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क्‍यों 56 वर्षों तक ट्रेनों में नहीं थी शौचालय की सुविधा? कैसे लगे टॉयलेट? दिलचस्‍प है कहानी

ट्रेन भारत में यातायात का सबसे पसंदीदा साधन है. लंबे सफर के लिए ज्यादातर लोग ट्रेन में ही यात्रा करना पसंद करते हैं. भारत में कई श्रेणियों की ट्रेनें चलती हैं. अलग-अलग श्रेणी की ट्रेनों में सुविधाएं भी अलग-अलग मिलती हैं. आज वंदे भारत एक्‍सप्रेस जैसी लग्‍जरी ट्रेन भी भारत में दौड़ रही हैं जिसमें होटलों जैसी सुविधाएं रेल यात्रियों को मिलती है.

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लंबी दूरी तय करने वाली ट्रेनों को तो हम चलता-फिरता घर भी कह सकते हैं. लेकिन, एक समय ऐसा भी था जब भारतीय ट्रेनों में टॉयलेट भी नहीं होते थे. भारत में ट्रेनें 56 साल तक बिना टॉयलेट के ही पटरियों पर दौड़ी. भारत में पहली ट्रेन 1853 में चली थी और किसी ट्रेन में पहला शौचालय साल 1909 में लगा. ट्रेन में शौचालय लगने का किस्‍सा काफी मजेदार है.

क्‍यों 56 वर्षों तक ट्रेनों में नहीं थी शौचालय की सुविधा? कैसे लगे टॉयलेट? दिलचस्‍प है कहानी

1909 से पहले तक अगर किसी यात्री को टॉयलेट जाना होता था तो उन्‍हें स्‍टेशन पर ट्रेन रुकने का इंतजार करना होता था. ट्रेन के रुकने पर स्टेशन पर बने शौचालय में जाकर या फिर खुले मैदान-जंगल में नित्य क्रिया करते थे. हालांकि, आज से करीब 114 साल पहले एक ऐसी घटना घटी की रेलवे को ट्रेन में शौचालय की सुविधा शुरू करनी पड़ी. रेल पटरियों के किनारे टॉयलेट जाने के बाद भागकर ट्रेन पकड़ने की कोशिश करते गिरे एक रेल यात्री द्वारा रेलवे अधिकारी को लिखे पत्र ने भारतीय ट्रेनों में शौचालय लगने का रास्‍ता साफ किया. टॉयलेट लगवाने के लिए लिखा गया यह सिफारिशी पत्र आज भी रेल संग्रहालय में रखा गया है.

आखिल चंद्र का करें धन्‍यवाद

भारतीय रेल में शौचालय की शुरुआत साल 1909 में की गई. शायद, इसमें भी और देर होती अगर आखिल चंद्र सेन नाम के एक यात्री का रेल में सफर के दौरान पेट न खराब होता. पेट खराब होने की वजह से उन्‍हें पश्चिम बंगाल के अहमदपुर स्‍टेशन पर उतरना पड़ा. वे पटरियों के पास शौच करने चले गए. कुछ देर बाद गार्ड ने सीटी बजा दी और गाड़ी चल पड़ी. आखिल चंद्र सेन अपना लोटा और धोती पकड़कर भागे. वे स्‍टेशन पर गिर गए. उनकी धोती खुल गई और उनकी गाड़ी छूट गई. ट्रेन के गार्ड की इस हरकत की शिकायत उन्‍होंने लेटर लिखकर रेलवे के साहिबगंज मंडल कार्यालय से की.

ओखिल चंद्र सेन ने पत्र में लिखा, “श्रीमान, मैं ट्रेन से अहमदपुर स्टेशन पहुंचा. मेरा पेट खराब था. इसलिए मैं शौच के लिए चला गया. मैं निवृत हो ही रहा था कि गार्ड ने सीटी बजा दी, मैं एक हाथ में लोटा और दूसरे में धोती पकड़कर भागा. मैं गिर गया और स्टेशन पर मौजूद औरतों और मर्दों सबने देखा…मैं अहमदपुर स्टेशन पर ही रह गया. यह बहुत ग़लत बात है, अगर यात्री शौच के लिए जाते हैं तब भी गार्ड कुछ मिनटों के लिए ट्रेन नहीं रोकते? इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि गार्ड पर भारी जुर्माना लगाया जाए. वर्ना यह खबर अखबार को दे दूंगा.”

रेलवे ने समझा यात्रियों का दर्द

ऐसा माना जाता है कि ओखिल चंद्र के पत्र के बाद ही रेलवे अधिकारियों ने ही ट्रेन में शौचालय ने होने पर यात्रियों को होने वाली परेशानियों को समझा. इसके बाद रेलवे ने 50 मील से ज्यादा दूरी तय करने वाली ट्रेनों में शौचायल बनाने की कवायद शुरू की. इस तरह ओखिल चंद्र सेन का भारतीय रेलों में टॉयलेट की सुविधा शुरू करवाने में अहम योगदान है.

लोको पायलट को करना पड़ा और लंबा इंतजार

यात्रियों को भले ही यह सुविधा 1909 में मिल गई हो, लेकिन लोको पायलटों को रेल इंजन में इस सुविधा को पाने के लिए 2016 तक इंतजार करना पड़ा. 2016 से पहले लोको में टॉयलेट नहीं थे. इसके बाद वहां टॉयलेट लगने शुरू हुए हैं.

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