बसपा सुप्रीमो मायावती ने मेयर के लिए घोषित 10 में छह मुस्लिम व तीन दलित उम्मीदवार उतार कर भविष्य की राजनीतिक रणनीति काफी हद तक साफ कर दी है। यह भी साफ कर दिया है कि उन्हें दलितों के साथ मुस्लिमों पर भरोसा है।
यूपी निकाय चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो जाएंगी। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही मायावती मुस्लिमों पर डोरे डाल रही हैं। उनके अमूमन अधिकतर बयानों में सपा के प्रति मुस्लिमों को सचेत करना होता है। वह अपने को मुस्लिमों का हित चिंतक होने के साथ ही यह बताने से नहीं चूकती हैं कि भाजपा को बसपा ही हरा सकती है। यूपी में मुस्लिमों का बड़ा वोट बैंक हैं। उनकी नजर इस बिरादरी पर है। शायद इसीलिए प्रयागराज उमेश पाल हत्याकांड में अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन का नाम आने के बाद भी उन्हें पार्टी से नहीं निकाला।
बसपा पिछले विधानसभा और उससे पहले लोकसभा चुनाव में अपने लगातार घटते जनाधार को लेकर काफी परेशान रही है। यही वजह है कि नगर निकाय चुनाव में पार्टी अपनी रणनीति बदलती दिख रही है। पार्टी एक बार फिर सोशल इंजीनियरिंग की तर्ज पर दलितों और मुसलमानों को एकसाथ लाने में जुटी है।