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’32 माह के गर्भ को खत्म नहीं कर सकती महिला’, शीर्ष अदालत का हाईकोर्ट के फैसले में दखल से इनकार

सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को एक महिला को 32 हफ्ते से ज्यादा समय के गर्भ को गिराने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि मेडिकल बोर्ड ने भी इस बात को माना है कि इसे अब खत्म नहीं किया जा सकता है। छब्बीस वर्षीय महिला के पति की पिछले साल अक्तूबर में मौत हो गई थी।

न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने मामले पर सुनवाई की। पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के 23 जनवरी के फैसले में दखल देने से इनकार कर दिया। उच्च न्यायालय ने अपने चार जनवरी के फैसले को वापस ले लिया था, जिसमें महिला को अपने 29 माह पुराने गर्भ को गिराने की अनुमति दी गई थी।

पीठ ने कहा, ‘गर्भ को 32 महीने पूरे हो चुके हैं, इसे अब कैसे खत्म किया जा सकता है? मेडिकल बोर्ड ने भी कहा है कि इसे खत्म नहीं किया जा सकता है। आप चाहें तो इसे गोद लेने के लिए दे सकते हैं।’ महिला की ओर से वकील अमित मिश्रा पेश हुए। उन्होंने कहा कि अगर वह बच्चे को जन्म देती हैं तो यह उनकी (महिला) इच्छा के खिलाफ होगा। उन्हें पूरी जिंदगी सदमे में गुजारनी होगी।

पीठ ने आगे कहा, उच्च न्यायालय ने हरेक बिंदु पर विचार किया है। इसमें मेडिकल बोर्ड का विचार भी शामिल है।अदालत ने कहा, हम मेडिकल बोर्ड की राय से आगे नहीं जा सकते। बोर्ड ने राय दी है कि इसमें कोई असमान्यता नहीं है और यह एक सामान्य भ्रूण है। पीठ ने कहा, बोर्ड की ओर से यह भी राय दी गई है कि अगर याचिकाकर्ता (महिला) गर्भावस्था जारी रखती हैं, तो उन्हें भी कोई खतरा नहीं है।

इसके बाद वकील अमित मिश्रा ने दलील दी कि महिला विधवा है और उसे जीवनभर इस सदमे को सहना होगा। अदालत को उसके हित पर विचार करना चाहिए। इसके बाद न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने पूछा, तो क्या हमें सिर्फ उसके हित पर विचार करना चाहिए? इसके बाद पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले में दखल देने से इनकार कर दिया और याचिका खारिज कर दी।

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