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चारदीवारी में भी औरतें चुन सकती हैं अपने अधिकार

अक्सर महिलाओं में देखा गया है कि वह अपने अधिकार के लिए कुछ नहीं कर पाती है उन्हें एक चारदीवारी के अंदर रहना पड़ता है और समाज के सभी कायदे कानून को मानना पड़ता है इन्हीं सब परेशानियों को पार करते हुए स्त्रियों को अपना अधिकार एक चार दिवारी के अंदर भी मिल सकता है।

          पूजा गुप्ता

महिलाओं में अक्सर देखा गया है कि वह अपनी सारी बातें डायरी के अंदर लिखती है और जो वो नहीं कह सकती हैं वह सब उस डायरी में अंकित करती है, अपने अकेलेपन की परेशानियों से जूझती यह महिलाएं ढूंढती है अपनी आजादी। सभी महिलाएं अगर चाहती है तो अपने अंदर की प्रतिभा को घर के अंदर बैठे बाहर समाज के सामने ला सकती हैं यदि कोई महिला पाक विधि में पारंगत है तो वह पाक विधि से संबंधित अपनी रचनाएं सोशल मीडिया में प्रेषित कर सकती है अखबारों के माध्यम से अपनी बात को कह सकती हैं घर में बैठे-बैठे पर लिख सकती है, पत्र-पत्रिकाओं में अपना स्थान बना सकती हैं।

कुछ महिलाएं जो मानसिक रूप से अपनी घरेलू समस्याओं से परेशान हो जाती हैं तो लेखन विधि उनका सबसे बड़ा हथियार बनता है वह अपनी भावनाओं को एक पेज में लिख कर व्यक्त करती है और मन में उठने वाली उन तरंगों को जो उन्हें परेशान करती है वह उस कागज में वह लिख देती है उनको चाहिए स्वतंत्रता, मन की स्वतंत्रता वह चाहती हैं समाज में भी उनका नाम हो उनकी अपनी पहचान हो, वो मां बाप के घर से आती हैं ससुराल में अपना स्थान बनाती है दोनों कुलों की लाज रखती है यह स्त्रियां।

कई बार देखा गया है की स्त्रियों के परिवार वाले उनके साथ नहीं होते हैं उन्हें बाहर जाने की स्वतंत्रता नहीं है बाहर कोई भी काम करने की स्वतंत्रता नहीं है। कुछ स्त्रियां पढ़ी-लिखी होने के बावजूद भी अपने अधिकारों का सही इस्तेमाल नहीं कर पाती हैं जब कोई स्त्री तकलीफ हो और वे तनाव से गुजरती है तो उनके मन में कुंठा आ जाती है उन्हें लगता है समाज में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को कम आंका जाता है।

मेरा मानना तो सिर्फ यही है कि स्त्रियां अपने अधिकार को समझें यदि उन्हें गाना आता है तो वह गाना गाए यदि वो पाक कला में पारंगत है तो वह इसका प्रयोग करें समाज में कीर्तिमान स्थापित करने के लिए महिलाओं को खुलकर सामने आना चाहिए। महिलाएं चाहें तो अपने परिवार वालों की भी सोच बदल सकती है मैंने बहुत ही महिलाओं को देखा है जो पढ़ी-लिखी ज्यादा नहीं है पर फिर भी ऊंचाइयों को छू रही हैं फेसबुक के माध्यम से अपने लेखन के माध्यम से वह अपनी एक पहचान बना रही है, उन्हें सभी जगह सम्मान पत्रों से विभूषित किया जाता है, जिसका जीता जागता उदाहरण मैं खुद हूं अपनी आजादी को मैं एक चारदीवारी में जी सकती हूं मैं लिख सकती हूं अपने मन की बात कह सकती हूं और इसका सबसे अच्छा माध्यम है न्यूज़पेपर और पत्र पत्रिकायें।

कुछ स्त्रियों को उनके परिवार वाले आगे बढ़ने नहीं देते हैं उन्हें लगता है कि यदि स्त्रियां बाहर जाएगी तो फिर समाज उन्हें गलत दृष्टि से देखेगा जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है आज स्त्रियां खुद सक्षम है अच्छा बुरा समझने के लिए, उन्हें आभास है हर पुरुष की नजर का उन्हें पता है कि हमें पुरुषों से कैसे बात करना है और समाज में अपना स्थान बनाना है। आजकल सभी स्त्री-पुरुष साथ मिलकर काम करते हैं पर इसका मतलब यह नहीं है कि उनमें कोई गलत संबंध है गलत तो वह लोग होते हैं जिनके मन में गलत भावना भरी होती है।

मैंने तो बहुत ही पुरुषों को देखा है जो यह चाहते हैं की स्त्रियां घर में रहकर परिवार संभाले बच्चों की देखभाल करें मेहमानों के सामने वह अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं, उन्हें महिलाओं की मानसिक स्थिति का अंदाजा नहीं होता है। मैं उन से निवेदन करना चाहती हूं कि अपनी मां, बहन, बेटी, सखी जो भी आपके रिश्ते में हैं उन्हें आगे बढ़ने से ना रोके उनके अंदर की प्रतिभा को पहचाने उन्हें आगे बढ़ने दें, उन्हें लिखने दे, उन्हें एक नई उड़ान प्रदान करें। इसमें परिवार का पूर्ण सहयोग होना बहुत आवश्यक है ईर्ष्या की भावना अपने मन में बिल्कुल ना लाएं की स्त्रियां पुरुषों से आगे निकल जाएंगी। स्त्री और पुरुष दोनों ही अपनी विचारधाराओं को बदलें स्त्री अपनी स्वतंत्रता के लिए घर में बैठे भी बहुत से कार्य कर सकती हैं और पुरुष उन्हें आगे बढ़ाने के लिए घर की चारदीवारी से एक नई पहचान दिला सकते हैं, मन में विश्वास का होना स्त्री पुरुषों के लिए दोनों के लिए आवश्यक है।

स्त्रियों का सर्वांगीण विकास तभी हो सकता है जब समाज के सभी व्यक्ति एकजुट होकर उनके लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध कराएं समाज में उन्हें उनकी प्रतिभा के अनुसार सम्मान दिलाएं, स्त्रियों को भी पंख चाहिए उनके पंख को काटे ना जाए।

स्त्रियां यह बिल्कुल भी ना सोचे कि हम घर बैठे कुछ नहीं कर सकते हैं। कई स्त्रियों को मैंने देखा है कि वह प्रतिभावान होते हुए भी अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं करती हैं।

उन्हें समाज का डर सताता है और वह सोशल मीडिया में सक्रिय होने के बावजूद भी किसी भी लेखन कार्य में भाग नहीं लेती हैं, तो उन सब स्त्रियों से मेरा आग्रह है कि वह अपने अधिकार को समझें। साहित्यिक संस्थाओं में ऑनलाइन गोष्ठी में भाग लेकर लेखन कार्य में भाग ले। उन्हें सम्मान पत्र देकर संस्था द्वारा सम्मानित किया जाएगा। जब वह सम्मान पत्र जब उन स्त्रियों के हाथ में आता है तो वह खुशी का पल होता है उनके लिए। घर की जिम्मेदारियों और बच्चों की पढ़ाई से लेकर उन स्त्रियों को सोशल मीडिया के कार्य में भाग लेना अति आवश्यक है, अपने मन की बात कहने के लिए, और डायरी में लिखी हुई बातों को बाहर लाने के लिए। तभी समाज की सोच बदलेगी।

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