ज़माने की ठोकरें
हूं बहुत नर्म, लेकिन कभी पत्थर भी बना देती है ज़माने की ठोकरें।
बहुत सरल, सीधा, भोला हूं मैं, लेकिन चालाक बना गई ज़माने की ठोकरें।
बहुत प्यार लुटाता हूं सब पर, प्यार का खज़ाना रखता हूं दिल में,
लेकिन कभी नफरत भी सिखा देती है ज़माने की ठोकरें।सोचता हूं दिल से, रिश्ते निभाता हूं शिद्दत से, मगर दिमाग में फिर
भी कोई खलल डाल कर, दिल को हटा कर दिमाग से रिश्ता निभाने को मजबूर कर
देती हैं कभी ज़माने की ठोकरें।दोस्ती की खातिर जान भी लुटाने को रहता मैं हर पल तैयार, वो जिगर रखता हूं,
पर जब कोई दोस्त भोंक देता है खंजर पीठ में, उठ जाता है विश्वास दोस्ती से
मेरा, तब सच का आइना दिखला जाती मुझे ज़माने की ये ठोकरें।शौंक रखता हूं महफ़िलो का, तन्हाई में धकेल जाती है ज़माने की ठोकरें।
भूलना चाहता हूं तुम्हारी यादों को, फिर से तेरी बेवफ़ाई की याद दिला जाती
हैं ये जमाने की ठोकरें।प्रेम बजाज
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