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नये भारत का नारा ‘जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान’

प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने पिछले दिनों तीन से सात जनवरी 2019 तक जालंधर के लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में आयोजित भारतीय विज्ञान कांग्रेस (आईएससी) 2019 के उद्घाटन भाषण में आचार्य जे सी बोस, सीवी रमण, मेघनाद साहा तथा एस एन बोस जैसे महान भारतीय वैज्ञानिकों को याद करते हुए कहा कि इन भारतीय वैज्ञानिकों ने कम से कम साधन तथा अधिक से अधिक संघर्ष के जरिए लोगों की सेवा की। अपने उद्घाटन भाषण में प्रधानमंत्री ने देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और अटल बिहारी वाजपेयी का स्मरण किया। उन्होंने कहा कि शास्त्री जी ने ‘जय जवान, जय किसान’ नारा दिया, जबकि अटल जी ने इस नारे में ‘जय विज्ञान’ को जोड़ दिया। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि हम एक कदम आगे बढ़ें और इसमें ‘जय अनुसंधान’ को संलग्न करें।

प्रधानमंत्री ने वैज्ञानिकों से सस्ती स्वास्थ्य सेवा, आवास, स्वच्छ पानी, जल एवं ऊर्जा, कृषि उत्पादकता और खाद्य प्रसंस्करण की समस्याओं को हल करने के लिए स्वयं को प्रतिबद्ध करने का आग्रह किया। उन्‍होंने कहा कि विज्ञान सार्वभौमिक है, इसलिए प्रौद्योगिकी को स्थानीय आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुरूप हल प्रदान करने के लिए स्थानीय नज़रिया रखना होगा।

नये भारत का नारा ‘जय जवान जय किसान जय विज्ञान जय अनुसंधान’

प्रधानमंत्री ने वैज्ञानिकों से अपील की कि वे लोगों का जीवन सुगम बनाने के लिए काम करें। इस संदर्भ में उन्होंने कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सूखा प्रबंधन, आपदा की पूर्व-चेतावनी प्रणाली, कुपोषण दूर करने, बच्चों में दिमागी बुखार जैसी बिमारियों से निपटने, स्वच्छ ऊर्जा, स्वच्छ पेयजल और साइबर सुरक्षा जैसे मुद्दों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि इन क्षेत्रों में अनुसंधान के जरिए समयबद्ध तरीके से समाधान निकाला जाना चाहिए।

उन्‍होंने कहा कि अनुसंधान कला, मानवीकी, सामाजिक विज्ञान, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी का मेल है। अनुसंधान और विकास की रीढ़ हमारी राष्‍ट्रीय प्रयोगशालाएं, केन्‍द्रीय विश्‍वविद्वालय, आईआईटी, आईआईएससी, टीआईएफआर तथा आईआईएसईआर हैं। राज्य विश्वविद्यालयों तथा कॉलेजों में भी मजबूत अनुसंधान ई-प्रणाली विकसित की जानी चाहिए।

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जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान के साथ जय अनुसंधान भी

किसी भी देश का विकास वहाँ के लोगों के विकास के साथ जुड़ा हुआ होता है। इसके मद्देनज़र यह ज़रूरी हो जाता है कि जीवन के हर पहलू में विज्ञान-तकनीक और शोध कार्य अहम भूमिका निभाएँ। विकास के पथ पर कोई देश तभी आगे बढ़ सकता है जब उसकी आने वाली पीढ़ी के लिये सूचना और ज्ञान आधारित वातावरण बने और उच्च शिक्षा के स्तर पर शोध तथा अनुसंधान के पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हों।

विज्ञान, अनुसंधान और विकास पर टिकी है भविष्य के भारत की नींव

बताते चलें कि वर्ष 2019 में पंजाब के जालंधर स्थित लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में 106वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस का आयोजन किया गया था। इसी समारोह में ‘भविष्य का भारत: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी’ विषय पर बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान में “जय अनुसंधान” भी जोड़ दिया था। उनका कहना था कि यह विज्ञान ही है जिसके माध्यम से भारत अपने वर्तमान को बदल रहा है और अपने भविष्य को सुरक्षित रखने का कार्य कर रहा है।

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अनुत्तरित हैं कुछ सवाल

इसमें दो राय नहीं है कि भारतीय वैज्ञानिकों का जीवन और कार्य प्रौद्योगिकी विकास तथा राष्ट्र निर्माण के साथ गहरी मौलिक अंतःदृष्टि के एकीकरण का शानदार उदाहरण रहा है। लेकिन कुछ तथ्य ऐसे भी हैं जो इशारा करते हैं कि भारत आज विश्व में वैज्ञानिक प्रतिस्पर्द्धा के क्षेत्र में कहाँ ठहरता है? भारत की अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में क्या स्थिति है? आखिर क्यों भारत शोध कार्यों के मामले में चीन, जापान जैसे देशों से पीछे है? ऐसी कौन-सी चुनौतियाँ हैं जो अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में भारत की प्रगति के पहिये को रोक रही हैं? इस दिशा में क्या, कुछ समाधान किये जा सकते हैं?

क्या है अनुसंधान और विकास

यूनेस्को (UNESCO) के अनुसार, ज्ञान के भंडार को बढ़ाने के लिये योजनाबद्ध ढंग से किये गए सृजनात्मक कार्य को ही रिसर्च यानी अनुसंधान एवं डेवलपमेंट यानी विकास कहा जाता है। इसमें मानव जाति, संस्कृति और समाज का ज्ञान शामिल है और इन उपलब्ध ज्ञान के स्रोतों से नए अनुप्रयोगों (Applications) को विकसित करना ही अनुसंधान और विकास का मूल उद्देश्य है। रिसर्च एंड डेवलपमेंट (R&D) के तहत प्रमुखतः तीन प्रकार की गतिविधियाँ शामिल हैं- बुनियादी अनुसंधान (Basic Research), अनुप्रयुक्त अनुसंधान (Applied Research) और प्रयोगात्मक विकास (Experimental Development)।

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अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ

  • इंडियन साइंस एंड रिसर्च एंड डेवलपमेंट इंडस्ट्री रिपोर्ट 2019 के अनुसार भारत बुनियादी अनुसंधान के क्षेत्र में शीर्ष रैंकिंग वाले देशों में शामिल है।
  • विश्व की तीसरी सबसे बड़ी वैज्ञानिक और तकनीकी जनशक्ति भी भारत में ही है।
  • वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) द्वारा संचालित शोध प्रयोगशालाओं के ज़रिये नानाविध शोधकार्य किये जाते हैं।
  • भारत विज्ञान और प्रौद्योगिकी अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रणी देशों में सातवें स्थान पर है।
  • मौसम पूर्वानुमान एवं निगरानी के लिये प्रत्युष नामक शक्तिशाली सुपरकंप्यूटर बनाकर भारत इस क्षेत्र में जापान, ब्रिटेन और अमेरिका के बाद चौथा प्रमुख देश बन गया है।
  • नैनो तकनीक पर शोध के मामले में भारत दुनियाभर में तीसरे स्थान पर है।
  • वैश्विक नवाचार सूचकांक (Global Innovation Index) में हम 57वें स्थान पर हैं।
  • भारत ब्रेन ड्रेन से ब्रेन गेन की स्थिति में पहुँच रहा है और विदेशों में काम करने वाले भारतीय वैज्ञानिक स्वदेश लौट रहे हैं।

व्यावहारिक अनुसंधान गंतव्य के रूप में भारत उभर रहा है तथा पिछले कुछ वर्षों में हमने अनुसंधान और विकास में निवेश बढ़ाया है। वैश्विक अनुसंधान एवं विकास खर्च में भारत की हिस्सेदारी 2017 के 3.70 प्रतिशत से बढ़कर 2018 में 3.80 प्रतिशत हो गई। भारत एक वैश्विक अनुसंधान एवं विकास हब के रूप में तेजी से उभर रहा है। देश में मल्टी-नेशनल कॉर्पोरशन रिसर्च एंड डेवलपमेंट केंद्रों की संख्या 2010 में 721 थी और अब नवीनतम आँकड़ों के अनुसार यह 2018 में 1150 तक पहुँच गई है।

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सरकार दे रही है बढ़ावा

भारत में अनुसंधान और विकास कार्यों की रफ्तार कई क्षेत्रों में तेज़ी से बढ़ रही है। सरकार के सहयोग और समर्थन के साथ, वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से शिक्षा, कृषि, स्वास्थ्य, अंतरिक्ष अनुसंधान, विनिर्माण, जैव-ऊर्जा, जल-तकनीक, और परमाणु ऊर्जा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में पर्याप्त निवेश और विकास भी हुआ है। हम धीरे-धीरे परमाणु प्रौद्योगिकी में भी आत्मनिर्भर हो रहे हैं। शोध के क्षेत्र में CSIR, DRDO, ICAR, ISRO, ICMR, C-DAC, NDRI, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IITs) और भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) जैसे कई विश्वविख्यात संस्थान भारत में हैं। ऐसे में भारत में शोध कार्य की दिशा में हुई प्रगति को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन सच्चाई यह भी है कि ऐसे कई अवरोध हैं जिन्हें पार करना भारतीय अनुसंधान और विकास के लिये बहुत ज़रूरी है।

अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में भारत के समक्ष चुनौतियाँ

कुछ चुनिंदा क्षेत्रों में उपलब्धियों को छोड़ दें तो वैश्विक संदर्भ में भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विकास तथा अनुसंधान की स्थिति धरातल पर उतनी मज़बूत नहीं, जितनी कि भारत जैसे बड़े देश की होनी चाहिये। ऐसे में कुछ तथ्यों पर गौर करना ज़रूरी है। जैसे- भारत विश्व में वैज्ञानिक प्रतिद्वंद्विता के नज़रिये से कहाँ है? नोबेल पुरस्कार एक विश्व-प्रतिष्ठित विश्वसनीय पैमाना है जो विज्ञान और शोध के क्षेत्र में हासिल की गई उपलब्धियों के जरिये किसी देश की वैज्ञानिक ताकत को बतलाता है। इस मामले में हमारी उपलब्धि लगभग शून्य है। वर्ष 1930 में सर सीवी रमन को मिले नोबेल पुरस्कार के बाद से अब तक कोई भी भारतीय वैज्ञानिक इस उपलब्धि को हासिल नहीं कर पाया। कारण स्पष्ट है कि देश में मूलभूत अनुसंधान के लिये न तो उपयुक्त अवसंरचना है, न वांछित परियोजनाएँ हैं और न ही उनके लिये पर्याप्त धन उपलब्ध है।

नये भारत का नारा ‘जय जवान जय किसान जय विज्ञान जय अनुसंधान’

आइए हम इसके बारे में जानते हैं कि भारत में अब तक कितने.लोगों को नोबेल पुरस्कार मिल चुका है। साथ ही हम आपको यह भी बताएंगे कि नोबेल पुरस्कार होता क्या है। चलिए शुरू करते हैं।

भारत से इन लोगों को मिला है नोबेल पुरस्कार

भारत के लोग अलग-अलग वर्ग में कुल 10 नोबेल पुरस्कार जीत चुके हैं। लिस्ट में सबसे पहले रविंद्र नाथ टौगोर को साहित्य के लिए यह पुरस्कार मिला था। आगे बताएं तो विज्ञान के लिए सर चंद्रशेखर वेंकट रमन को भी यह पुरस्कार मिल चुका है। उसके बाद इलेक्ट्रॉन पर काम करने वाले हर गोबिंद खुराना को, मानव सेवा के लिए मदर टेरेसा, फिजिक्स के लिए सुब्रमण्यन चंद्रशेखर, अर्थशास्त्र के लिए अमर्त्य सेन, सर विद्याधर सूरजप्रसाद नायपॉल, रसायन विज्ञान के लिए ​वेंकटरमण रामकृष्णन, ​मजदूरों के बच्चों को शिक्षा के लिए कैलाश सत्यार्थी को और गरीबी हटाने के लिए अभिजीत विनायक बनर्जी को यह पुरस्कार मिल चुका है।

क्या होता है नोबेल पुरस्कार

नोबेल पुरस्कार एक काफी प्रतिष्ठित पुरस्कार है जो 6 अलग-अलग क्षेत्रों में दिया जाता है। ये उन लोगों को दिया जाता है जिन लोगों ने पिछले वर्ष के दौरान मानव जाति को सबसे बड़ा लाभ पहुंचाया है, और उनका उन खास 6 क्षेत्रों से ताल्लूक है। मूल रूप से यह पुरस्कार फिजिक्स, केमिस्ट्री, मेडिसिन, साइकॉलजी, साहित्य और शांति के क्षेत्र में दिया जाता है।इसमें शांति पुरस्कार की विशेषता यह है कि ये उस व्यक्ति को दिया जाता है, जिसने राष्ट्रों के बीच फैलोशिप को आगे बढ़ाने, स्थायी सेनाओं को समाप्त करने या कम करने और शांति की स्थापना और प्रचार के लिए सबसे अधिक या सबसे अच्छा काम किया है। 1968 में इसमें सातवां पुरस्कार जोड़ा गया था जो आर्थिक विज्ञान के क्षेत्र में था। यह पुरस्कार आधिकारिक तौर पर नोबेल पुरस्कार नहीं है, लेकिन इसे “अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में आर्थिक विज्ञान में स्वेरिजेस रिक्सबैंक पुरस्कार” कहा जाता है. इसकी स्थापना स्वेरिजेस रिक्सबैंक (स्वीडन का केंद्रीय बैंक) की ओर से की गई थी।

पहले और आज में ज़मीन-आसमान का अंतर

40-50 साल पहले की बात करें तो देश में लगभग 50 प्रतिशत वैज्ञानिक अनुसंधान विश्वविद्यालयों में ही होते थे। लेकिन धीरे-धीरे हमारे विश्वविद्यालयों में अनुसंधान के लिये धन की उपलब्धता कम होती चली गई। अब हालत यह है कि युवा वर्ग की दिलचस्पी वैज्ञानिक शोध में कम तथा अन्य क्षेत्रों में ज़्यादा होती है। महिलाओं की बात करें तो अमूमन उनकी शिक्षा का उद्देश्य मात्र डिग्री हासिल करना रहता है, समाज की बेड़ियाँ उन्हें शोध कार्यों और प्रयोगशालाओं तक पहुँचने ही नहीं देतीं।

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CSIR का एक हालिया सर्वे बताता है कि हर साल लगभग 3000 अनुसंधान/शोध-पत्र तैयार होते हैं, लेकिन इनमें कोई नया आइडिया या विचार नहीं होता। विश्वविद्यालयों तथा निजी और सरकारी क्षेत्र की प्रयोगशालाओं में सकल खर्च भी बहुत कम है। नवीनतम आँकड़ों के अनुसार यह कुल GDP का 1 प्रतिशत भी नहीं है। वैज्ञानिक न जाने कब से यह सीमा
2 प्रतिशत तक बढ़ाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन कोई भी सरकार इस दिशा में शायद ही कुछ कर पाई।

यही नहीं कई प्रतिष्ठित राष्ट्रीय मंचों पर भी यह मुद्दा चर्चा से गायब रहता है। ऐसे में यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि अनुसंधान/शोध पत्रों के नज़रिये से भी वैश्विक विज्ञान में भारत का योगदान केवल 2 से 3 प्रतिशत है। स्पष्ट है कि आर्थिक प्रगति और सामाजिक विकास सुनिश्चित करने के लिये जितना ज़ोर राष्ट्रीय स्तर पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी विकास पर दिया जाना चाहिये, उतका लेशमात्र भी नहीं दिया जाता।

क्या कर रही है सरकार

इसमें संदेह नहीं कि उभरते परिदृश्य और प्रतिस्पर्द्धी अर्थव्यवस्था में विज्ञान को विकास के सबसे शक्तिशाली माध्यम के रूप में मान्यता मिल रही है। इसके पीछे सरकार द्वारा किये गए प्रयासों को नकारा नहीं जा सकता।

देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के नए क्षेत्रों को बढ़ावा देने के लिये 1971 में ही विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) की स्थापना की गई थी, जो देश में विज्ञान और तकनीकी गतिविधियों के आयोजन, समन्वय और प्रचार के लिये एक नोडल सेंटर की भूमिका निभाता है।

2035 तक तकनीकी और वैज्ञानिक दक्षता हासिल करने के लिये विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने ‘टेक्नोलॉजी विज़न 2035’ नाम से एक रूपरेखा भी तैयार की है। इसमें शिक्षा, चिकित्सा और स्वास्थ्य, खाद्य और कृषि, जल, ऊर्जा, पर्यावरण इत्यादि जैसे 12 विभिन्न क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिये जाने की बात कही गई है।

महिला वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करने और एप्लाइड साइंस में शोध करने के उद्देश्य से सरकार ने कई परियोजनाओं का भी चयन किया। किसानों को जड़ी-बूटी के उत्पादन के लिये प्रोत्साहित करने तथा इस दिशा में शोध करने के लिये जम्मू-कश्मीर आरोग्य ग्राम परियोजना, भारत को विश्व स्तरीय कंप्यूटिंग शक्ति बनाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय सुपर कंप्यूटिंग मिशन, नवाचार को बढ़ावा देने के लिये अटल इनोवेशन मिशन, अटल टिकरिंग लैब तथा विद्यार्थियों में शोध कार्यों के प्रति रुचि बढ़ाने के लिये छात्रवृत्ति प्रोग्राम इंस्पायर स्कीम इत्यादि सरकार की कुछ सराहनीय पहलें हैं।

सरकार द्वारा की गई नवीनतम पहलें

वर्ष 2018-19 की नवीनतम पहलों की बात करें तो इसमें इंटर-डिसिप्लिनरी साइबर-फिजिकल सिस्टम्स पर राष्ट्रीय मिशन (NM-ICPS) और द ग्लोबल कूलिंग प्राइज़ शामिल हैं।

इसके अलावा भारतीय और आसियान शोधकर्त्ताओं, वैज्ञानिकों और नवोन्मेषकों के बीच नेटवर्क बनाने के उद्देश्य से आसियान-भारत इनोटेक शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), डिजिटल अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों, साइबर सुरक्षा और स्वच्छ विकास को बढ़ावा देने की संभावनाओं को साकार करने वाली वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिये भारत-UK साइंस एंड इनोवेशन पॉलिसी डायलॉग के ज़रिये भारत और ब्रिटेन मिलकर काम कर रहे हैं।

👉जंगलराज और जातिगत जनगणना

वाहनों के प्रदूषण से निपटने के लिये वायु-WAYU (Wind Augmentation & Purifying Unit) डिवाइस लगाए जा रहे हैं। विदेशों में एक्सपोज़र और प्रशिक्षण प्राप्त करने के उद्देश्य से विद्यार्थियों के लिये ओवरसीज विजिटिंग डॉक्टोरल फेलोशिप प्रोग्राम चलाया जा रहा है।

जनसामान्य के बीच भारतीय शोधों के बारे में जानकारी देने और उनका प्रसार करने के लिये अवसर-AWSAR (ऑगमेंटिंग राइटिंग स्किल्स फॉर आर्टिकुलेटिंग रिसर्च) स्कीम इत्यादि जैसी अन्य कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने दूरदर्शन और प्रसार भारती के साथ मिलकर विज्ञान संचार के क्षेत्र में डीडी साइंस और इंडिया साइंस नाम की दो नई पहलों की भी शुरुआत की है।

विज्ञान के क्षेत्र में भविष्य की रूपरेखा

हालाँकि विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देने के लिये सरकार प्रयास कर रही है, फिर भी इस दिशा में और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। शोध कार्यों में भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बेहतर राष्ट्रीय सुविधाओं के निर्माण की ज़रूरत है। केंद्र और राज्यों के मध्य प्रौद्योगिकी साझेदारी को बढ़ावा देने के लिये उपयुक्त कार्यक्रम चलाए जाने चाहिये।

विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शिक्षकों की संख्या में बढ़ोतरी की जाए ताकि विश्वविद्यालयों में शिक्षकों का अभाव जैसी मूलभूत समस्या को दूर किया जा सके। भारत और विदेशों में R&D अवसंरचना निर्माण के लिये मेगा साइंस प्रोजेक्ट में निवेश भागीदारी, अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों को बढ़ाने के लिये विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थानों में उचित संस्थागत ढाँचे, उपयुक्त अवसंरचना, वांछित परियोजनाएँ और पर्याप्त निवेश की भी ज़रूरत है। प्रतिभाशाली छात्रों के लिये विज्ञान, शोध और नवाचार में करियर बनाने के अवसर प्रदान करने की आवश्यकता है।

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इन सब बातों के मद्देनज़र एक ऐसी नीति बनानी होगी जिसमें समाज के सभी वर्गों में वैज्ञानिक प्रसार को बढ़ावा देने और सभी सामाजिक स्तरों से युवाओं के बीच विज्ञान के अनुप्रयोगों के लिये कौशल को बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया हो। सम्भवतः इसे ही विज्ञान के क्षेत्र में भविष्य की रूपरेखा कहा जा सकता है।

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