जम्मू कश्मीर प्रदेश को दो हिस्सों में तोड़कर बनाने के निर्णय के बाद लगातार अनुच्छेद 370 को लेकर बहस जारी है। आर्टिकल 370 के इतिहास से जुड़ी तमाम जानकारियां न्यूज़18 आप तक लगातार पहुंचा रहा है। अस्ल में, यह संविधान की वह धारा या अनुच्छेद रहा है, जो शुरूआत से ही विवादों में घिरता रहा। इसके औचित्य, स्वरूप एवं असर को लेकर हमेशा सवाल किए जाते रहे। 26 जनवरी 1950 को देश का संविधान लागू हुआ था, लेकिन उससे पहले संविधान निर्माण की प्रक्रिया चल रही थी, तब 1949 में एक मुस्लिम नेता ने इस आर्टिकल की व्यवस्था को लेकर सबसे पहले सवाल खड़े किए थे। उस सारे घटनाक्रम को लेकर जानिए इतिहास के पन्नों से एक प्रामाणिक कहानी।
वो मुस्लिम नेता थे मौलाना हसरत मोहानी, जिन्होंने सबसे पहले आर्टिकल 370 की व्यवस्था को लेकर सवालिया निशान लगाया था। हिंदी कवि व लेखक अशोक कुमार पांडेय लिखित किताब कश्मीरनामा इस बात का ज़िक्र है कि संविधान सभा में 17 अक्टूबर 1949 को जब धारा 306, जिसे बाद में 370 के नाम से जाना गया, का मसौदा पेश किया, तो मोहानी सबसे पहले आदमी थे, जिन्होंने सवाल किया था ‘संविधान में आर्टिकल 370 की क्या ज़रूरत है? ये भेदभाव क्यों?’
मोहानी को ये मिला था जवाब
मोहानी के इस सवाल का जवाब जम्मू और कश्मीर के राजा हरि सिंह के दीवान रह चुके गोपालस्वामी आयंगर ने दिया था, जो उस वक्त बगैर किसी मंत्रालय के मंत्री थे व जवाहरलाल नेहरू के बेहद करीबी माने जाते थे। जम्मू यूनिवर्सिटी के पूर्व वीसी अमिताभ मट्टू के द हिंदू के लिए लिखे आर्टिक्ल के मुताबिक़ आयंगर ने मोहानी को जवाब देते हुए बोला था कि ‘इसके पीछे कई कारण हैं, जिनके चलते कश्मीर बाकी रियासतों से अलग है व वैसे एकीकरण की स्थिति वहां परिपक्व नहीं है। कश्मीर पर हिंदुस्तान पाक के बीच युद्ध हो चुका है वदशा अब भी नाज़ुक हैं। साथ ही, इस प्रदेश के कुछ हिस्सों में विद्रोही व दुश्मन अपना हक जमाने की प्रयास कर रहे हैं’
मोहानी ने संविधान निर्माण के बाद हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया था।
क्या हुआ था इस जवाब के बाद?
आयंगर ने अस्ल में, व विस्तार से ये जवाब दिया था, जिसके बाद संविधान सभा में किसी व ने इस व्यवस्था को लेकर कोई विरोध दर्ज नहीं करवाया था। लेकिन, मोहानी विरोध में बने हुए थे। नॉर्थलाइन्स के लिए ब्रिगेडियर अनिल गुप्ता के आर्टिक्ल में उल्लेख है कि मोहानी ने भविष्यवाणी के अंदाज़ में बोला था ‘विशेष प्रदेश के दर्जे के चलते कश्मीर को बाद में आज़ादी मिल पाएगी’। इसी तरह की बातों को लेकर मोहानी ने संविधान निर्माण के बाद हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया था व संविधान निर्माण में पाखंड या कपट के आरोप लगाए थे।
मोहानी को आप बेशक जानते हैं
चौंकिए नहीं, मौलाना हसरत मोहानी को आप संविधान सभा के मेम्बर या स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में शायद कम जानते हैं लेकिन एक शायर के तौर पर आप उन्हें ज़रूर जानते हैं। व अगर नाम न भी सुना हो तो उनकी लिखी ग़ज़लों या शायरी से ज़रूर वाकिफ़ हैं। ‘चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है। । ‘, ये ग़ज़ल जो आपने अधीन अली की आवाज़ में सुनी है, ये व ऐसी ही बेहतरीन शायरी करने वाले शायर कोई व नहीं यही हसरत मोहानी थे, जो शिक्षाविद, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, मुस्लिम लीग नेता, हिंदुस्तान में कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापकों में से इतिहासकार के रूप में भी जाने जाते हैं।
मोहानी की दो यादें हमेशा अपने साथ रखें
हसरत मोहानी से जुड़े दो फैक्ट हमेशा आपके कार्य आएंगे। भारतीय इतिहास व हिंदुस्तान के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी चर्चा में आप कम से कम दो बार मोहानी का नाम ज़रूर ले सकते हैं।पहला तो ये कि हिंदुस्तान के स्वतंत्रता संग्राम में जो नारे सबसे ज़्यादा गूंजे, उनमें से एक ‘इन्क़िलाब ज़िंदाबाद’ था व ये नारा हसरत मोहानी ने दिया था। व दूसरा ये कि 1921 में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के अधिवेशन के अध्यक्ष के तौर पर ‘आज़ादी ए कामिल’ यानी ‘पूर्ण स्वराज्य’ का नारा या विचार देने वाले सबसे पहले स्वतंत्रता सेनानी मोहानी ही थे। इन दो तथ्यों के लिए आपको मोहानी को हमेशा याद रखना चाहिए।