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नारायणमूर्ति को लेकर ऐसा क्यों बोले थे विप्रो के अजीम प्रेमजी, जानें किस्सा

आईटी की दिग्गज कंपनी इंफोसिस के संस्थापक सदस्यों में से एक नारायणमूर्ति ने खुलासा किया है कि उन्होंने विप्रो में नौकरी के लिए आवेदन किया था, लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिली थी। नारायणमूर्ति ने कहा ‘एक बार उन्हें आईटी कंपनी विप्रो में नौकरी देने से इनकार कर दिया गया था।’ नारायणमूर्ति ने बताया कि ‘इसके बाद ही उन्होंने खुद की कंपनी शुरू करने पर गंभीरता से विचार करना शुरू कर दिया था।’ विप्रो के पूर्व चेयरमैन अजीम प्रेमजी ने भी माना कि नारायणमूर्ति को नौकरी नहीं देना उनकी सबसे बड़ी गलतियों में से एक थी।

अजीम प्रेमजी ने भी मानी थी गलती
एक इंटरव्यू में नारायणमूर्ति ने बताया कि ‘अजीम ने एक बार मुझसे कहा था कि मुझे नौकरी ना देना उनकी सबसे बड़ी गलतियों में से एक थी। अगर ऐसा ना हुआ होता तो विप्रो को कोई चुनौती देने वाला ही नहीं होता।’ विप्रो और इंफोसिस दोनों भारत की दिग्गज आईटी कंपनियों में शुमार की जाती हैं और दोनों बेंगलूरू में बेस्ड हैं। विप्रो की शुरुआत अजीम प्रेमजी के पिता एमएच हशाम प्रेमजी ने दिसंबर 1945 में की थी। वहीं इंफोसिस की शुरुआत जुलाई 1981 में नारायणमूर्ति, नंदन नीलकेणी, क्रिस गोपालकृष्णन, एसडी शिबुलाल, के दिनेश, एनएस राघवन और अशोक अरोड़ा ने मिलकर की थी। इंफोसिस और विप्रो आज एक दूसरे की सबसे बड़ी प्रतिद्वंदी कंपनियां हैं और इंफोसिस ने मार्केट वैल्यूएशन के मामले में विप्रो को काफी पीछे छोड़ दिया है।

10 हजार रुपये से शुरू हुई थी इंफोसिस
इंफोसिस 10 हजार रुपये के निवेश से शुरू हुई थी, जो नारायणमूर्ति की पत्नी सुधा मूर्ति ने दिए थे। नारायणमूर्ति ने बीते दिनों माना था कि उन्होंने अपनी पत्नी को इंफोसिस में काम नहीं करने दिया और यह उनकी गलती रही क्योंकि सुधा मूर्ति हम सातों में सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी थीं। नारायणमूर्ति ने इंफोसिस से पहले सॉफ्ट्रोनिक्स नाम से एक और कंपनी की शुरुआत की थी, लेकिन वह असफल रही थी। इसके बाद उन्होंने पुणे में पाटनी कंप्यूटर में नौकरी की थी।

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