प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से व्यवस्था में मौजूद बिचौलिए नदारत हुए है। जरूरतमन्दों तक सीधे सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचना संभव हुआ है। अन्यथा पद रहते हुए एक पूर्व प्रधानमंत्री को व्यवस्था की सच्चाई उजागर करनी पड़ी थी। उनका कहना था कि नई दिल्ली से सौ पैसे भेजे जाते है,इसमें से मात्र पन्द्रह पैसे ही जरूरतमन्दों तक पहुंचते है। नरेंद्र मोदी ने इस यथास्थिति को बदला। इस कारण शतप्रतिशत राहत गरीबों तक पहुंचने लगी। किसानों के खाते में उपज का मूल्य,किसान सम्मान निधि आदि सीधे पहुंचने लगी। सरकार ने सुधारों की इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया। इसी के दृष्टिगत तीन विधेयक लाये गए। लेकिन विपक्ष को यथास्थिति ही पसंद है। उसे किसानों के नाम पर राजनीति करना बहुत अच्छा लगता है। लेकिन किसान कल्याण हेतु उनके पास कोई योजना नहीं है।
यूपीए सरकार ने दस वर्ष में एक बार किसानों के ऋण मोचन हेतु आर्थिक पैकेज दिया था। इसी से अपने को किसान हितैषी घोषित कर दिया। जबकि किसान जहां थे,वही रह गए। अर्थशास्त्री की सरकार को क्यों नहीं लगा कि गरीब किसानों के जनधन खाते खुलवाना आवश्यक है। यह कार्य नरेंद्र मोदी ने किया। कोरोना काल के लाकडाउन में भी किसानों तक सहायता पहुंचती रही। तीन विधेयक भी किसानों के हित के लिए है। लेकिन किसानों को यथास्थिति में रखने वाले विपक्ष ने इस पर राजनीति शुरू कर दी। उनके आंदोलन में कितने किसान है,कितने बिचौलिए है,यह देखना भी दिलचस्प होगा। कुछ वर्ष पहले मध्य प्रदेश में किसान आंदोलन के नाम पर भी यही देखा गया था। उसमें भी राहुल गांधी समर्थन देने पहुंच गए थे। किसानों के नाम पर कुछ लोग दूध और सब्जी सड़क पर फेंक रहे थे। बाद में पता चला कि यह सब बिचौलियों की राजनीति थी। वही सब्जी व दूध वहां पहुंचाने के लिए वाहनों की व्यवस्था कर रहे थे। फिर उसी को सड़क पर फेंका जाता था। इसके बाद राहुल गांधी अज्ञातवास पर विदेश रवाना हो गए थे। इस बार भी ऐसा लग रहा है कि विपक्ष के पास मुद्दों का अभाव है।
इस लिए उसने किसान विधेयक पर ही राजनीति शुरू कर दी। सत्ता पक्ष को यह कहने का अवसर मिला कि विपक्ष बिचौलियों का साथ दे रहा है। सरकार बिचौलियों को बाहर करना चाहती है। उसका उद्देश्य किसानों तक सीधे लाभ पहुचाने की व्यवस्था करना है। कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य संवर्धन और सुविधा,मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान संरक्षण एवं सशक्तिकरण और आवश्यक वस्तु संशोधन बिल किसानों को सीधे लाभान्वित करने और बिचौलियों से मुक्ति दिलाने के लिए है। लेकिन राहुल फिर मंदसौर के कथित किसान आंदोलन वाली भूमिका में आ गए है। यूपीए के दस वर्षों में उन्हें जो ज्ञान नहीं था,वह जैसे अब प्रकट हो गया। कहा कि किसान खरीद खुदरा में और अपने उत्पाद की बिक्री थोक के भाव करते हैं। मोदी सरकार के तीन ‘काले’ अध्यादेश किसान खेतिहर मज़दूर पर घातक प्रहार हैं।ताकि न तो उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य व हक़ मिलें और मजबूरी में किसान अपनी जमीन पूंजीपतियों को बेच दें।
राहुल ने इसे मोदी का एक और किसान विरोधी षड्यंत्र करार दिया है। किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा। व्यापारी मंडी से बाहर भी किसानों की फसल खरीद सकेंगे। पहले फसल की खरीद केवल मंडी में ही होती थी। राज्यों के अधिनियम के अंतर्गत संचालित मंडियां भी राज्य सरकारों के अनुसार चलती रहेगी। किसानों का भुगतान सुनिश्चित करने हेतु प्रावधान है कि देय भुगतान राशि के उल्लेख सहित डिलीवरी रसीद उसी दिन किसानों को दी जाएगी। इसमें मूल्य के संबंध में व्यापारियों के साथ बातचीत करने के लिए किसानों को सशक्त बनाने हेतु प्रावधान है। विवादों के समाधान हेतु बोर्ड गठित किया जाएगा,जो तीस दिनों के भीतर समाधान करेगा। ढुलाई लागत, मंडियों में उत्पादों की बिक्री करते लिए गए विपणन शुल्कों का भार कम होगा। किसानों को उपज की बिक्री करने के लिए पूरी स्वतंत्रता रहेगी। करार अधिनियम से कृषक सशक्त होगा। सरकार उसके हितों को संरक्षित करेगी। निवेश बढ़ने अनाज की बर्बादी नहीं होगी।
उपभोक्ताओं को भी खेत या किसान से सीधे उत्पाद खरीदने की आजादी मिलेगी। कोई टैक्स न लगने से किसान को ज्यादा दाम मिलेगा। उपभोक्ता को भी कम कीमत पर वस्तुएं मिलेगी, अनुबंधित किसानों को गुणवत्तापूर्ण बीज की आपूर्ति, सुनिश्चित तकनीकी सहायता, फसल स्वास्थ्य की निगरानी, ऋण की सुविधा व फसल बीमा की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। प्रधानमंत्री ने विपक्षी राजनीति का जबाब दिया। कहा कि बिल किसानों को सशक्त बनाएगा। किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए नए नए अवसर मिलेंगे,जिससे की आय बढ़ेगी। किसानों को भ्रमित किया जा रहा है। मोदी ने दावा किया कि एमएसपी समाप्त नहीं होगी। सरकारी खरीद की व्यवस्था बनी रहेगी।