बड़को ने प्रपंच का आगाज करते हुए कहा- दयू क लीला अपरंपार हय भइय्या। भगवानव गरीबन का कसे हयँ। किसानन पय चारिव लँगसे आफत हय। इंदर देव का द्याखव। आषाढ़ अउ सावन म जब बरसय का रहय, तब नाइ बरसे। धान कय रोपाई नीके नाइ होय पाई। पानी न होय ते ब्याढ़ (पौध) सुखि गय। अब द्याखव, कुवार अउ कातिक म रोजय बहिया आय रही। आंधी-पानी ते सगरी फ़सलन का मटियामेट होइगा।
पका धान पानी म लोटि रहा। फलु, सब्जी ख्यातन म सरि रही। गन्ना पटरा होइगा। मक्का, जोनधरी, तिल्ली अउ अलसिव केरि नासि पढ़ी जाय रही। अखिर हम पंच का करी? कबहुँ सूखा, कबहुँ बहिया, कबहुँ आंधी-पानी, कबहुँ पाथर, कबहुँ आगि अउ कबहुँ बेमौसम बरीखा होत हय। खेती-पाती म अब कुछु रक्खा नाइ हय। लरिका, मनई जौ बाहर कमाए न तौ रोटी क लाले परि जायँ। अबसिला तौ लरिका-बिटिया दशहरा क म्यालव नाय देखि पाइन। विजय दशमी क दिन भोर ते लैके राति तलक पानी गिरा रहय।
चतुरी चाचा अपने चबूतरे पर बड़ी गम्भीर मुद्रा में विराजमान थे। आज भोर में बारिश होने के बाद मौसम खुल गया था। हालांकि, आसमान में बादलों की आपाधापी जारी थी। फिर से बारिश होने की संभावना बरकरार थी। ककुवा, मुंशीजी व बड़के दद्दा बेमौसम बारिश से हो रहे नुकसान पर खुसुर-पुसुर कर रहे थे। वहीं, गांव के बच्चे सियर-सटकना खेल रहे थे। पुरई गायों को चारापानी दे रहे थे। आज कासिम चचा गैरहाजिर थे। वह आज अपने पच्छेहार वाले खेतों में धान कटवा रहे हैं। ऐसा मुंशीजी ने सबको बताया। मेरे चबूतरे पर पहुंचते ही चतुरी चाचा ने ककुवा से प्रपंच शुरू करने को कह दिया। ककुवा बोले- चतुरी भाई, आजु परपंचु बड़को त चालू कराव। उई द्याखव, बड़को खटिया, मचिया अउ हंसिया लैके आय रहीं। वहिके पीछे नदियारव आय रही।
दरअसल, बड़को अपनी बहू नदियारा के साथ धान काटने जा रही थीं। उनके खेत में बारिश का पानी भरा है। धान की फसल पक गयी थी। अब खटिया की मदद से धान की बालियां काट रही हैं। सास-बहू हमेशा की तरह प्रपंच चबूतरे के सामने आकर ठिठक गईं। चतुरी चाचा ने बड़को से प्रपंच शुरू करने की बात कही। बड़को बोली- हमका जादा परपंचु नाय आवत। दुसरे, हमका होय रही देर। मंगलू क बप्पा ख्यात म राह देखि रहे होइहैं। मुला, तुमार बाति काटब नाइ। परपंचु शुरू कइके जइब।
बड़को ने प्रपंच का श्रीगणेश करते हुए बताया कि बेमौसम बरसात से खेती में बड़ा नुकसान हो रहा है। हर तरफ से किसानों पर ही आफत आती है। कभी आंधी, कभी पानी, कभी आग, कभी ओलावृष्टि, कभी बाढ़ और कभी सूखा पड़ता है। भगवान भी अन्नदाता को भूखे मारने पर तुले रहते हैं। इंद्रदेव आषाढ़ व सावन में नहीं बरसे थे। अब आश्विन व कार्तिक महीने में लगातार बारिश हो रही है। जबकि खरीफ की सारी फसलें तैयार हैं। दूसरी फसलें बोने के लिए खेतों को तैयार करने का समय है। इंद्रदेव ने इस बार तो दशहरा मेला भी नहीं होने दिया। विजय दशमी के दिन भोर से रात तक लगातार बारिश होती रही। न रामलीला हो पाई न रावण का पुतला दहन हो सका।
ककुवा ने बड़को की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा- बड़को भउजी, तुम हमरे मन की बात छीन लेहौ। हमका याद आय रही हय कि पिछलेव साल विजय दशमी क बादि दुई दिन अघायक बरसा रहय। मुदा, फिरि मौसम साफ होइगा रहय। मतलब हद होइगै। कुवार-कातिक महीनम बरसात होय कौनव तुक हय? न समय ते गरमी होय रही न जाड़ होय रहा।
बरीखा क लीला अलगय हय। हमरी सबकी जरूरत प नाय बरसी। बरसी तबहें, जब नुकसान करय क होई। अच्छा, भगवानव सोचत हयँ कि मनई ससुर बड़ा काबिल होइगा हय। हमरी बनाई प्रकृति ते, व्यवस्था ते खेल रहा हय। यहिका दंड दीन जाय। बस, हमार कहब यतना हय कि सब जने अपनी फ़सलन क्यारु बीमा जरूर कराय लीन करव। दुसरे, खाली खेती क सहारे न रहव। कुछु अउर धन्धा-पानी करव। तबहें सुकून केरी दुई रोटी पइहौ।
इसी बीच चंदू बिटिया प्रपंचियों के लिए जलपान लेकर आ गई। आज जलपान में प्याज की कुरकुरी पकौड़ियाँ और तुलसी-अदरक की कड़क चाय थी। हम सबने जी भरकर स्वादिष्ट पकौड़ियाँ खाईं। फिर कुल्हड़ वाली चाय संग आगे का प्रपंच शुरू हुआ। चतुरी चाचा ने कहा- खेती प मौसम केर मारु हमेशा परा हय। इहिते का खेती छोड़ देहौ। अरे! कबहुँ नफा होई तौ कबहुँ नुकसान होई। हां, खेती क्यारु कुछु तौर तरीका बदलय क परी। आधुनिक खेती केरे नाम पैंहिया विषैली खेती होय रही। हर कोई कम खेती म जादा उपज चाहत हय। यही चक्कर म रासायनिक खाद अउ कीटनाशक केरा अंधाधुंध प्रयोग कीन जाय रहा।
खेती म नये नोखे तरीके अपनाए जाय रहे। नये नये बीज बोये जाय रहे। परंपरागत खेती अउ पशुपालन आधारित खेती पीछे छुटिगै। फलस्वरूप, थाली विषैली होत जाय रही। जैविक अउ गौ आधारित खेती क तरफ ध्यान देय का परी। तबहें सबका कल्याण होई। रही बात बाढ़, सूखा अउ दैवीय आपदा की तौ युह अपने बस मा नाइ हय। मुला, हम पंच मौसम ते ताल मिलाय सकित। सब जने अपनी फ़सलन क्यारु बीमा करय सकित। खेती क साथे कौनव अउर व्यवसाय कय सकित। इहिते हमार नुकसान कम होई।
मुंशीजी ने विषय परिवर्तन करते हुए कहा- अब तो रावण को लेकर बड़ा विवाद चल रहा है। एक फ़िल्म आदि पुरुष बनी है। उसमें रावण को मुगल लुटेरों की तरह का गेटअप दिया गया है। रावण की आँखों में सुरमा है। दाढ़ी बढ़ी है। उसके कपड़े लेदर सिंथेटिक हैं। इतना ही नहीं, बल्कि रामायण के अन्य पात्रों की वेशभूषा बड़ी अजीबोगरीब है। सैफ अली खान रावण का रोल कर रहे हैं। इसको लेकर पूरे देश में विरोध हो रहा है। दूसरी तरफ ब्राह्मणों का एक वर्ग रावण के पुतला-दहन का विरोध कर रहा है।
उनका कहना है कि इतिहास में रावण की तरह अनेक अत्याचारी, अहंकारी राजा हुए हैं। इनमें से किसी का पुतला नहीं फूंका जाता है। आखिर रावण का ही पुतला हर साल विजय दशमी के दिन क्यों जलाया जाता है? रावण एक विद्वान, पराक्रमी, ब्राह्मण था। रावण वध की अजीब परम्परा बन्द होनी चाहिए। हालांकि, ज्यादातर ब्राह्मण रावण को आज भी खलनायक मानते हैं।
बड़के दद्दा ने मुंशीजी की बात पर कहा- हर जाति और धर्म में कुछ लोग संकुचित मानसिकता, ओछी सोच के होते हैं। कुछ अपनी जाति/धर्म को लेकर बड़े कट्टरपंथी होते हैं। उनको अपनी जाति/धर्म के लुटेरों, अपराधियों, अत्याचारियों, आतंकवादियों पर गर्व होता है। ऐसे मूर्ख लोग खलनायकों को अपना नायक मानते हैं। रावण को अपना नायक मानने वाले और महिषासुर को यादव सम्राट बताने वाले लोग मानसिक दिवालिये हैं। ऐसी स्थिति-परिस्थिति किसी भी समाज और राष्ट्र के लिए लाभदायक नहीं हो सकती है। ऐसे लोगों के कारण ही समाज और राष्ट्र खंडित होता है। बुरे को बुरा ही मानना श्रेयकर होगा। जाति/धर्म की हथकड़ी-बेड़ी तोड़नी होगी। हम सब सबसे पहले भारतीय हैं। उसके बाद कुछ और हैं।
मने हमेशा की कोरोना तरह कोरोना पर बात करते हुए प्रपंचियों को बताया कि कोरोना भारत में पूरी तरह नियंत्रित है। देश में छुटपुट केस मिलते हैं। मौतों का सिलसिला भी थम चुका है। कोरोना वैक्सीन लगाने का अभियान अंतिम दौर में पहुंच गया है। इसी तरह दुनिया के कुछ देशों को छोड़कर सभी देशों में आजकल कोरोना संक्रमण बेहद कम है। विश्व बिरादरी इस समय काफी राहत महसूस कर रही है। इसलिए अब आप सबको कोरोना के आंकड़े बताने की कोई खास जरूरत नहीं है। क्योंकि, पिछले 21 दिनों से आंकड़ों में कोई बड़ा परिवर्तन देखने को नहीं मिल रहा है। फिर भी कोरोना महामारी के प्रति सावधानी जरूरी है। अंत में चतुरी चाचा ने सुहागिन महिलाओं को करवाचौथ की बधाई एवं शुभकामनाएं दीं। इसी के साथ आज का प्रपंच समाप्त हो गया। मैं अगले रविवार को चतुरी चाचा के प्रपंच चबूतरे पर होने वाली बेबाक बतकही के साथ फिर हाजिर रहूँगा। तब तक के लिए पँचव राम-राम!