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यूपी स्थापना दिवस पर योग व संस्कृति


लखनऊ विश्वविद्यालय में उत्तर प्रदेश स्थापना दिवस विशेष अंदाज में मनाया गया। इस आयोजन के माध्यम से लोगों को योग का सन्देश दिया गया। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश के सांस्कृतिक महत्व बताने के साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी प्रदर्शन किया गया। कार्यक्रम में जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय, बलिया की कुलपति प्रो कल्पलता पांडे मुख्य अतिथि थीं। समारोह का शुभारंभ लखनऊ विश्वविद्यालय के योग और प्राकृतिक चिकित्सा संकाय के छात्रों द्वारा योग के प्रदर्शन से हुई। प्रतिभागियों ने ताड़ासन, धनुरासन,भुजंगासन, पवनमुक्तासन, अर्धमत्स्येन्द्रासन किया। यह बताया गया कि जो शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के विकास के लिए लाभप्रद होता है। योग प्रशिक्षकों द्वारा पद्मासन,नाड़ी षोडन, भस्त्रिका,उज्जई आदि का अभ्यास भी किया। संस्कृत विभाग की डॉ. भुवनेश्वरी भारद्वाज ने उत्तरप्रदेश के महत्व को रेखंकित किया।

बताया कि जिस भूभाग में अवस्थित है उसकी महनीयता के लिए शास्त्रों में कहा गया है- एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः। स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेणन् पृथिव्यां सर्वमानवाः।।

अर्थात् पूरी दुनिया के लोगों को अपनी अपनी भूमिकाओं के सम्यक् निर्वहन के लिए यहाँ के अग्रकर्ताओं के चरित्रों से सीखना चाहिए ।
अवतारों में परम श्रीराम और श्रीकृष्ण यहीं हुए। अनादि काशी यहीं है जिसको कलिकाल के अवतार बुद्ध ने धर्मचक्रप्रवर्तन हेतु चुना। जिनकी देशनाएं युद्ध और संघर्ष की विभीषिकाओं से आक्रांत विश्व को आज भी ध्यान शांति और मांगल्य द्वारा शीतलता प्रदान कर रहीं हैं।

यहीं पर अयोध्या है जहां श्रीराम जन्मे और खेले, जहां शेषावतार पतंजलि ने यज्ञ किए। गोनर्द यहीं है,जहाँ उनका आश्रम था, जो व्याकरण आयुर्वेद और योगशास्त्र के मुनि थे और आज समूचा विश्व इन सभी क्षेत्रों में उनकी शिक्षाओं को समझने और ग्रहण करने की कोशिश कर रहा है। प्रयागराज;जहां भरद्वाज ऋषि का आश्रम था;जिनसे स्वयं मर्यादापुरुषोत्तम राम , जिनका चरित्र संपूर्ण मानवता के लिए आदर्श बना हुआ है,वह भी स्वयं पूछने गए थे- “कहहु नाथ हम केहि मग जाहीं”। यहीं महान समुद्रगुप्त की वाहिनी स्कंधावार था जिसके भुजबल के सूर्य ने समूची पृथ्वी में अपने बल का अभिमान रखने वाले आक्रान्ताओं के बलाभिमान को अस्त कर दिया था।

जिसकी प्रयाग-प्रशस्ति में हरिषेण लिखते हैं- विविधसमरशतावरणदक्षः स्वभुजबलपराक्रमैकबन्धुः।।अर्थात्‌ जिसके भुजबल का पराक्रम ही उसका एकमात्र बंधु है। हमारा लखनऊ विश्वविद्यालय इसी गुरु परम्परा के सम्यक् निर्वहन हेतु माननीय कुलपति प्रो आलोक कुमार राय सर के निर्देशन में नवजागरण हेतु पुनर्संगठित हो रहा है। संस्कृत्की के छात्रों ने अपना अपने प्रदर्शन से सबका मन मोह लिया। अभिन्न ने अपने गिटार के साथ “जहाँ डाल डाल पर सोने की चिडिय़ा करती हैं बसेरा” गाया। प्रशांत शर्मा ने एक कविता “उत्तर प्रदेश स्वर्णिम” का पाठ किया। तत्पश्चात,ओमिषा ने लखनऊ के बारे में एक कविता का पाठ किया और कहा कि हम उस धरती से आते हैं जिसे उत्तर प्रदेश कहते हैं।

शिवांगी ने उत्तर प्रदेश और लखनऊ के बारे में एक कविता भी सुनाई। योग संकाय के एक छात्र ने भी एक कविता “बार बार माता भारती तुझको प्रणाम है” सुनाई और अंत में अनन्या ने एक गीत “कर चले हम फिदा जान तन साथियों” गाया। चूंकि, 24 जनवरी को “बालिका दिवस” के रूप में भी मनाया जाता है, इसलिए अभिन्न और उनके समूह ने एक गीत “ओ री चिरैया” प्रस्तुत किया और माननीय कुलपति की बेटी ने “बेटियां जो ब्याही जाये वो मुड़ती नहीं” पर एक भावपूर्ण नृत्य किया।

कुलपति ने सभी को बधाई दी कार्यक्रम में डीन स्टूडेंट वेलफेयर प्रो. पूनम टंडन,डीन आरएसी, प्रो. मनुका खन्ना, निदेशक संस्कृत्की प्रो.राकेश चंद्र, प्रो. दुर्गेश श्रीवास्तव और विश्वविद्यालय के अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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