अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त, स्टॉक मार्केट होगा धड़ाम, प्राकृतिक आपदाओं व नए-नए संक्रामक रोगों से भयावहता बढ़ेगी, जून-जुलाई देश-दुनिया के लिए रहेंगे भारी,
विस्तार ….
वैश्विक महामारी कोरोना अभी अपने शीर्ष की और बढ़ रही है, मंगल के मकर से कुम्भ राशि में प्रवेश के साथ ही मकर राशि में मंगल-शनि-गुरु की युति भंग हुई, इस युति के भंग होने के साथ ही राहत, उम्मीद का आकलन करना शुरू हो गया.
लेकिन यह राहत इतनी बड़ी भी नहीं की कोरोना का पतन हो जाए. ग्रह गोचर कुछ अलग ही इशारा कर रहे हैं.
एक महीने में एक के बाद एक तीन ग्रहण से होगा सामना,
जुलाई के मध्य 2 चन्द्र ग्रहण तथा 1 सूर्य ग्रहण घटित होंगे.
दोनों चन्द्र ग्रहण उपछाया (मान्द्य) होंगे जो क्रमशः 5-6 जून की दरमियानी रात और 5 जुलाई को होंगे, वही कंकणाकृति सूर्य ग्रहण 21 जून को होगा.
21 जून को आषाढ़ मास की अमावस्या, मृगशीर्ष नक्षत्र, मिथुन राशि में होगा सूर्य ग्रहण, भारत, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका के कुछ शहरो में दिखाई देगा यह ग्रहण.
शास्त्रों के अनुसार एक माह के मध्य दो या दो से अधिक ग्रहण पड़ जाए तो राजा को कष्ट, सेना में विद्रोह, गम्भीर आर्थिक समस्या, जैसी स्थिति निर्मित होती है.
संहिता ग्रंथो में स्पष्ट उल्लेख है की यदि यह स्थिति आषाढ़ माह में बने तो आजीविका पर मार तथा चीन आदि देशों को नुक्सान के योग बनते हैं. तीनों ग्रहण का प्रभाव विश्व के लिए नुक्सान दायक रहेगा.
चीन को लेकर वैश्विक स्तर पर कोई कठोर निर्णय पूरे विश्व को शीत युद्ध की और ले जा सकता है.
कुल मिलाकर जून-जुलाई वायरस से अधिक अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता, अमेरिका-चीन के मध्य मतभेदों को लेकर परेशानी का कारण बन सकता है.
यह ग्रहण उत्तरी राजस्थान, पंजाब, उत्तरी हरियाणा, उत्तराखंड के कुछ भागों में कंकणाकृति तथा शेष भारत में खंड ग्रास के रूप में दिखाई देगा,
वाराणसी (बनारस) में ग्रहण का स्पर्श (प्रारंभ) प्रातः 10.31., मध्य 12.18 और मोक्ष (समाप्ति) दोपहर 02.04 पर होगा. ग्रहण का सूतक दिनांक 20 जून को रात्री 10.31. पर प्रारंभ होगा.
विभिन्न राशियों पर ग्रहण का प्रभाव …
मेष, सिंह, कन्या और मकर राशि हेतु यह ग्रहण शुभ है.
वहीं मिथुन, कर्क, वृश्चिक और मीन राशि के लिए यह ग्रहण अशुभ है.
वृषभ, तुला, धनु और कुम्भ राशि हेतु मिश्रित रहेगा यह ग्रहण.
एक के बाद एक ग्रह होंगे वक्री
ग्रह वक्री दिनांक राशि
गुरु 14 मई से 12 सितम्बर मकर
शनि 11 मई से 29 सितम्बर मकर
बुध 18 जून से 11 जुलाई मिथुन
शुक्र 13 मई से 24 जून वृष
राहु-केतु यह वक्री ही रहते हैं मिथुन तथा धनु
आने वाले कुछ समय में एक के बाद एक पांच ग्रह अपनी चाल बदल कर वक्री होकर देश-विदेश में अपना कहर बरपा सकते हैं.
राहू मिथुन राशि में वक्री है, वही 11 मई को शनि तथा 14 मई को गुरु मकर राशि में वक्री होंगे. वही 13 मई से शुक्र भी इन वृषभ राशि में वक्री होंगे वही इन चारो वक्री ग्रहों के साथ आग में घी का कार्य करने के लिए बुध 18 जून से मिथुन राशि में वक्री होंगे.
क्या होता है वक्री ग्रहों का प्रभाव
संहिता ग्रंथानुसार यदि कोई ग्रह अपनी नैसर्गिक गति से विपरीत उल्टी तरफ बड़ते है तो उसे वक्री कहा जाता है.
हालांकि राहू केतू की नैसर्गिक चाल वक्र ही है. आने वाले जून-जुलाई काफी कष्टकारी हो सकते है. पांच ग्रहों का वक्री होना जनजीवन को अस्तव्यस्त कर सकता है.
दो प्रमुख ग्रह शनि और गुरु का एक साथ मकर राशि में वक्री होना, पश्चिमी देशो में उथल पुथल मचा सकता है. मकर राशि शनि की स्वराशी है और गुरु की नीच राशि है. दोनों ग्रहों की आपसी द्वन्द की भेट चढ़ सकती है विश्व की अर्थ व्यवस्था.
स्टॉक मार्केट में रिकार्ड गिरावट देखने को मिल सकती हैं. पांचो ग्रह तीन राशि को प्रभावित कर सकते है, वृषभ, मिथुन और मकर राशि होंगी प्रभावित. जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है
वर्षेश बुध का अपनी राशि मिथुन में वक्री होना, वायु तत्व राशि मिथुन में बुध का वक्री होने से संक्रामकता अपने चरम स्तर पर पहुंच सकती है.
प्राकृतिक आपदा और संक्रामक बिमारी के बढ़ने के संकेत भी प्राप्त हो रहे हैं.