राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति व मानसिक स्वास्थ्य कानून में रोगियों के लिए सरलता से उपलब्ध किफायती व गुणवत्तापूर्ण उपचार उपलब्ध कराने की बात कही गई है. लेकिन छह राज्यों व सात केन्द्र शासित प्रदेशों में एक भी मानसिक रोग अस्पताल नहीं है.
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, देश में मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ रही है. अभी लगभग 15 करोड़ लोगों को उपचार की कठोर आवश्यकता है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की नेशनल हेल्थ प्रोफाइल रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, सिक्किम, मिजोरम व छत्तीसगढ़ में एक भी मानसिक रोग अस्पताल नहीं है.
सात केन्द्र शासित राज्यों चंडीगढ़, दादर एवं नागर हवेली, पांडिचेरी, दमन दीव, लक्षद्वीप, अंडमान निकोबार व लद्दाख में भी मानसिक रोग अस्पताल नहीं है. डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार 24 राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों में मानसिक रोग अस्पताल हैं, लेकिन यह आवश्यकता से बहुत ज्यादा कम हैं. 14 बड़े राज्यों बिहार, ओडिशा, पंजाब, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश व दिल्ली आदि में सिर्फ एक-एक अस्पताल हैं.
जिन राज्यों में एक से अधिक मानसिक रोग अस्पताल हैं उनकी संख्या दस है. पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा पांच मानसिक रोग अस्पताल हैं. गुजरात व महाराष्ट्र में चार-चार, यूपी व केरल में तीन-तीन तथा पांच राज्यों मध्य प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, राजस्थान तथा जम्मू और कश्मीर में दो मानसिक रोग अस्पताल हैं.
10 लाख आबादी पर केवल तीन मनोचिकित्सक:
अस्पतालों की कमी के साथ मनोचिकित्सकों की भी कमी है. यहां एक लाख आबादी पर महज 0.3 मनोचिकित्सक हैं. स्वास्थ्य के कुल बजट का महज 0.06 प्रतिशत ही मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च किया जाता है. नतीजा यह है कि 80 प्रतिशत मानसिक रोगियों को देश में उपचार ही नहीं मिल पाता है.