निजीकरण के लिए विद्युत अधिनियम में किये जा रहे संशोधन वापस लेने, पुरानी पेंशन बहाली और संविदा कर्मचारियों को नियमित करने की मांग को लेकर राष्ट्रव्यापी आह्वान के तहत बुधवार को उत्तर प्रदेश में हजारों बिजलीकर्मियों ने कार्य बहिष्कार किया।
बिजली कर्मचारियों की राष्ट्रीय समन्वय समिति ‘नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ एलेक्ट्रीसिटी एम्प्लाइज एंड इंजीनियर्स (एनसीसीओईईई)’ के आह्वान पर उत्तर प्रदेश के ऊर्जा निगमों के तमाम कर्मचारियों, जूनियर इंजीनियर तथा अभियन्ताओं ने कार्य बहिष्कार कर अपने—अपने दफ्तरों के बाहर प्रदर्शन और सभाएं कीं।
हड़ताल में शामिल ‘ऑल इण्डिया पॉवर इंजीनियर्स एसोसिएशन’ के अध्यक्ष शैलेन्द्र दुबे ने बताया कि उत्तर प्रदेश में 45 हजार बिजलीर्किमयों समेत देश के 15 लाख विद्युतकर्मियों और अभियंताओं ने कार्य बहिष्कार किया। बड़े उत्पादन गृहों, 400 तथा 765 के.वी. पारेषण तथा सिस्टम ऑपरेशन की शिफ्ट के कर्मचारियों को कार्य बहिष्कार से अलग रखा गया है ताकि बिजली का ग्रिड पूरी तरह फेल न हो।
उन्होंने बताया कि राजधानी में बिजलीकर्मियों ने शक्ति भवन के बाहर विरोध सभा का आयोजन कर अपनी मांगों के समर्थन में नारेबाजी की। इसके अलावा प्रदेश में सभी बिजली दफ्तरों पर भी प्रदर्शन किये गये। दुबे ने कहा कि निजीकरण के विरोध के अलावा बिजली निगमों के एकीकरण, पुरानी पेंशन बहाली, वेतन विसंगति और संविदा र्किमयों के नियमितीकरण की मुख्य मांगों के प्रति केन्द्र तथा राज्य सरकार के ध्यानाकर्षण के लिये कार्य बहिष्कार का निर्णय लिया गया है।
उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट में प्रस्तावित संशोधन सम्बन्धी विधेयक अगर पारित हो गया तो सब्सिडी और क्रास सब्सिडी तीन साल में समाप्त हो जाएगी। इससे किसानों और आम उपभोक्ताओं के लिये बिजली महंगी हो जाएगी जबकि उद्योगों और व्यावसायिक संस्थानों की बिजली दरों में कमी की जाएगी। हर उपभोक्ता को बिजली लागत का पूरा मूल्य देना होगा जिसके अनुसार बिजली की दरें 10 से 12 रुपये प्रति यूनिट हो जाएंगी।
उन्होंने कहा कि बिजली कर्मचारियों की मुख्य माँग इलेक्ट्रिसिटी एक्ट में संशोधन को वापस लेना, इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 की पुनर्समीक्षा और राज्यों में विघटित कर बनाई गयी बिजली कंपनियों का एकीकरण कर बिजली उत्पादन, पारेषण और वितरण का केरल और हिमाचल प्रदेश की तरह एक निगम बनाना है।
दुबे ने बताया कि अन्य मांगों में विद्युत् परिषद के विघटन के बाद भर्ती हुए कर्मियों के लिए पुरानी पेंशन प्रणाली, बिजली र्किमयों को मिलने वाली रियायती बिजली की सुविधा बरकरार रखना, समान कार्य के लिए समान वेतन, ठेकेदारी प्रथा समाप्त कर नियमित प्रकृति के कार्यों के लिये संविदा र्किमयों को वरीयता देते हुए तेलंगाना की तरह नियमित करना, बिजली का निजीकरण पूरी तरह बंद करना और प्राकृतिक संसाधनों को निजी घरानों को सौंपना बंद करना मुख्य हैं।