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पिता का बदला लेने के लिये परीक्षित के बेटे ने जनमेजय नगरी में किया था सर्प मेधयज्ञ

औरैया। जनपद के सेहुद गांव में धौरानाग का मंदिर है। इसके अलावा जाना कस्बे में महाभारत कालीन हवनकुण्ड है, जहां सांपों को मारने के लिये यज्ञ हुआ था। जाना कस्बा जिसे जनमेजय नगरी भी कहा जाता है यहां पंच पोखर आश्रम स्थिति है, इस स्थान पर ही सर्प जाति को समाप्त करने के लिए सर्प मेध यज्ञ किया गया था। ये स्थान राजा परीक्षित की सर्प दंश से हुई मौत के बाद में चर्चा में आया।

परीक्षित के पुत्र राजा जनमेजय ने अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए सर्प मेघ यज्ञ किया था। महाभारत काल में पांडवों के अंतिम राजा जनमेजय के पिता राजा परीक्षित की मृत्यु के बाद हुए यज्ञ से यहां की पूरी कहानी का तानाबाना जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि इस क्षेत्र में आज भी सांप काटने से किसी की मौत नहीं होती है।

सर्पदंश ने नही होती है मौत

एक बार की बात है, जंगल में राजा परीक्षित शिकार करने हेतु वन्य पशुओं के पीछे दौड़ने लगे। वे प्यास से व्याकुल हो गए तथा जलाशय की खोज में वे शमीक ऋषि के आश्रम पहुंच गए। ऋषि उस वक्त ध्यान में लीन थे। राजा परीक्षित ने उनसे जल मांगा, लेकिन उन्होंने कोई उत्तर दिया। राजा परीक्षित को लगा कि ऋषि उनका अपमान कर रहे हैं। नाराज होकर उन्होंने पास में ही पड़े एक मरे हुए सर्प को उनके गले में डाल दिया।

शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी ऋषि ने जब अपने पिता को इस तरह देखा तो वे अपने पिता के अपमान में क्रोधित होकर राजा परीक्षित को सर्प दंश से मृत्यु होने का श्राप दे दिया। उन्होंने ने कहा कि आज के सातवें दिन सर्प के काटने से उसकी मृत्यु होगी। राजा परीक्षित ने अपनी मृत्यु को टालने के लिए सभी प्रकार के प्रयास किये। लेकिन सातवें दिन सर्पदंश से उनकी मृत्यु हो गई।

पिता की मौत का बदला लेने के लिए राजा परीक्षित के पुत्र राजा जनमेजय ने सांपों के समूल नाश के लिए सर्प मेध यज्ञ कराने का निर्णय लिया। इस दौरान उन्होंने यज्ञ कराया, लेकिन वे सफल नहीं हुए। आखिरकार उन्होंने यज्ञ के लिये सबसे उपयुक्त स्थान औरैया के दलेल नगर से सटे कस्बे के जाना गांव को चुना, जो सूर्य उदय अस्त मंजलोक पृथ्वी का बिंदु है।

हवन कुंड में हजारों सर्प गिरकर भस्म

पंच पोखर आश्रम की देखरेख कर रहे श्री श्री 108 महंत दयालु दास जी महाराज, मनोहर दास जी महाराज लोहा लगड़ी फक्कड़ ने बताया कि यहां पर सर्प मेघ यज्ञ का आयोजन किया गया था। जहां पर बड़े-बड़े प्रकांड विद्वानों ने यज्ञ कराया था। इस यज्ञ के प्रभाव से सभी सर्प हवन कुंड में आकर गिर रहे थे। लेकिन सांपों का राजा तक्षक जिसके काटने से राजा परीक्षित की मौत हुई थी। खुद को बचाने के लिए तक्षक सूर्य देव के रथ से लिपट गया था। उसका हवन कुंड में गिरने का अर्थ था प्रकृति की गतिविधियों में रुकावट आ जायेगी। उन्होंने बताया कि सूर्यदेव और ब्रह्मांड की रक्षा के लिए सभी देवता राजा जनमेजय से यज्ञ को रोकने का आग्रह करने लगे। लेकिन राजा अपने पिता की मृत्यु का बदला लेना चाहते थे। अंत में यज्ञ रोकने के लिए अस्तिका मुनि के हस्तक्षेप करने पर जनमेजय यज्ञ रोकने को तैयार हुए।

श्री श्री 108 महंत दयालु दास जी महाराज ने बताया कि इस स्थान पर आज भी कालसर्प योग से प्रभावित लोग दूर-दूर से आते हैं। यहां की जमीन इतनी पवित्र है कि आसपास के क्षेत्र में सर्प के काटने से भी किसी की भी मौत नहीं होती है।

रिपोर्ट-अनुपमा सेंगर

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