कहा जाता है कि “जाके पैर न फटे बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई।” आजादी से पूर्व कुछ इसी तरह की पीड़ा से दो-चार हो चुके डा. भीम राव अम्बेडकर ने पराई पीड़ा को करीब से देखा, परखा, समझा और महसूस किया था। दलित हितों की जो मशाल डा. अम्बेडकर ...
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