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संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए टीकाकरण प्रभावी- सीएमओ

• बच्चों को असाध्य रोगों से भी बचाता है टीका

• राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे की रिपोर्ट में जनपद की स्थिति सुधरी

कानपुर। मासूमों की मुस्कान और तोतली बोली से ही हर घर रोशन होते हैं। जन्म से लेकर एक पांच साल तक का समय मासूमों को 12 टीका रोकथाम योग्य जानलेवा रोग से बचाव के लिए महत्वपूर्ण समय होता है। इसमें की गयी चूक बच्चों की जान पर भारी पड़ सकती है। यदि किन्हीं कारणों से बच्चे टीकाकरण से वंचित रह गए हैं तो तुरंत स्वास्थ्य कार्यकर्ता या फिर डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए और जितना जल्दी हो सके बच्चों को बीमारियों से बचाव के टीके लगवा देने चाहिए। हालांकि जनपद की स्थिति टीकाकरण के मामले में बेहतर है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार इसमें साल दर साल सुधार हुआ है।

हर साल 16 मार्च राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस पहली बार 16 मार्च 1995 को मनाया गया था। इस दिन भारत में वर्ष 1995 में मुंह के माध्यम से पोलियो वैक्सीन की पहली खुराक दी गई थी। मुख्य चिकित्साधिकारी डा आलोक रंजन बताते हैं कि संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए टीकाकरण सर्वाधिक प्रभावी एवं सबसे सस्ती विधि मानी जाती है। लेकिन रूढ़िवादी परंपराओं के चलते ग्रामीण क्षेत्र में कई बच्चे टीकाकरण से अछूते रह जाते हैं, जिसका खामियाजा उन्हें असाध्य रोगी बना देता है।

क्या है टीकाकरण?

जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ एके कन्नौजिया बताते हैं कि बच्चों के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने को लेकर टीके लगाए जाते हैं, जिससे बच्चों के शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है। टीकाकरण से बच्चों को छह गंभीर संक्रामक रोगों से बचाया जाता है। इन रोगों की वजह से प्रतिदिन हजारों बच्चों की जान चली जाती है या वह अपंग हो जाते हैं। इन रोगों में खसरा, टेटनस, पोलियो, टीबी, गलघोंटू, काली खांसी, हेपेटाइटिस “बी” जैसे रोग हैं। पोलियो के अतिरिक्त सभी टीके इंजेक्शन द्वारा दिए जाते है।

संक्रामक रोग

उप जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ जसबीर सिंह बताते हैं कि गर्भवती को टिटनेस के टीके लगाकर उन्हें व उनके नवजात शिशुओं को टिटनेस से बचाया जाता है। उन्होंने बताया टीके लगवाने के दिन अगर बच्चा मामूली रूप से बीमार रहे मसलन सर्दी-जुकाम, दस्त या किसी अन्य बीमारी से पीड़ित हो तब भी उसे समयानुसार टीके लगवाना सुरक्षित है। शिशु को लगने वाला कोई टीका पकता है और किसी को बुखार आता है या दर्द होता है तो ऐसी स्थिति में घबराएं नही। टीबी की बीमारी से बचाने वाला बीसीजी टीका पक भी सकता है। टीका पकना या बुखार आना यह बताता है कि टीके ने अपना काम कर दिया है। और अब बच्चा उस बीमारी से बचा रहेगा। शिशु को टीके लगवाते समय अभिभावकों, परिजनों को एएनएम दीदी से टीके के प्रभाव के बारे में पूछना चाहिए। हर मां-बाप अपने बच्चों की टीकाकरण की तारीख व दिन याद रखें।

याद रखे..

1- बच्चों मे बीसीजी का टीका, डीपीटी के टीके की तीन खुराके, पोलियो की तीन खुराकें व खसरे का टीका उनकी पहली वर्षगांठ से पहले अवश्य लगवा लेना चाहिए।
2- यदि भूलवश कोई टीका छूट गया है तो याद आते ही स्वास्थ्य कार्यकर्ता/चिकित्सक से संपर्क कर टीका लगवाएं। यह सभी टीके उप स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक-सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और जिला महिला अस्पताल पर नि:शुल्क उपलब्ध हैं।
3- टीके तभी पूरी तरह से असरदार होते हैं जब सभी टीकों का पूरा कोर्स सही उम्र पर दिया जाए।
4- मामूली खांसी, सर्दी, दस्त और बुखार की अवस्था में भी यह सभी टीके लगवाना सुरक्षित है।

क्या कहता है जनपद का राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-05

1- वर्ष 2015-16 में 12 से 23 माह की उम्र के 50.9 प्रतिशत बच्चों को टीके लगाए जा रहे थे। जबकि 2019-21 यह आंकड़ा बढ़कर 72.8 फीसदी हो गया।
2- 93.7 प्रतिशत बच्चों को 12 स 23 माह की उम्र में बीसीजी से बचाव का टीका लगाया जा रहा है।
3- 12 से 23 माह के 77.4 फीसदी बच्चे पोलियो की खुराक ले चुके होते हैं। जबकि इससे पूर्व यही आंकड़ा 64.7 फीसदी का था।
4 – 78.6 फीसदी बच्चों को खसरा से बचाव के टीके लग चुके होते हैं। इससे पूर्व 74 फीसदी बच्चों को ही खसरा से बचाव के टीके लग रहे थे।
5- 12 से 23 माह के 81.7 फीसदी बच्चों का सरकारी अस्पतालों में टीकाकरण हुआ। जबकि 2019-21 में यह आंकड़ा बढ़कर 96.4 फीसदी हो गया।

रिपोर्ट-शिव प्रताप सिंह सेंगर

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