लखनऊ। उत्तर प्रदेश ने गुरुवार को घोषणा की कि राज्य ने कंटीन्यूअस एंबिएंट एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग सिस्टम (सीएएमक्यूएमएस) की स्थापना को बढ़ाकर वायु प्रदूषण की निगरानी बेहतर करने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी अपनाने की पहल की है.
सेंटर फॉर स्टडी ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड पॉलिसी (सीस्टेप – सीएसटीईपी) द्वारा आयोजित ‘जलवायु के परिप्रेक्ष्य से वायु प्रदूषण पर विचार’ विषय पर 4 दिवसीय कार्यक्रम इंडिया क्लीन एयर समिट, 2022 (आईसीएएस 2022) को संबोधित करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार के पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन विभाग के सचिव आशीष तिवारी ने कहा कि संसाधनों का आवंटन एक बड़ी चुनौती है क्योंकि राज्य उन 17 विभागों में तालमेल बनाने का प्रयास कर रहा है जिन्हें विभिन्न स्रोतों द्वारा होने वाले वायु प्रदूषण को लक्षित और सीमित करने वाले विभागों के रूप में चिन्हित किया गया है.
श्री तिवारी ने कहा, “यूपी जैसे राज्य का आकार सिर्फ एक राज्य नहीं बल्कि लगभग एक देश जैसा है. भारत के गंगा के मैदानी इलाकों में वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या के रूप में उभरा है और हम इसके सभी पहलुओं से निपटने का प्रयास कर रहे हैं. एक बार जब हम यूपी के लिए रणनीति विकसित कर लेंगे, तो इसका लाभ कई स्तरों पर मिलेगा और यह अन्य राज्यों एवं पूरे देश के लिए उदाहरण प्रस्तुत करेगा. इस संबंध में, वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए इसकी निगरानी प्रमुख पहलू है, हम उत्तर प्रदेश में सीएएक्यूएमएस स्थापित करने के लिए निजी भागीदारी के माध्यम से इसे प्रोत्साहित कर रहे हैं”. उन्होंने आगे कहा कि राज्य ने नन-अटेंमेंट सिटीज में वायु गुणवत्ता में सुधार की दिशा में बहुत अच्छा काम किया है.
उत्तर प्रदेश के 17 तीन शहर नन-अटेंमेंट सिटीज (जिनकी वायु गुणवत्ता 2011 से 2015 की राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता आवश्यकताओं से मेल नहीं खाती) हैं. ऐसे शहरों के मामले में महाराष्ट्र के बाद उत्तर प्रदेश भारत में दूसरे स्थान पर है. जनवरी 2019 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) द्वारा घोषित राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत पीएम2.5 प्रदूषण को 2017 की तुलना में 2024 तक 20-30 प्रतिशत तक कम करने के उद्देश्य से स्वच्छ वायु कार्य योजनाएं तैयार की गई हैं.
तिवारी ने इसके बाद नीति निर्माण, ज्ञान, संसाधन और शासन से संबंधित रणनीतियों से जुड़ी चुनौतियों पर प्रकाश डाला. साथ ही उन्होंने आभासी और बहु-स्तरीय निगरानी की ज़रूरत पर भी जोर दिया, जिसे यूपी सरकार द्वारा वर्तमान में लागू किया जा रहा है.
उन्होंने कहा, यूपी सरकार विभिन्न विभागों के कार्रवाई में तालमेल बिठा रही है. विशिष्ट क्षेत्रों को लक्षित कर वायु प्रदूषण कम करने के लिए नीतियों के अभिसरण की जरुरत है. यूपी में बड़ी संख्या में उद्योग वायु प्रदूषण फैला रहे हैं. मानवीय निगरानी संभव नहीं है. ऐसे में आभासी निगरानी (वर्चुअल मॉनिटरिंग) विकसित की गई है. शहर स्तरीय निगरानी के लिए एक त्रि-स्तरीय निगरानी तंत्र स्थापित किया गया है. प्रदूषित क्षेत्रों को प्राथमिकता देने वाले लक्ष्य के साथ वायु प्रदूषण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रीय योजनाएं समय की जरूरत है. संबंधित मंत्रालयों को यह सलाह दी गई है कि वे अपनी परियोजनाओं में वायु प्रदूषण नियंत्रण से संबंधित कार्यों के लिए लक्ष्य निर्धारित करें.
सीस्टेप – नीति-अनुसंधान थिंक टैंक ने आईसीएएस 2022 के दौरान मूल्यांकन कर बताया कि वायु प्रदूषण विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं का दृढ़ विश्वास है कि देश में सबसे अधिक नन-अटेंमेंट सिटीज वाला उत्तर प्रदेश जैसा राज्य आने वाले समय में अपने नागरिक को स्वच्छ हवा उपलब्ध कराने की दिशा में सक्रिय कदम उठाकर अन्य राज्यों के लिए आदर्श प्रस्तुत कर सकता है और नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभा सकता है.
डॉ. प्रतिमा सिंह, अध्यक्ष, सेंटर फॉर एयर पॉल्यूशन स्टडीज (सीएपीएस), ने कहा, “राज्य के शहरों में एक मजबूत बुनियादी निगरानी ढांचे की स्थापना से उन शहरों के लिए बेहतर योजना बनाने में मदद मिलेगी, जो वायु प्रदूषण का सामना करते हैं लेकिन अभी तक जिनकी पहचान नन-अटेंमेंट सिटीज के रूप में नहीं हुई है. कम लागत वाले सेंसर जैसे वैकल्पिक तरीकों का उपयोग अवश्य ही बुनियादी निगरानी ढांचे को बेहतर ढंग से मजबूत करने में मदद करेगा.”
इस बीच, एनसीएपी के पहले चरण की निर्धारित समय सीमा नजदीक आने के साथ, विशेषज्ञों का मानना है कि एनसीएपी 2.0 को आदर्श रूप से वायु प्रदूषण प्रबंधन कार्यक्रम को आगे बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जिससे अकेले उत्तर प्रदेश में 20,000 से 40,000 नौकरियों के सृजन की संभावना है.
प्रोफेसर एसएन त्रिपाठी, वरिष्ठ प्रोफेसर, सिविल इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी कानपुर ने गुरुवार को आईसीएएस में कहा, “अनुमानित 10 लाख ग्रीन जॉब्स पूरे भारत में अकेले वायु गुणवत्ता सुनिश्चित करने के कार्यक्षेत्र में उपलब्ध हैं. यह प्रशिक्षण आइआइटी में शुरू किया जा सकता है. अकादमिक, तकनीक और स्वास्थ्य क्षेत्रों में उपलब्ध इन नौकरियों के अवसर पैदा करना एनसीएपी को इसके दूसरे चरण में आगे ले जाने में काफी मददगार साबित हो सकता है.”
इस बीच, इस साल, अपने चौथे संस्करण में आईसीएएस ने पर्यावरण कार्यकर्ताओं, नीति निर्माताओं, उद्योगपतियों और छात्रों को कई मुद्दों पर चर्चा के लिए एक साझा मंच प्रदान किया जो वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के बीच के अंतर्संबंधों पर विचार करेंगे एवं इस पर भी गौर करेंगे कि इन दोनों मुद्दों की साझा पड़ताल कैसे नीतियों के लिए महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि पर प्रकाश डाल सकती है. वक्ताओं ने इस बात की पड़ताल की कि अक्षय ऊर्जा की ओर भारत के ऊर्जा अंतरण (ट्रांजीशन) का वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के दोहरे संकटों पर क्या प्रभाव पड़ेगा.