बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू के वरिष्ठ नेता नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने 40 दिनों के अंदर दूसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की है।
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इस मुलाकात के मायने इसलिए भी अहम हैं क्योंकि नीतीश बेंगलुरु में सिद्धारमैया के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के बाद सीधे नई दिल्ली पहुंचे और अरविंद केजरीवाल से मिलने पहुंच गए। सर्विस आवंटन विवाद में केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर केजरीवाल को एकला कर दिया है। ऐसे में उन्हें वैसे सहयोगियों के साथ की दरकार बढ़ गई है, जो केंद्र की बीजेपी सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ने में मददगार साबित हो सकें।
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नीतीश कुमार के साथ राजद नेता और उनके डिप्टी तेजस्वी यादव भी थे। इन नेताओं की मुलाकात को विपक्षी एकता की दूसरी मुहिम के रूप में देखा जा रहा है। नीतीश और तेजस्वी ने केजरीवाल से मुलाकात के बाद कह दिया है कि वो अध्यादेश का विरोध करेंगे और संविधान को बचाने की लड़ाई लड़ेंगे। कहा जा रहा है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी जल्द ही केजरीवाल से मुलाकात करने वाली हैं।
यह स्पष्ट है कि कांग्रेस को साथ लिए बिना विपक्षी एकता की बात न तो कारगर हो सकती है और न ही दमदार। ऐसे में नीतीश कुमार के कंधों पर उन दलों को साधने की जिम्मेदारी है, जिनका कांग्रेस से डायरेक्ट आमना-सामना है। नीतीश इसी विपक्षी खेमे की आपसी लड़ाई को फ्रेंडली फाइट में बदलना चाहते हैं। उधर, ममता बनर्जी ने भी कर्नाटक चुनाव नतीजों का ऐलान होते ही अपने रुख में नरमी के संकेत और कांग्रेस के साथ मिलकर 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए ग्रीन सिग्नल दिया है।
कर्नाटक चुनावों में बीजेपी की हार और कांग्रेस की जीत के बाद से विपक्षी खेमे में खुशी की लहर है। ये सभी नेता केंद्र-राज्य संबंधों पर मोदी सरकार को घेरने और राज्यसभा में सर्विस आवंटन से जुड़े अध्यादेश को रोकने की कोशिश में हैं। 23 मई को नीतीश और ममता की फिर से मुलाकात हो सकती है। माना जा रहा है कि कांग्रेस भी अध्यादेश के मुद्दे पर केजरीवाल का साथ दे सकती है लेकिन अभी तक आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया है।