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एक ने 98 तो दूसरे ने 105 साल की उम्र में ली ड‍िग्री

हाल ही में एक 98 वर्षीय युवक और दूसरे 105 वर्षीय युवक ने अपने उम्र के आखिरी पड़ाव में डिग्री हासिल की है। बुढापे में इंसान शरीर और द‍िमाग दोनों से ही कमजोर हो जाता है लेक‍िन कुछ बुजुर्गों ने इस बात को खार‍िज कर द‍िया है। हाल ही में 98 साल के इन बुजुर्ग ने एमए की ड‍िग्री हास‍िल कर एक म‍िसाल पेश की है।

गिनीज बुक आफ ल‍िम्‍का में दर्ज

बुढ़ापे की पर‍िभाषा बदलने वाले बुजुर्गों में 98 साल के राजकुमार वैश्य हैं। मूल रूप से यूपी के बरेली निवासी राजकुमार की जि‍तनी तारीफ की जाए वह कम है। राजकुमार वैश्य ने नालंदा मुक्त विश्वविद्यालय से एमए (अर्थशास्त्र) की डिग्री हासिल कर ली है। इसके ल‍िए इन्‍हें पटना में आयोजित एनओयू के दीक्षांत समारोह में मेघालय के राज्यपाल गंगा प्रसाद ने ड‍िग्री प्रदान की है। उम्र के इस पड़ाव में उनकी पढ़ने की चाहत जानने के बाद नालंदा खुला विश्वविद्यालय के अध‍िकार‍ियों ने 2015 में उनके घर पर जाकर नामांकन लिया था। इस संबंध में राजकुमार का कहना है क‍ि इस उपलब्‍ध‍ि को पाकर वह काफी खुश हैं। वह कभी भी मेहनत करने में कमजोर नहीं पड़े। मास्‍टर ड‍िग्री हा‍स‍िल करना इनका सपना था। राजकुमार का नाम हाल ही में इनका नाम ल‍िम्‍का बुक में दर्ज हो गया है।

105 साल की उम्र में पीएचडी

उम्र के इस पड़ाव पर पढ़ने की चाहत रखने वाले बुजुर्गों में ताइवान के रहने वाले एक बुजुर्ग Zhao Muhe का नाम भी शाम‍िल हो चुका है। सोशल मीड‍िया पर यह काफी चर्चा में है। उन्‍होंने 98 साल की उम्र में पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा क‍िया उसके बाद पीएचडी का प्‍लान क‍िया। ऐसे में 105 साल की उम्र में पीएचडी की डिग्री ​हासिल की। युवापन में चीनी हस्‍तकला में व‍िशेष रूझान होने से इन्‍होंने इसमें ही अपना रोजगार तलाशा था। ज‍िम्‍मेदार‍ियों और रोजगार की व्‍यस्‍तता की वजह से इनका पीएचडी करने का सपना अधूरा रह गया था। इसलि‍ए इन्‍होंने दोबारा उम्र के इस मोड़ पर अपनी हसरत पूरी की। खास बात तो यह है क‍ि यह इसके ल‍िए दूसरों पर न‍िर्भर नहीं रहे।

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