संयुक्त राष्ट्र संघ की महत्वपूर्ण इकाई संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा विश्व शिक्षक दिवस की शुरूआत 5 अक्टूबर, 1994 से की गयी थी। इस विश्व शिक्षक दिवस को आयोजित करने का उद्देश्य विश्व भर के टीचर्स द्वारा विश्व के लगभग दो अरब पचास करोड़ बच्चों के जीवन निर्माण में दिये जा रहे महत्वपूर्ण योगदान पर विचार-विमर्श करना है। यूनेस्को अपने कार्यक्रमों के द्वारा विश्व को शिक्षा, विज्ञान, शांति एवं प्रगति का सन्देश देने के लिए कृत संकल्पित है। प्राचीन भारत ने संसार में जगत गुरू की भूमिका निभाई है। विश्व के सबसे बड़े तथा परिपक्व लोकतांत्रिक भारत का सारे विश्व में लोकतांत्रिक व्यवस्था बनाने का सबसे अधिक दायित्व बनता है।
मनुष्य जीवन में उसके छात्र के रूप में बिताए हुए दिन काफी मायने रखते हैं। यही दिन छात्रों के भविष्य को तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं। आमतौर पर एक व्यक्ति पांच वर्ष की आयु से लेकर तकरीबन 25 साल की उम्र तक तमाम शिक्षकों से घिरा रहता है। एक अध्यापक द्वारा दी गई शिक्षा के बल से ही छात्र आगे चलकर देश सहित विश्व के कर्णधार बनते हैं। भारत में राष्ट्रीय स्तर पर यूं तो शिक्षक दिवस पांच सितंबर को प्रतिवर्ष मनाया जाता है लेकिन यूनेस्को के आह्वान पर पांच अक्टूबर को विश्व शिक्षक दिवस विश्व के अनेक देशों में मनाया जाता है।
नई शिक्षा नीति की घोषणा शीघ्र
भारत सरकार 21वीं सदी के अनुरूप नई शिक्षा नीति की घोषणा शीघ्र करने जा रही है। किशोरों व युवाओं को सामयिक घटनाओं, अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों एवं कूटनीतिक जानकारियां प्रदान कर उनके दृष्टिकोण को वैश्विक एवं व्यापक बनाना वर्तमान समय की अनिवार्य आवश्यकता है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र संघ ने कई वैश्विक समस्याओं के समाधान निकाले हैं परन्तु वीटो पाॅवर की वजह से कई समस्याएं अनसुलझी ही रह जाती हैं। 21वीं सदी की नई शिक्षा के अन्तर्गत भारतीय संस्कृति के आदर्श वसुधैव कुटुम्बकम् को विश्व संस्कृति के रूप में विकसित करके विश्वव्यापी समस्याओं के समाधान निकाले जा सकते हैं।
शिक्षा के द्वारा बच्चों का बाल्यावस्था से यह सीख देनी चाहिए कि वृक्षारोपण सबसे बड़ा दान है। पेड़-पौधे आक्सीजन के सैलेण्डर की तरह हैं। वन ही हमारे जीवन का आधार हैं। वनों की कमी से प्रकृति का प्रकोप मानव जाति को झेलना पड़ता है। हमें अपने बच्चों को समझाना है कि पौधे हमारे जीवन में कितने जरूरी हैं। पर्यावरण को हरा-भरा रखने के लिए बच्चे जहां धरती में खाली जगह दिखे पौधे जरूर लगाये।
मनुष्य द्वारा की जाने की वाली समस्त सम्भव सेवाओं में से सर्वाधिक महान सेवा है-
- बच्चों की संतुलित शिक्षा (भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक शिक्षा से युक्त)।
- उनके चरित्र का निर्माण।
- उनके हृदय में सर्वशक्तिमान ईश्वर के प्रति प्रेम उत्पन्न करना।
आज की वर्तमान शिक्षा केवल भौतिक विकास के लिए है। इस कारण से बालक का अधूरा विकास ही हो पा रहा है जबकि भौतिक के साथ सामाजिक तथा आध्यात्मिक विकास होने से बालक का सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास होता है। केवल भौतिक ज्ञान अर्जित करने के कारण स्कूल के छात्र योजनाबद्ध तरीके से अपराध करते पाये जा रहे हैं।
क्षमताओं का दुरूपयोग
बाल एवं युवा छात्रों में ढेरों क्षमताएं तथा ऊर्जा होती हैं। इसे सही दिशा की ओर मोड़ने की आवश्यकता है ताकि उनकी क्षमताओं का दुरूपयोग न हो। अतः आज बालक केे सामाजिक एवं आध्यात्मिक गुणों को बाल्यावस्था से ही विकसित करना भी उतना ही आवश्यक है जितना उसको पुस्तकीय ज्ञान देना। इस प्रकार शिक्षा का उद्देश्य प्र्रत्येक बालक को भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक तीनों प्रकार की उद्देश्यपूर्ण शिक्षा देकर उसे संतुलित, अच्छा और पूर्णतया गुणात्मक व्यक्ति बनाना होना चाहिए। शिक्षा का लक्ष्य विश्व के दो अरब पचास करोड़ से अधिक बच्चों को युद्धरहित तथा आतंकवादरहित सुरक्षित भविष्य का अधिकार दिलाना भी होना चाहिए।
‘‘विद्यालय को समाज के प्रकाश के केन्द्र (लाइटहाउस) की भूमिका निभाते हुए उद्देश्यपूर्ण शिक्षा, आध्यात्मिक मार्गदर्शन तथा कुशल नेतृत्व द्वारा न केवल छात्रों को वरन् अभिभावकों तथा विस्तृत समाज को प्रकाशित करना चाहिए।’’ प्रत्येक बालक ग्लोबल कैरियर, ग्लोबल प्रोफेशन तथा ग्लोबल पोजीशन प्राप्त करके मानव जाति की खुशहाली तथा सुरक्षा के लिए कुछ अलग कर सकता है। साथ ही वसुधैव कुटुम्बकम् के अनुरूप सारी धरती को एक कुटुम्ब बना सकता है। वह टीचर बच्चों को इतना पवित्र, महान तथा चरित्रवान बना देता है कि ये बच्चे आगे चलकर सारे समाज, राष्ट्र व विश्व को एक नई दिशा देने की क्षमता से युक्त हो जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ने छः भाषाओं अंग्रेजी, चीनी, रूसी, अरबी, फ्रेन्च, एवं स्पेनिश को विश्व की सम्पर्क भाषाओं (लिंक लेंग्वेज) के रूप में स्वीकारा है लेकिन अंग्रेजी को छोड़कर शेष पांच भाषायें अपने देश में ही सिमटकर रह गयी हैं।
विश्व संसद का स्वरूप
नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री जान टिम्बरजेन ने कहा है कि ‘‘राष्ट्रीय सरकारें विश्व के समक्ष उपस्थित संकटों और समस्याओं का हल अधिक समय तक नहीं कर पायेंगी। इन समस्याओं के समाधान के लिए विश्व संसद आवश्यक है, जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ को मजबूती प्रदान करके प्राप्त किया जा सकता है’’ इसलिए प्रभावशाली वैश्विक व्यवस्था लोकतांत्रिक के लिए भारत को आगे बढ़कर संयुक्त राष्ट्र संघ को प्रजातांत्रिक एवं शक्तिशाली बनाकर विश्व संसद का स्वरूप प्रदान करने की अगुवायी करनी चाहिए।
शिक्षकों को बच्चों को बाल्यावस्था से ही ज्ञान कराना चाहिए कि इस सारी सृष्टि का ईश्वर एक है, उसका धर्म ही एक है तथा मानव जाति एक है। सारी वसुधा एक कुटुम्ब के समान है। यह सारी धरती माता अपनी है, यह परायी नहीं है। गुफाओं से शुरू हुई मानव सभ्यता का अगला तथा अन्तिम लक्ष्य विश्व की एक न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था बनाकर आध्यात्मिक साम्राज्य स्थापित करना है, जिसे शिक्षकों के सहयोग के बिना पूरा किया जाना संभव नहीं है। अतः विश्व शिक्षक दिवस के अवसर पर विश्व के सभी शिक्षकों को यह संकल्प लेना चाहिए कि वे संसार के प्रत्येक बच्चे को संतुलित एवं उद्देश्यपूर्ण शिक्षा प्रदान करके सारे विश्व में आध्यात्मिक सभ्यता की स्थापना करेंगे।
प्रदीप कुमार सिंह