दिल्ली हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा, समझदारी ग्रेजुएशन करने से नहीं आती और उम्र का जोश-खरोश से कोई संबंध नहीं है. इस याचिका में संसद और विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता और अधिकतम उम्र सीमा तय करने का अनुरोध किया गया था.
हाई कोर्ट ने कहा कि चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता या अधिकतम उम्रसीमा तय करना है या नहीं, यह अधिकार संसद के पास है. बेंच ने बीजेपी नेता और एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका खारिज करते हुए ये बात कही.
अश्विनी कुमार ने इस याचिका में जन प्रतिनिधित्व कानून (आरपीए) के संशोधन और संसदीय और विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता और अधिकतम 75 साल की उम्रसीमा तय करने का अनुरोध किया था.
चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस सी हरि शंकर की बेंच ने कहा कि यह ध्यान रखना चाहिए कि सभी ग्रैजुएट 10वीं की पढ़ाई भी पूरी न करने वाले लोगों के समान बुद्धिमान हो, यह जरूरी नहीं. बेंच ने कहा कि ग्रेजुएट या नॉन ग्रेजुएट, जरूरी होता है व्यक्ति का समझदार होना. ग्रेजुएशन करने से विवेकशीलता आ भी सकती है और नहीं भी.
कोर्ट ने कहा, कुछ लोग बड़ी उम्र में भी बच्चे के समान होते हैं और कुछ बचपन में ही बुजुर्गों जैसी परिपक्व बुद्धि रखते हैं. यह सब जीवन में सीखने-समझने की ललक और उत्साह से भरपूर दृष्टिकोण पर निर्भर करता है. उम्र का उत्साह से कोई नाता नहीं है.