मेरी बुराई उसकी इस अच्छाई से खुश हूँ मैं।अपनों की तारीफों से भी यदि खुशी नही मिलती
खुद की ही मुसलसल खुद्सिताई से खुश हूँ मैं।किसी कमनीय कन्या को बनाया ही नही दर्दे-जिगर,
अब तो हयाते-शरीक की ही वफ़ाई से खुश हूँ मैं।भले ही शोर ही शोर है जहाँ में जिधर देखो उधर
यहाँ अपने काम और अपनी तन्हाई से खुश हूँ मैं।जो पिलाते ज़ुल्मो-सितम के हलाहल दुनिया को
बनकर के ज़हर मोहरा खुदाई से खुश हूँ मैं।आशीष तिवारी निर्मल
लालगांव, रीवा
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