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शिक्षक

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गुरू ब्रह्मा, गुरू विष्णु, गुरू देवो महेश्वर:
गुरू साक्षात् पारब्रह्मा, तस्मै श्री गुरूवे नमः

मात-पिता की मुरत आप हो इश्वर की सुरत आप हो।
कोरा कागज़ होता मन हमारा, उस पर ज्ञान का पाठ लिखाते आप हो।
जब सब दरवाज़े बंद हो जाते, नया रास्ता आप दिखाते।
सदाबहार फूलों सा खिलकर महकाते आप,
ज्ञान का भंडार प्रदान करते आप।

धैर्यता का पाठ पढ़ाते, संकट में हंसना सिखाते,
नफ़रत पर विजय सिखाते, शांति का आप पाठ पढ़ाते।
अच्छा-बुरा, पाप-पुण्य का भेद सिखाते आप।
जल करके दीप की भांति ज्ञान की जोत जलाते आप,
दे कर विद्या दान हमें, अज्ञान को हर लेते आप।

गुमनामी के अंधेरों से निकाल कर पहचान बनाते आप,
करते शुरवीरो का निर्माण इन्सान को इन्सान बनाते आप।
गुरू का महत्त्व ना हो कम चाहे कितनी तरक्की कर लें हम,
पड़ जाए अम्बर भी छोटा लिखने जो बैठें गुरू की महिमा हम।

प्रेम बजाज, जगाधरी (यमुनानगर)

प्रेम बजाज

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