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सच

सच

“कहते है हम जो लिखते है वो सच हो जाता है, शायद हम लिखते भी तो वही है जो सच होता है, ये असमंजस की स्थिति है जो बड़ी दुर्लभ और दयनीय है।”

जो कहा क्या वो कहना चाहिए था…. 2
या सच को छोड़ झूठ संग रहना चाहिए था,
यह स्थिति कौन निश्चित कर पाता है,
इसी द्वन्द में ये दिल बैठ सा जाता है,

सच और झूठ का तोल मोल सदैव होगा….2
चाहे कितना भी ओढ़ लो फरेब का चोगा,
ये रीत है बनी इस दुनिया में जान लो,
बात को आई गयी कर तुम ही पलट
जाओगे अब मान लो !

तुम कहते हो सरल है जीवन…. 2
फिर क्यूँ हिसाब लगाते हो,
सच झूठ को साफ करो ना,
फिर क्यूँ पीछे हट जाते हो,

बातें करने वाले बहुत है….2
तुम भी क्यूँ बात बनाते हो,
जोड़कर बेवजह की कड़िया,
खुद भी उनमें जुड़ जाते हो !

सुनों, बातों को अनदेखा करना…. 2
भी होता है हुनर ये मानों,
जो ना होता हर किसी में,
गर खुद में हो तो पहचानों,

यहाँ जीवन रंग बदलता है….2
संसार फिर भी चलता है,
शोर हो कितना भी तेज,
उम्मीदों का संतूर ही बजता है !

ये बातें आनी जानी हो जाती है…. 2
कुछ दिन तक रहती है,
फिर कहानियाँ हो जाती है,

क्यूँ इन पर अमल करें हम….2
क्यूँ इनसे रिश्ता निभाना है,
ये दुनिया अब नहीं किसी की,
यहाँ हर रोज़ नया ज़माना है !

ज़िन्दगी में जो बीत गया…. 2
उसको ही क्यूँ दोहराना है,
जो है और जो आगे होगा,
उसी में जी कर दिखाना है,

हकीकत से रूबरू हो जाओ…. 2
ये दुनिया है मतलबी बड़ी,
यहाँ जीना तो चाहते है सब,
पर जीने की अब किसे पड़ी !

रोज़ मर रहें लोग यहाँ पर…. 2
अपनी स्थितियों से जूझकर,
बन चुकी ज़िन्दगी खिलौना,
जो कब गिर जाये टूटकर,

लो खत्म हुए वो सिलसिले…. 2
जो ना जाने थे कितने पुराने,
जिनसे नाता रखें अब तो,
बीत गए हमें कितने ज़माने !

अपनी बात को ख़त्म करुँगी,
और सबको यही कहूँगी –

“सच्ची वाणी बोलिये मिलकर सबके साथ, सब दुख फिर मिट जायेंगे होगा बेड़ा पार।
जीवन की ये वाणी किसने जानी आज, ये क्या -क्या कर जाए लगे ना किसी के हाथ।
दोस्तों की दोस्त है शत्रु का करें विनाश, ये वो पथ है जीवन का जहाँ चले संसार।”

डॉ. ज्योति उपाध्याय

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