लालजी टण्डन की पुस्तक अनकहा लखनऊ उनकी जीवन यात्रा के रोचक प्रसंग है। उन्होंने लखनऊ नगर निगम पार्षद के रूप में समाज सेवा की शुरुआत की थी। उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर लखनऊ नगर निगम द्वारा उनकी मूर्ति की स्थापना की गई। इसका लोकार्पण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा किया गया। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यह मूर्ति टण्डन जी की स्मृतियों को जीवन्तता प्रदान करने के साथ ही, लम्बे कालखण्ड तक लखनऊवासियों को निरन्तर टण्डन जी की याद दिलाती रहेगी।
लखनऊ के सांस्कृतिक, ऐतिहासिक,साहित्यिक, सामाजिक आदि विभिन्न पक्षों को लेकर टण्डन जी ने अपनी पुस्तक ‘अनकहा लखनऊ’ समर्पित की थी। लाल जी टण्डन अनवरत राष्ट्रवादी विचारधारा के साथ आगे बढ़ते रहे। वह देश की सर्वोच्च पंचायत अर्थात संसद के सदस्य रहे। इस रूप में उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अपने दायित्वों का निर्वाह किया। इसके अलावा तीन प्रदेशों से उनका जुड़ाव रहा। यूपी उनका गृह प्रान्त था। यहां उनकी राजनीतिक यात्रा के अनेक पड़ाव व उतार चढ़ाव रहे। लेकिन उन्होंने अपने वैचारिक आधार को कभी कमजोर नहीं होने दिया। सक्रिय राजनीति से सन्यास लेने के बाद वह बिहार व मध्य प्रदेश के राज्यपाल रहे। दोनों ही प्रदेशों में लोकप्रियता रहे। उन्होंने राजभवन के द्वार आमजन के लिए खुले रखे। लोगों के बीच रहना उनका मूल स्वभाव था। लालजी टण्डन ने अपनी पुस्तक अनकहा लखनऊ में अनेक तथ्य उजागर किये थे। मिलनसार होना लखनऊ के चिर परिचित मिजाज रहा है।
लालजी टण्डन की जीवन शैली इसी के अनुरूप थी। तरुण अवस्था में वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े। यहीं से उनका सामाजिक जीवन शुरू हुआ था। इसके बाद समाज के बीच रहना,हमेशा लोगों से मिलना जुलना,सभी के सुख दुख में सहभागी होना उनके स्वभाव का हिस्सा बन गया। पार्षद से लेकर सांसद,मंत्री, राज्यपाल तक हुए, लेकिन उनके मूल स्वभाव में कभी परिवर्तन नहीं हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी को राजनीति में अजातशत्रु कहा जाता है। लाल जी टण्डन उनके अनुज की तरह थे। अटल जी की तरह उन्हें भी यही पहचान मिली। राजनीति में मतभेद खूब रहा। लेकिन उन्होंने भी अटल जी की तरह मनभेद पर विश्वास नहीं किया। वैचारिक प्रतिबद्धता सदैव रही,कभी उससे विचलित नहीं हुए। एक बार उन्होंने बताया था कि सार्वजनिक जीवन में अपने लिए कभी कुछ नहीं मांगा। किसी पद की अभिलाषा नहीं की।अपने बारे में स्वयं कोई निर्णय नहीं लिया। जो पार्टी का आदेश हुआ,उस पर अमल किया। उन्हें बिहार व मध्यप्रदेश का राज्यपाल नामित किया गया था। दोनों प्रदेशों में उन्होंने संविधान के अनुरूप अपने दायित्वों का निर्वाह किया। वहां के लोगों से संवाद बनाये रखा। सीमित समय में ही बिहार और मध्यप्रदेश में आमजन के बीच रहने वाले राज्यपाल की उनकी छवि बनी थी।
जब वह भारतीय जनसंघ के सदस्य बने,तब संघर्ष का दौर था। यह माना जाता था कि कांग्रेस के व्यापक प्रभुत्व को तोड़ा नहीं जा सकता। जनसंघ की स्थापना सत्ता के लिए नहीं हुई है। इसलिए पद नहीं सेवा की प्रेरणा वाले ही इसके सदस्य बनते है। टण्डन जी भी उन्हीं में एक थे। परिवार व व्यवसाय से अधिक ध्यान वह समाज सेवा में लगाते थे। पार्टी के आदेश पर वह पूरी क्षमता से अमल करते थे। बसपा से गठबंधन का निर्णय भी उनका नहीं था। लेकिन जब दायित्व मिला तो वही उसके शिल्पी थे। लाल जी टण्डन के समाज जीवन की शुरुआत सामाजिक सांस्कृतिक संगठन आरएसएस से हुई थी। उन्नीस सौ साठ में वह सक्रिय राजनीति में आये। दो बार पार्षद और दो बार विधान परिषद सदस्य रहे।
तीन बार विधानसभा और एक बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए
1978 से 1984 तक और 1990 से 96 तक लालजी टंडन दो बार उत्तर प्रदेश विधानपरिषद के सदस्य रहे। पहले 1991-92 की उत्तर प्रदेश सरकार में वह मंत्री भी रहे। 1996 से 2009 तक लगातार तीन बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। 1997 में वह नगर विकास मंत्री रहे।
कल्याण सिंह,बसपा गठबन्धन और राजनाथ सिंह सरकार में वह कैबिनेट मंत्री रहे थे। इसके अलावा विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का दायित्व भी उन्होंने बखूबी निभाया था। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीति से दूर होने के बाद लखनऊ लोकसभा सीट खाली हुई थी। उनके लखनऊ से उत्तराधिकारी के रूप में पार्टी ने उन्हें प्रत्याशी बनाया था। वह भारी बहुमत से विजयी हुए थे। वह अटल जी को अपना भाई,पिता,मित्र मानते थे।
अनावरण समारोह में योगी आदित्यनाथ और राजनाथ सिंह ने लालजी टण्डन के व्यक्तित्व व कृतित्व का उल्लेख किया। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि लालजी टण्डन ने देश की अमूल्य सेवा की थी। उन्होंने सार्वजनिक जीवन में लगभग साठ वर्ष का लम्बा समय व्यतीत किया। समाज के प्रत्येक तबके में उनके प्रशंसक विद्यमान थे, समाज के सभी वर्गों के साथ उनका आत्मीयता का व्यवहार था। खूबियों के कारण उन्हें बाबू जी के रूप में लोगों का भरपूर सम्मान मिला। केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में अराजकता का माहौल समाप्त करके पूरे हिन्दुस्तान में शोहरत हासिल की। मुख्यमंत्री ने प्रदेश के विकास को नई दिशा दी है।
राजनाथ सिंह ने कहा कि लालजी टंडन एक तरह से इनसाक्लोपीडिया थें। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में जनसंघ से लेकर भाजपा तक के सफर में स्व टंडन जी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। उन्होंने कहा कि जब वह युवावस्था में थें तो भी कुछ सीखना होता था तो वह टंडन से ही सम्पर्क किया करते थें। भाजपा का हर नेता उनसे सलाह लिया करता था। वह हर फैसले में बेहतर सुझाव दिया करते थें। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतन्त्र देव सिंह ने भी उनके संस्मरणों का उल्लेख किया।
लखनऊ के पूर्व मेयर व वर्तमान उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा ने कहा बाबूजी की मूर्ति का अनावरण अविश्वसनीय है। अटल जी का सानिध्य लालजी टंडन को मिला। वह लखनऊ में चलता फिरता इतिहास थे। सभी समाज मे लोकप्रिय थे।अटल चौक के पास ही लाल जी टण्डन की मूर्ति ही लगाई गई है। जीवन काल मे भी दोनों साथ रहे थे। अब उनकी प्रतिमा भी अटल चौक के पास लगाया गया है।