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युवाओं को व्यंग और अश्लील कविताओं की अपेक्षा साहित्यिक और मूल्य परक रचनाएं लिखनी चाहिए- डॉ पान सिंह

• हिन्दी साहित्य भारती में गूंजे कवियों के स्वर

• कवि बोले ऐसी रचनाये लिखे जिससे समाज को प्रेरणा व नई दिशा मिले

हिन्दी साहित्य भारती, चंडीगढ साहित्यिक संस्था ने टीएस सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी के सौजन्य से विशाल कवि संगोष्ठी का आयोजन करवाया। हिंदी साहित्य भारती चंडीगढ़ के अध्यक्ष डॉ अरविंद कुमार द्विवेदी ने सभी माननीय अतिथियों कवियों और श्रोताओं का स्वागत किया तथा हिंदी साहित्य भारती का धेय गीत सुनाया..

हम हिंदी साहित्य भारती के साधक, जग जननी भारत माता के आराधक।
सारस्वत संस्कृति का सरस विधान करें, विश्व गगन में हिंदी का जय गान करें’।।

सनातन चिंतन धारा को लेकर भारतीय संस्कृति की पुनर–प्रतिष्ठा, हिंदी भाषा एवं साहित्य के उत्थान का संकल्प लेकर युवाओं में साहित्य, संस्कृति, कला के प्रति सृजन चेतना जगाने के लिए हिंदी साहित्य भारती का गठन किया गया है। इस समय पूरे विश्व में 35 देशों में इस संस्था का प्रचार प्रसार है।

डॉ पान सिंह

संगोष्ठी में कवियों ने भारतीय संस्कृति, मूल्य, परम्परा, देशप्रेम, हास्य व्यंग एवम् बसंतोत्सव की श्रृंगारिक रचनाओं से समा बांधा। कार्यक्रम में अध्यक्ष के रूप में प्रोफ़ेसर संजय कौशिक ने कहा कि विज्ञान और वाणिज्य जीवन की सुख-सुविधा के लिए संसाधन उपलब्ध कराते है परन्तु साहित्य और कला आत्मा को स्वर और मानवता को वाणी देती है।

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इसीलिए आज भी सूर, तुसली, कबीर, नानक, प्रसाद, पंत और निराला की कविता आज भी पढ़ी जा रही है। मुख्य अतिथि के रूप हिमांचल विश्विद्यालय से पधारे डॉक्टर पान सिंह ने कहा कि युवाओं को व्यंग और अश्लील कविताओं की अपेक्षा साहित्यिक और मूल्य परक रचनाएं लिखनी चाहिए जिस से समाज को नई प्रेरणा व दिशा मिले। भारतीय शिक्षण मंडल से डॉक्टर नितेश ने मैथली शरण गुप्त की पंक्तियों को उद्धृत करते हुए कहा “केवल मनोरंजन ही न, कवि का कर्म होना चाहिए।

डॉ पान सिंह

उसमें उचित उपदेश का भी, मर्म होना चाहिए”, अर्थात् कवि समाज का प्रतिमान है, उसे समाज के प्रति अपनी उत्तरदायित्व का निर्वाह करना चाहिए। कवयित्री अन्नुरानी शर्मा ने अपनी कविता “उम्मीद” के माध्यम से सुनाया” हां मैं बस उम्मीद लिखूंगी, हर बाधा पर जीत लिखूंगी”। डाॅ अश्वनि शांडिल्य ने मां की गरीमा को प्रकट करते हुए दोहे पढ़े और कहा “मां के बिन घर घर नही और नहीं परिवार, मां ही सर्जनहार है मां ही पालनहार”।

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नेहा नुपुर ने प्रेम के शाश्वत स्वरूप को अपनी कविता के माध्यम से प्रकट किया। पंक्तियां कुछ इस प्रकार है “प्रेम की अग्नि में तप कर मन का सोना कुंदन हुआ, इंद्रलोक का वैभव फीका प्रेम में मन जब वृंदावन हुआ”। संस्था के संगठन महामंत्री यश कांसल ने “होलिका के साथ साथ भय का दहन हो, संशय का दहन हो” रचना पढ़ी।

सत्यवती आचार्य ने होली पर भाईचारा और सद्भाव को बनाए रखने का संदेश एक छन्दात्मक कविता-होली के हुड़दंग में मिटे राग द्वेष के रंग’ नामक कविता से दिया ।गौतम ने आदरणीयों की प्रति श्रद्धा प्रकट” हम बूढ़ों की डांट डपट की पूरी इज़्ज़त करते है, पानी अगर गरम हो फिर भी आग बुझाता है”।

डॉ पान सिंह

नालागढ़ साहित्य कला मंच से पधारे यादव किशोर गौतम, हरिराम धीमान, सुमति सिंघल ने काव्य पाठ किया। इनके इलावा रोहित गर्चा, सुख आमद, उषा पांडेय, किरण अहूजा, रवि कुमार, डॉ नवीन गुप्ता, प्रिंस कश्यप, अरविंद कुमार, चंचल शर्मा, अनिल शर्मा “चिंतक”, सत्यवती आचार्य, संध्या शर्मा, सुमित बग्गन ने अपनी कविताओं के स्वर लहरियों से समस्त श्रोता मण्डल को मुग्ध किया।

अंत में विशिष्ट अतिथी और समाज सेवी भण्डारी अदबी ट्रस्ट के संस्थापक अशोक नादिर ने युवाओं को प्रेरित करते हुए राष्ट्र प्रेम की कविताओं से आह्लादित किया। अंत में हिन्दी साहित्य भारती के महामंत्री लवेश शर्मा ‘रघु’ ने सभी कवियों और श्रोताओं का आभार प्रकट करते हुए कहा “साहित्य की यह सारस्वत परंपरा अनवरत चलती रहे, यही मेरी कामना है।

रिपोर्ट – राहुल तिवारी

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