इस बार मुख्य विपक्षी के रूप में एकमात्र सपा थी। उसका भाजपा से सीधा मुकाबला था। सपा को उम्मीद थी कि उत्तर प्रदेश में स्थापित हो चुकी परम्परा आगे बढ़ेगी। इसके अनुरूप किसी पार्टी को लगातार दूसरी बार सरकार बनाने का अवसर नहीं मिलता है।
- Published by- @MrAnshulGaurav
- Tuesday, 15 March, 2022
उत्तर प्रदेश के राजनीति परिदृश्य में बड़ा बदलाव आया है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने दो दशकों से चल रहे सपा बसपा के वर्चस्व को समाप्त किया था। इस बार मुख्य विपक्षी के रूप में एकमात्र सपा थी। उसका भाजपा से सीधा मुकाबला था। सपा को उम्मीद थी कि उत्तर प्रदेश में स्थापित हो चुकी परम्परा आगे बढ़ेगी। इसके अनुरूप किसी पार्टी को लगातार दूसरी बार सरकार बनाने का अवसर नहीं मिलता है।
करीब चालीस वर्षों की इस परम्परा को सपा ने स्थायी मान लिया था। इसी हिसाब से उसने मंसूबे भी बना लिए थे। लोक लुभावन वादों का पिटारा खोल दिया था। इसके बाद भी उसे सरकार बनाने का जनादेश नहीं मिला। बेहिसाब वादों से उसका संख्या बल तो बढा। लेकिन बहुमत का विश्वास हासिल नहीं हुआ। चुनाव में वादों का बहुत महत्व रहता है। इसमें भी फ्री सौगात के वादों का गहरा असर होता है। आम आदमी पार्टी के उत्थान में फ्री बिजली पानी का सर्वाधिक योगदान था। दिल्ली के बाद पंजाब में भी यह वादा खूब चला। उत्तर प्रदेश में सपा ने भी आप की तर्ज पर वादों का पिटारा खोल दिया था। इस मामले में अन्य सभी पार्टियां उससे पीछे थी।
उत्तर प्रदेश में फ्री बिजली वादे की शुरुआत आप ने ही की थी। आप सांसद संजय सिंह ने दो सौ यूनिट फ्री बिजली का दांव चुनाव की शुरुआत में चला था। उनका अंदाज अरविंद केजरीवाल जैसा था। उसी अंदाज में वह भाजपा और संघ पर आरोप लगाने लगे। उनका अभियान आगे बढ़ता उसके पहले सपा तीन सौ यूनिट फ्री बिजली का वादा लेकर आ गए। इसी के साथ अन्य बेहिसाब वादों की सूची थी। इसमें पुरानी पेंशन बहाली,पांच वर्ष तक करोड़ों लोगों को मुफ्त राशन और न जाने क्या क्या। इन वादों को गेंम चेंजर तक कहा गया।
दो सौ यूनिट फ्री बिजली से तो दिल्ली में सरकार बनवा दी थी। संजय सिंह वहीं तक सीमित रहे। सपा ने इसे तीन सौ यूनिट तक पहुंचा दिया। पेंशन बहाली के मुद्दा भी महत्वपूर्ण था। इन वादों ने सपा को मुकाबले की बेहतरीन स्तर पर पहुंचा दिया था। अन्य विपक्षी पार्टियां मुकाबले से बाहर थी। ऐसे में पूरा लाभ सपा को ही मिलना था। उसे इसका लाभ भी मिला। पिछली बार के मुकाबले उसकी सीटें बढ़ी। लेकिन सत्ता में पहुंचने की उम्मीद पूरी नहीं हुई। दिल्ली और पंजाब में आप का मुकाबला कांग्रेस से था। लेकिन उत्तर प्रदेश में सपा को भाजपा से मोर्चा लेना था। जिसमें योगी सरकार के पांच वर्षों की अभूतपूर्व उपलब्धियां सामने थी। दूसरी तरफ सपा की पिछली सरकार का रिकार्ड था। जिसमें कानून व्यवस्था की दशा को लोग भूले नहीं थे। यही कारण था कि सपा ने वादों के आधार पर जो मंसूबा बनाया था,वह पूरा नहीं हुआ।
योगी सरकार ने विरासत में मिली बदहाल बिजली व्यवस्था को सुधारा था। पिछली सरकारों के समय बिजली की किल्लत को लोग भूले नहीं है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी का फ्री बिजली पानी के वादे ने जादुई असर दिखाया था। अरविंद केजरीवाल की चुनावी सफलता में यह सबसे बड़ा कारक बना था। इसके बाद अनेक पार्टियों ने इस आसन तरीके को अपनाया। इसके पहले ऐसे वादों ने कई राज्यों में असर दिखाया था।
ऐसे वादे करने वाले दलों को सफलता तो मिली, लेकिन इनके अमल से वहां की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा था। क्योंकि इन वादों पर खर्च होने वाली धनराशि की भरपाई अन्यत्र से ही करनी होती है। गरीबों वंचितों व जरूरतमंदों की सहायता करना सरकार की जिम्मेदारी होती है। ऐसी व्यवस्था परिस्थिति काल के अनुरूप की जाती है। किंतु मात्र चुनावी लाभ के लिये ऐसा करना उचित नहीं हो सकता।
पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने किसानों को बहत्तर हजार रुपये वार्षिक देने का वादा किया था। यह मोदी सरकार द्वारा दी जा रही किसान सम्मान निधि के जबाब में किया गया था। जिसमें किसानों को बीज उपकरण खाद आदि के लिए छह हजार रुपये वार्षिक दिए जाते है। कांग्रेस ने इतनी धनराशि प्रतिमाह देने का वादा किया था। इसके बाद भी किसान कांग्रेस से प्रभावित नहीं हुए। उत्तर प्रदेश में इस समय कानून व्यवस्था का मुद्दा सर्वाधिक प्रभावी है। इस आधार पर पिछली व वर्तमान सरकार की तुलना भी चल रही है। फ्री बिजली आदि का मुद्दा इसके बाद आता है। इसके अलावा पिछली व वर्तमान सरकार के समय बिजली की उपलब्धता भी एक मुद्दा है। पहले बिजली की बेहिसाब कटोती से जन जीवन प्रभावित रहता था। मुख्यमंत्री व बिजली मंत्री के क्षेत्र अति विशिष्ट माने जाते थे।
योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद इस परम्परा को समाप्त किया। जिला तहसील व गांव तक विजली आपूर्ति की व्यवस्था बिना भेद भाव के की गई। अघोषित बिजली की अघोषित कटौती से निजात मिली। योगी सरकार के सुशासन से यहां ईज आफ लिविंग बेहतर हुई है। एक करोड़ अड़तीस लाख घरों में निःशुल्क विद्युत कनेक्शन दिए गए हैं।आज प्रदेश के जिला मुख्यालयों पर चौबीस घण्टे,तहसील मुख्यालय कारीब बाइस घण्टे, ग्रामीण क्षेत्र में सोलह से सत्रह घण्टे बिजली आपूर्ति दी जा रही है। आने वाले समय में पूरे प्रदेश में चौबीस घण्टे विद्युत आपूर्ति देने की दिशा में कार्य किया जा रहा है।
पिछली सरकार में उत्तर प्रदेश का विद्युत विभाग तिहत्तर हजार करोड़ रुपये घाटे में था। उस समय बिजली की उचित आपूर्ति व्यवस्था भी नहीं थी। बिजली विभाग का घाटा अवश्य बढा है,किंतु वर्तमान सरकार ने पर्याप्त आपूर्ति की व्यवस्था की है। प्रदेश के सभी गांव घर तक बिजली कनेक्शन पहुंचाया जा चुका है। पिछली सरकार के दौरान बिजली दरों में साठ प्रतिशत से अधिक बढ़ोतरी हुई थी। विगत पांच वर्षों में पच्चीस प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा कानून व्यवस्था का मुद्दा भी सपा के लिए भारी पड़ा। उसके वादे आकर्षक थे। लेकिन उसका अतीत आमजन को आशंकित कर रहा था। जबकि, मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने कानून व्यवस्था को ठीक करने पर जोर दिया था। उनका कहना था बेहतर कानून ब्यवस्था का सर्वाधिक महत्व रहता है। क्योंकि इसके बाद ही विकास का माहौल बनता है।
पिछली सरकारों ने इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया है। इस लिए उत्तर प्रदेश विकास में पीछे रह गया था। योगी का यह फार्मूला सार्थक रहा। प्रदेश में विकास के अनेक रिकार्ड कायम हुए। पचास कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में यूपी नंबर वन हो गया। मेडिकल कॉलेज और एयर पोर्ट एक्सप्रेस वे निर्माण में उत्तर प्रदेश ने सत्तर वर्षों के आंकड़ों को पीछे छोड़ दिया। चुनाव ज्यों ज्यों आगे बढ़ा कानून व्यवस्था का मुद्दा प्रभावी होता गया। सपा और उसके सहयोगी दलों के नेताओं के बयान आशंका बढ़ाने वाले थे। इसके सामने फ्री बिजली पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा कमजोर पड़ गया। भाजपा की सीटें कम हुई,लेकिन सरकार बनाने का जनादेश उसी को मिला।