नेताजी के नाम से मशहूर सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव का सोमवार सुबह निधन हो गया। ऐसे में हर कोई मुलायम सिंह को अपने तरीके से याद कर रहा है। हालांकि मुलायम जमीन से जुड़े नेता थे तो हर किसी के पास उन्हें याद करने के अपने संस्मरण हैं। पहलवान, शिक्षक से लेकर नेताजी बनने तक मुलायम सिंह यादव के जीवन के कई किस्से हैं। जवानी के दिनों के अपने जुनून (कुश्ती) के दांव-पेंच उन्होंने सियासत में भी खूब अपनाए। बस उनको अपनाने का स्टाइल कुछ अलग था। साथ ही एक दौर की राजनीति ऐसी भी थी जब मुलायम सिंह यादव पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाई गईं। इस हमले में मुलायम की जान बाल-बाल बची थी।
तारीख 8 मार्च 1984 की है, जब मुलायम सिंह यादव की जान बाल-बाल बची थी। मुलायम सिंह यादव उस वक्त लोकतांत्रिक मोर्चा के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष थे। मुलायम इटावा दौरे पर निकले थे कि अचानक उनकी कार पर दो बाइक सवार हमलावरों ने ताबड़तोड़ गोलियां चला दीं। कार पर कुल 9 राउंड की फायरिंग की गई। इस हमले में मुलायम सिंह के एक सहयोगी की मौत हो गई। लेकिन गोली चलाने वाले छोटेलाल को भी मौके पर ही सुरक्षा कर्मियों ने मौत के घाट उतार दिया। दूसरे हमलावर नेत्रपाल को भी गंभीर चोटें आईं।
हमले के बाद मुलायम सिंह ने किसी का नाम लिए बिना कहा कि मेरी हत्या की साजिश रची गई थी। लेकिन मैं भगवान की दुआ से बच गया। मुझे कुछ समय पहले लोगों ने बताया था कि मुझपर हमला हो सकता है। लेकिन मुझे भरोसा नहीं हुआ। मुलायम सिंह पर हमले का आरोप तत्कालीन ग्राम विकास मंत्री और कांग्रेस नेता बलराम सिंह यादव के समर्थकों पर लगा। इटावा के उस समय के लोकदल अध्यक्ष रहे महाराज सिंह ने आरोप लगाया कि सत्ता में बैठी कांग्रेस अपराधियों की मदद से अपनी राजनीति आगे बढ़ाना चाहती है। 2017 में सपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया तो पीएम मोदी ने कहा था कि अखिलेश यादव ने उस पार्टी के साथ हाथ मिला लिया, जिसने कभी उनके पिता पर हमला कराया था।
बदलते वक्त के साथ गुरु भी बदले
मुलायम सिंह यादव ने कांग्रेस विरोध से अपनी राजनीतिक पारी शुरू की थी। 1967 में पहली बार राम मनोहर लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर जसवंतनगर विधानसभा सीट से चुनाव लड़कर वे विधायक बने। लोहिया उनके राजनीतिक गुरु थे। 1968 में लोहिया के देहांत के बाद मुलायम सिंह यादव बीकेडी में चले गए। इस दौरान उनके गुरु भी बदल गए। उन्होंने चौधरी चरण सिंह को अपना सियासी गुरु बना लिया।
इंटरमीडियट की छमाही परीक्षा छोड़, जाना चाहते थे कुश्ती लड़ने
एक दौर यह भी आया कि इंटरमीडियट की छमाही परीक्षा में मुलायम सिंह यादव के नंबर कम आए थे। इसी बीच मुलायम सिंह यादव का जिले और राज्य स्तर पर खेलकूद में लाइट वेट कुश्ती में चयन हो गया। मुलायम सिंह यादव को स्टेट लेबल की कुश्ती के लिए असम जाना था। असम जाने के तैयारी कर रहे थे तो उनके गुरु उदय प्रताप ने कहा कि इंटरमीडियट की परीक्षा में दो महीने का समय बचा है। ऐसे में अगर कुश्ती लड़ने गए तो अखबार में रोल नंबर चश्मा लगाने के बाद भी नहीं मिलेगा। इस तरह वो कहना चाहते थे कि पास नहीं हो पाओगे। इसलिए बेहतर है कि ये कुश्ती छोड़ो और ध्यान से पढ़ो। पास हो जाओगे तो कुछ बन जाओगे।
जब कवि सम्मेलन के मंच पर ही इंस्पेक्टर को पटक दिया
पहलवान से लेकर नेताजी बनने तक मुलायम सिंह यादव के जीवन के कई किस्से हैं। जवानी के दिनों के अपने जुनून (कुश्ती) के दांव-पेंच उन्होंने सियासत में भी खूब अपनाए। बस उनको अपनाने का स्टाइल कुछ अलग था। यहां वो शरीर से नहीं बल्कि दिमाग के सामने वाले को पटखनी दे रहे थे। हालांकि एक बार तो मुलायम ने एक पुलिस इंस्पेक्टर को सचमुच में उठाकर पटक दिया था।
घटना साल 1960 की है। इस समय मुलायम सिंह पहलवानी करते थे। एक बार मैनपुरी के करहल में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। भारी संख्या में लोग पहुंचे। इसी दौरान कवि दामोदर स्वरूप ‘विद्रोही’ ने कविता पढ़नी शुरू ही की थी कि एक पुलिस इंस्पेक्टर ने उन्हें रोक दिया। इस बात से मुलायम सिंह बहुत नाराज हुए। मुलायम मंच की ओर तेजी से बढ़े और इंस्पेक्टर को उठाकर पटक दिया। मुलायम जब यूपी के मुख्यमंत्री बने तो विद्रोही को हिंदी साहित्य भूषण सम्मान से सम्मानित किया।
अंतिम दिनों में पूरा परिवार साथ होने के बावजूद बेहद अकेले थे नेता जी
नेताजी के अंतिम दिनों में उनके साथ अखिलेश यादव, भाई शिवपाल यादव और उनका परिवार उनके साथ था। अगर बाहर से देखें तो मुलायम सिंह यादव के अंतिम दिनों में उनके साथ उनका पूरा परिवार था, लेकिन असल में वो बहुत अकेले थे। पत्नी साधना गुप्ता के निधन के बाद से ही उनकी तबियत खराब रहने लगी थी। जब से साधन गुप्ता का निधन हुआ तब से नेताजी अस्पताल में भी भर्ती थे। नेताजी चाहते थे कि अखिलेश यादव साधना गुप्ता को अपनाएं, पर अफ़सोस ये हो न सका।
जब बाप और बेटे में हो गया मनमुटाव
बाप और बेटे की लड़ाई साल 2017 के विधानसभा चुनाव में जग जाहिर हो गई थी, नेता जी ने अखिलेश की मां को उपेक्षित कर साधना गुप्ता से दूसरी शादी की थी। इसी के बाद से यादव परिवार में लंबी कलह की शुरुआत हुई। जिसमें असंतुष्टों को खुश करने की भरपूर कोशिश की गई। कहा जाता है कि अखिलेश यादव को सौतेला व्यवहार अपनी नई मां से नहीं, ख़ुद अपने पिता मुलायम सिंह यादव से मिला। लोग कहते हैं कि चौबीसों घंटे राजनीति में व्यस्त रहने के कारण उनके पास इतना भी वक्त नहीं था कि अपने बेटे का नामकरण कर पाते, अखिलेश यादव ने अपना नाम खुद ही रखा था।
मुलायम सिंह यादव ने जब साधना गुप्ता को पत्नी का दर्जा दिया, तब से ही अखिलेश उनसे नाराज़ रहने लगे थे। मुलायम सिंह यादव चाहते थे कि अखिलेश यादव साधना गुप्ता को माँ मानें। अखिलेश यादव की मां का नाम मालती देवी था। जब उनका निधन हुआ तो नेता जी ने साधना गुप्ता के साथ अपने संबंधों को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया था। कहा जाता है कि पिता के इस फैसले से अखिलेश यादव बहुत नाराज़ थे। इसके बाद से अक्सर इस तरह की बातें सामने आती रहीं कि अखिलेश और साधना गुप्ता के बीच संबंध कभी ठीक नहीं रहे।
ये थी नेता जी की आखिरी इच्छा
नेता जी चाहते थे कि साधना गुप्ता और अखिलेश यादव के रिश्ते सुधरें, साधना गुप्ता ने भी कहा था कि वो हर हफ्ते अखिलेश का कमरा साफ़ करवाती थी, और फिर उसे बंद कर देती थी। वो आस लगाए रखती थी कि अखिलेश एक दिन आएंगे, ऐसे में अखिलेश का ये कमरा बंद ही रहा। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो एक बार इस संबंध में मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव से बात भी की थी। उन्होंने अखिलेश को पीएम मोदी का उदाहरण देते हुए समझाया था कि, “देखो मोदी जी को, अपनी माँ की कितनी इज़्ज़त करते हैं, कितना मानते हैं।” दरअसल, उस समय प्रधानमंत्री बनने के बाद पीएम मोदी अपनी माँ से मिलने गुजरात पहुंचे थे। इसी का उदारहण देकर नेता जी ने अखिलेश को समझाया था। नेता जी के मन में यही मलाल था कि वो कभी अखिलेश यादव और साधना गुप्ता को मिला नहीं पाए।