
धारा 79 (Section 79) डिजिटल मंचों को मध्यस्थ सुरक्षा प्रदान करती है, लेकिन हालिया सरकारी हस्तक्षेप ने इस सुरक्षा को चुनौती दी है। सरकार द्वारा ओटीटी प्लेटफार्मों पर निगरानी, सोशल मीडिया पर टेकडाउन आदेश, और आईटी नियम 2021 का कड़ा अनुपालन डिजिटल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित कर रहा है। सेंसरशिप और आत्म-नियमन के भय से प्लेटफार्म अधिक सामग्री हटाने लगे हैं, जिससे विचारों की विविधता प्रभावित होती है। हालांकि, झूठी सूचनाओं और साइबर अपराधों को रोकने के लिए कुछ हद तक नियमन आवश्यक है। इसीलिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्लेटफार्म जवाबदेही के बीच संतुलन बनाना जरूरी है। भारत (India) को यूरोप के डिजिटल (Digital) सर्विसेज एक्ट और अमेरिका के सेक्शन 230 जैसे संतुलित मॉडल से सीख लेकर, एक पारदर्शी और न्यायसंगत डिजिटल नीति अपनानी होगी। सूचना की इस नित परिवर्तनशील धारा में, जहाँ डिजिटल प्लेटफॉर्म विचारों के विस्तृत वितान की भूमिका निभा रहे हैं, वहीं उन पर लगने वाली बंदिशें एक नवीन प्रश्नचिह्न उत्पन्न करती हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नियमन की कठोरता के मध्य झूलते इस युग में, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 (IT Act) Information Technology Act 2000 (IT Act) की धारा 79 एक महत्वपूर्ण पृष्ठभूमि निर्मित करती है।
धारा 79: मध्यस्थता का कवच या नियमन की तलवार?
आईटी अधिनियम की धारा 79 डिजिटल मंचों को एक ऐसा आश्रय प्रदान करती है, जो उन्हें उपयोगकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत सामग्री की जवाबदेही से मुक्त रखता है, बशर्ते कि: वे मात्र संदेश वाहक की भूमिका निभाएं, न कि नियंत्रक की। किसी अवैध सामग्री की सूचना मिलने पर, नियमानुसार उसे हटाने का यत्न करें। नवीनतम आईटी नियम 2021 (IT Rules 2021) के प्रावधानों का अनुपालन करें। किन्तु, सरकार के हालिया कदमों ने इस कवच को किसी हद तक छिन्न-भिन्न करने का प्रयास किया है, जहाँ अभिव्यक्ति की आज़ादी और नियमन की शक्ति के मध्य एक सतत संघर्ष दृष्टिगोचर होता है।
सरकारी हस्तक्षेप: एक यथार्थपरक व्याख्या
सूचना और संप्रेषण के इस युग में सरकार द्वारा लागू किए गए कुछ प्रमुख हस्तक्षेपों पर यदि दृष्टिपात करें, तो पाते हैं कि ओटीटी प्लेटफार्मों पर बढ़ती निगरानी ने रचनात्मकता को एक कठोर परिधि में बाँधने का प्रयास किया है। सोशल मीडिया पर टेकडाउन आदेश विचारों के मुक्त प्रवाह में एक बाधा के समान प्रतीत होते हैं। आईटी नियम, 2021 का क्रियान्वयन डिजिटल संवाद के सहज प्रवाह को नियंत्रित करने की मंशा रखता है। कई डिजिटल प्लेटफार्मों पर सामग्री प्रबंधन को लेकर पारदर्शिता की कमी उपयोगकर्ताओं के अधिकारों पर प्रभाव डालती है। स्वतंत्र पत्रकारिता एवं वैकल्पिक दृष्टिकोणों को प्रतिबंधित करने की प्रवृत्ति लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर कर सकती है। इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि सरकार द्वारा प्लेटफार्मों की स्वतंत्रता को सीमित करने और दायित्व को बढ़ाने की दिशा में एक अनवरत प्रयास किया जा रहा है।
विचारों की स्वतंत्रता बनाम उत्तरदायित्व का प्रश्न
सेंसरशिप और कंटेंट टेकडाउन जैसे कदम कलात्मक स्वतंत्रता, पत्रकारिता और राजनीतिक आलोचना पर गहरी छाया डालते हैं। आत्म-नियमन (self-regulation) के भय से कई प्लेटफार्म स्वयं ही अधिक सामग्री हटाने लगते हैं, जिससे संवाद की विविधता प्रभावित होती है। सूचना तक पहुँच की स्वतंत्रता सीमित होने से नवाचार और बौद्धिक विमर्श बाधित होता है। डिजिटल मंचों पर झूठी सूचनाओं, घृणा व द्वेष फैलाने वाली सामग्री का उन्मूलन आवश्यक है। उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु कुछ हद तक नियमन अपरिहार्य है। साइबर अपराध, ऑनलाइन उत्पीड़न और फेक न्यूज़ को रोकने के लिए प्लेटफार्मों को अधिक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। प्लेटफार्मों को समुदायिक मानकों और निष्पक्ष नीतियों का पालन करना चाहिए ताकि विचारों की अभिव्यक्ति को बाधित किए बिना एक सुरक्षित डिजिटल वातावरण बनाया जा सके।
संतुलन की आवश्यकता: मध्य मार्ग की खोज
किसी भी लोकतांत्रिक समाज में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और डिजिटल प्लेटफार्मों की जिम्मेदारी के मध्य संतुलन आवश्यक होता है। इसके लिए: संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की सुरक्षा सुनिश्चित हो। एक न्यायसंगत और पारदर्शी कंटेंट मॉडरेशन प्रणाली विकसित की जाए।ओटीटी और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों हेतु स्वतंत्र नियामक संस्था का गठन किया जाए। डिजिटल अधिकारों एवं दायित्वों की स्पष्ट व्याख्या हो।
तकनीकी विशेषज्ञों, नागरिक समाज, और विधायकों के बीच निरंतर संवाद सुनिश्चित किया जाए। डिजिटल प्लेटफार्मों के लिए एक निष्पक्ष और पारदर्शी अपील तंत्र विकसित किया जाए ताकि उपयोगकर्ता अपनी आपत्तियों को दर्ज कर सकें। कंटेंट मॉडरेशन और सेंसरशिप पर डेटा पारदर्शिता रिपोर्ट्स सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराई जाएं।
वैश्विक संदर्भ और भारत की स्थिति
यूरोपीय संघ का “डिजिटल सर्विसेज एक्ट” एक आदर्श उदाहरण है, जो ऑनलाइन प्लेटफार्मों के लिए संतुलित दायित्व निर्धारित करता है। अमेरिका में “सेक्शन 230” प्लेटफार्मों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उत्तरदायित्व के बीच संतुलन प्रदान करता है। भारत को एक ऐसा ढांचा विकसित करने की आवश्यकता है, जो न केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करे बल्कि डिजिटल सुरक्षा और जवाबदेही को भी सुनिश्चित करे। सरकार, न्यायपालिका, और नागरिक समाज के सहयोग से एक प्रभावी डिजिटल नीति विकसित करना आवश्यक है।
सूचना के इस महासागर में, जहाँ विचार लहरों की भांति गतिशील हैं, वहाँ नियमन और स्वतंत्रता के संतुलन की आवश्यकता और भी बढ़ जाती है। आईटी अधिनियम की धारा 79 डिजिटल प्लेटफार्मों को सुरक्षा प्रदान करती है, किन्तु हालिया सरकारी हस्तक्षेप यह दर्शाते हैं कि इस सुरक्षा कवच को सीमित किया जा रहा है। यदि सरकार एक समावेशी और विवेकपूर्ण दृष्टिकोण अपनाए, तो भारत का डिजिटल परिदृश्य एक स्वतंत्र, सुरक्षित और न्यायसंगत दिशा में अग्रसर हो सकता है।